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Updated: 15 जून, 2017 01:34 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अमरनाथ यात्रा आतंकियों के निशाने पर है. सुरक्षा बल हर खतरे को खत्म करने के जरूरी उपाय कर रहे हैं. छह घंटे के भीतर जम्मू कश्मीर के त्राल, पुलवामा और अनंतनाग सहित छह जगहों पर आतंकी हमले हुए हैं, जिनमें दर्जन भर जवान जख्मी हुए हैं.

घाटी के युवाओं में नया क्रेज देखने को मिल रहा है. वे तो गर्लफ्रेंड बनाने के लिए आतंकवाद का रास्ता अख्तियार करने लगे हैं.

लोक सभा के उपचुनाव होने पर महज सात फीसदी वोट पड़ते हैं - और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती द्वारा खाली की हुई सीट पर अब तक चुनाव कराना संभव नहीं हो पा रहा है.

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की सलाह है कि जम्मू कश्मीर में तत्काल प्रभाव से गवर्नर रूल लागू कर देना चाहिये. ये लागू तो हो जाएगा, लेकिन कब तक?

इतना डर क्यों?

उमर अब्दुल्ला की नजर में सूबे में सिस्टम पूरी तरह फेल हो चुका है. हफिंग्टन पोस्ट के साथ एक इंटरव्यू में अब्दुल्ला समझाते हैं - स्थिति कुछ ऐसी है जैसे लोग ऐसी बस पर सवार हैं जो चली जा रही है लेकिन उसका ड्राइवर ही नहीं है. अब्दुल्ला खुद ही तस्वीर भी साफ करते हैं.

बस में सवार लोगों से उनका आशय सिर्फ महबूबा मुफ्ती या बीजेपी नेताओं से नहीं है जिनके गठबंधन की सरकार का वहां शासन है. अब्दुल्ला उस बस में उन सभी पक्षों को उसी बस में सवार पाते हैं जिनका किसी न किसी रूप में वास्ता कश्मीर से पड़ रहा है. अब्दुल्ला के हिसाब से शासन सत्ता ही नहीं, घाटी में सक्रिय दहशतगर्द और यहां तक कि पाकिस्तान भी उसी बस पर सवार नजर आ रहा है.

kashmir situationगंभीर हो चुके हैं हालात...

अब्दुल्ला की बात को समझा जाय तो कभी ऐसा रहा होगा जब ऐसी सारी गतिविधियां पाकिस्तान से कंट्रोल होती रहीं, लेकिन अब सब कुछ बिलकुल अलग किसी ऑटोमोड में चल रहा है. यहां तक कि उमर अब्दुल्ला खुद को भी उसी बस में सवार मानते हैं.

ठीक साल भर पहले ऐसी हालत नहीं थी. अब्दुल्ला की मानें तो उन्हें अपने इलाके में जाने के लिए भी साहस जुटाना पड़ता है.

महबूबा का भी विरोध

कश्मीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर की ओर से कला और शिल्प पर महिलाओं के लिए एक ट्रेनिंग प्रोग्राम चल रहा था. अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को वहां न जाने की सलाह दी थी, लेकिन उसकी परवाह न करते हुए महबूबा वहां पहुंचीं. विरोध के चलते कार्यक्रम शुरू होने के 20 मिनट बाद ही महबूबा को वहां से जाना पड़ा.

मीडिया से बातचीत में विरोध कर रही महिलाओं ने कहा - वो हमारा शोषण कर हमारा राजनीतिक कारणों के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे. ये हम कैसे बर्दाश्त कर लेते. हमारे युवाओं को हर दिन मारा-पीटा जा रहा है. महिलाएं बहुत गुस्से में थीं.

गवर्नर रूल तो ठीक है, लेकिन...

मुफ्ती मोहम्मद सईद की मौत के बाद महबूबा मुफ्ती का मुख्यमंत्री बनना तय था, लेकिन महबूबा ने इसे काफी दिनों तक टाले रखा. उन दिनों उमर अब्दुल्ला ताल ठोक कर महबूबा को चैलेंज किया करते थे - या तो कुर्सी संभालो या फिर नया जनादेश लो. कांग्रेस नेता भी कुछ उसी अंदाज में महबूबा को ललकार रहे थे.

लेकिन अब उमर अब्दुल्ला का भी नजरिया बदल चुका है. वो खुद भी अभी चुनाव के पक्ष में कतई नहीं है. बातचीत से तो ऐसा लगता है जैसे चुनाव होने पर उन्हें खुद भी जीत का भरोसा नहीं है.

अनंतनाग में उपचुनाव अभी तक नहीं कराया जा सका है. अनंतनाग में श्रीनगर लोक सभा सीट के साथ ही चुनाव होना था, लेकिन स्थिति बिगड़ने पर टालना पड़ा. श्रीनगर में भी वोटिंग महज सात फीसदी ही दर्ज की जा सकी. श्रीनगर से उन्हीं वोटों के बूते उमर अब्दुल्ला के पिता फारूक अब्दुल्ला विजेता घोषित किये गये.

फिर उपाय क्या है? उमर अब्दुल्ला के हिसाब से तो जम्मू कश्मीर में फौरन गवर्नर रूल लागू कर देना चाहिये. लेकिन गवर्नर रूल कब तक चलेगा? इस सवाल का जवाब उनके पास भी नहीं है.

सच तो यही है कि कश्मीर के हालात बहुत खराब हो चुके हैं. स्थिति महबूबा मुफ्ती के भी कंट्रोल से बाहर हो चुकी है. उमर के गवर्नर रूल की सलाह से पहले से ही महबूबा सरकार पर उसका खतरा मंडरा रहा है. देखा जाय तो उन्हें तीन महीने की मोहलत मिली हुई है और उसमें भी काफी वक्त बीत चुका है. खुद महबूबा मुफ्ती भी कह चुकी हैं कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही कश्मीर समस्या को सुलझा सकते हैं, लेकिन केंद्र सरकार की ओर से भी अब तक कश्मीर को लेकर कोई ठोस पहल देखने को नहीं मिली है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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