अमेठी में बीजेपी को राहुल गांधी खुद घुसा रहे हैं
राहुल गांधी अमेठी गये जरूर लेकिन छह महीने बाद. वो भी तब जब उन्हें अमित शाह एंड कंपनी के कार्यक्रम का पता चला. स्मृति ईरानी तो इसी दौरान तीन बार अमेठी घूम आयी हैं. यूं ही नहीं बीजेपी को संभावना दिखने लगी है.
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बीजेपी की नजर यूपी की उन सभी सातों सीटों पर जहां 2014 में मुहंकी खानी पड़ी थी. फिर भी ज्यादा जोर सात में से चार सीटों पर है जहां गांधी और यादव परिवार का कब्जा है - अमेठी, रायबरेली, आजमगढ़ और कन्नौज. मगर, इन चारों में से भी बीजेपी फिलहाल अमेठी पर जोर लगाये हुए है.
आलम ये है कि अमेठी में ऐसी चर्चाएं भी जोर पकड़ने लगी हैं कि राहुल गांधी अगली बार दो-दो जगह से चुनाव लड़ सकते हैं - और जरूरी नहीं कि उनमें से एक अमेठी हो ही.
हर मोर्चे पर स्मृति ईरानी
बीजेपी के पास राहुल गांधी की सबसे बड़ी काट स्मृति ईरानी हैं. 2014 के लोक सभा चुनाव में राहुल गांधी को चुनौती देने के बाद से लगातार वो उनके खिलाफ मोर्चा संभालती रही हैं. अमित शाह के अमेठी दौरे से पहले ही राहुल गांधी ने अपने इलाके में पहुंच कर बताने की कोशिश की कि कैसे बीजेपी की सरकार यूपीए के कामों का क्रेडिट लूट रही है. इतना ही नहीं अमित शाह के अमेठी पहुंचने पर घेरने के लिए राहुल गांधी ने गुजरात का दोबारा प्लान कर लिया. अमेठी में अमित शाह के साथ स्मृति ईरानी तो रहीं ही, अगले दिन उन्हें गुजरात के मोर्चे पर तैनात कर दिया गया.
ईरानी की मोर्चेबंदी, अमेठी से गुजरात तक...
राहुल के खिलाफ स्मृति ईरानी इसलिए भी फिट हो जाती हैं कि वो अमेठी से लोक सभा का चुनाव लड़ चुकी हैं - और गुजरात से राज्य सभा की सांसद हैं. ऐसे में जबकि राहुल गोधरा पहुंच कर बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं, स्मृति ईरानी अहमदाबाद की सड़कों पर उतर रही हैं - बहाना है बीजेपी की गौरव यात्रा.
राहुल गांधी अमेठी गये तो लेकिन छह महीने बाद, जब उन्हें अमित शाह एंड कंपनी के कार्यक्रम का पता चला. दूसरी तरफ स्मृति ईरानी पिछले छह महीने में तीन बार अमेठी घूम आयी हैं. तीसरा दौरा 10 अक्टूबर को रहा. यही वजह है कि अमित शाह को अमेठी में ये कहने का मौका मिल गया - 'मैंने पहली बार देखा कि जीता हुआ प्रत्याशी जनता का हाल न ले और हारा हुआ प्रत्याशी क्षेत्र में विकास का काम करे. स्मृति ईरानी ने ये उदाहरण पेश किया है.' खुद अमित शाह का भी लगभग उसी या कुछ ज्यादा अंतराल में अमेठी का ये दूसरा दौरा रहा.
अमेठी में सवाल-जवाब
अमित शाह ने राहुल गांधी के उन सवालों के जवाब तो दिये ही जो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछे थे, अलग से सवाल भी पूछे. साथ ही, अमित शाह ने गांधी-नेहरू परिवार और मोदी के विकास मॉडल में फर्क भी समझाया.
अमित शाह ने कहा - 'राहुल पूछते हैं कि हमने क्या काम किया तो हम बता रहे हैं कि हमने सबसे पहले बोलने वाला पीएम देने का काम किया.' फिर सलाह भी दी - 'राहुल बाबा गुजरात मत घूमिये, अमेठी की जनता आप को ढूंढ रही है.'
मेरे सवालों का जवाब दो...
अमित शाह ने कहा, 'अमेठी के लोग आप की तीन पीढ़ी का हिसाब मांग रहे हैं. सत्तर साल का हिसाब मांग रहे हैं.'
और फिर शाह ने हिसाब भी मांगे - 'आप मोदी सरकार से तीन साल का हिसाब मांगते हो, मैं आपसे तीन पीढ़ी का हिसाब मांगता हूं. राहुल आप इतने साल से सांसद हैं, अमेठी में कलेक्ट्रेट ऑफिस क्यों नहीं शुरू हुआ? अस्पताल में टीबी यूनिट क्यों नहीं शुरू हुआ?'
अमित शाह ने समझाया कि न तो राहुल और न ही कांग्रेस की यूपीए सरकार ने अमेठी में कोई भी काम किया - और वादा कि बीजेपी की सरकारें यूपी को पांच साल में गुजरात बना देंगी.
बीजेपी में इतना जोश क्यों?
बीजेपी नेतृत्व मान कर चलने लगा है कि अमेठी जीतना असंभव नहीं है, खासकर मौजूदा हालात में. बीजेपी के तो कुछ नेताओं का यहां तक मानना रहा कि अगर 2014 में ही ध्यान दिया गया होता तो जीत नामुमकिन नहीं थी. दरअसल, आंकड़े भी ऐसी बातों का सपोर्ट करते हैं. जीत का मार्जिन घटना इसकी सबसे बड़ी वजह है.
राहुल गांधी पहली बार 2004 में अमेठी से चुनाव लड़े और जीत का अंतर रहा - 2,90,853. 2009 में ये थोड़ा बढ़ा और 3,70,198 दर्ज किया गया. जब 2014 के चुनाव हुए तो ये फासला सिकुड़ कर 1,07,903 पर पहुंच गया.
फिर जब 2017 के विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने अमेठी की पांच में से चार सीटें जीत लीं. तब कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था जिसमें सीटों को लेकर मतभेद रहे लेकिन उसे नजरअंदाज किया गया.
कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेठी में लोगों के बीच अमेठी छोड़ने की भी चर्चा है. संभव है इस चर्चा के पीछे कांग्रेस के विरोधियों का हाथ हो, लेकिन लोगों पर इसका असर तो होगा ही.
खबरों के मुताबिक ऐसी चर्चाओं में कहा जा रहा है कि राहुल गांधी 2019 में अपनी सीट बदल सकते हैं और रायबरेली शिफ्ट कर सकते हैं. इन्हीं में उनके कर्नाटक से भी चुनाव लड़ने की चर्चा है. वैसे तो 1999 में सोनिया गांधी भी दो सीटों से चुनाव लड़ी थीं - एक अमेठी और दूसरी कर्नाटक की बेल्लारी सीट से और दोनों जीती थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 2014 में वाराणसी और वडोदरा से चुनाव लड़े थे.
अमेठी 1967 से लोक सभा सीट बनी थी और तब से हुए 15 चुनावों में 13 बार कांग्रेस जीती है जिनमें नौ बार ये सीट गांधी परिवार के पास रही है. अमेठी को लेकर बीजेपी ने तो अपना इरादा साफ कर दिया है, लेकिन राहुल गांधी को लेकर कुछ सवाल जरूर हैं जिनके जवाब मिलने बाकी हैं.
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