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Updated: 26 फरवरी, 2017 07:12 PM
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एक तरफ बिहार में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की मांग जोर पकड़ रही है और दूसरी तरफ नीतीश कुमार नये मिशन पर काम कर रहे हैं. पहले आरजेडी नेता, फिर राबड़ी देवी और उसके बाद तेजस्वी को लेकर, मजाक में ही सही, लालू भी अपने साथ साथ नीतीश को बूढ़ा बता चुके हैं.

इन तमाम बातों से बेपरवाह नीतीश कुमार इन दिनों दिल्ली में दखल बढ़ाने की तैयारी में जुटे हैं.

दिल्ली में दखल

यूपी में चुनाव अभियान के जोर पकड़ने से पहले तक नीतीश कुमार हद से ज्यादा सक्रिय रहे. मगर, एक दिन अचानक उन्होंने कार्यकर्ताओं को बुला कर कह दिया कि जेडीयू न तो यूपी में उम्मीदवार उतारेगा और न ही वो खुद चुनाव प्रचार करने जाएंगे.

तो क्या यूपी चुनाव से कट जाने की वजह दिल्ली के एमसीडी चुनाव की तैयारी थी. क्या नीतीश कुमार को दिल्ली एमसीडी चुनावों के लिए ही वक्त की जरूरत थी इसलिए उन्होंने यूपी में सक्रियता से तौबा कर लिया.

nitish-kumar_650_022617070528.jpgअब दिल्ली पर नजर...

बीएमसी चुनाव के नतीजों ने महाराष्ट्र में बीजेपी की ताकत में इजाफा कर दिया है. इधर दिल्ली में भी योगेंद्र यादव का स्वराज अभियान अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने की तैयारी कर रहा है. योगेंद्र यादव के तो दो मकसद हैं. एक, खुद की ताकत आजमाना और दूसरे पुराने साथी अरविंद केजरीवाल से हिसाब चुकता करना.

लेकिन नीतीश के लिए एक बड़ी मुश्किल होगी अरविंद केजरीवाल से उनकी दोस्ती. बिहार चुनाव में भी केजरीवाल ने नीतीश का सपोर्ट किया था. बाद में भी मोदी विरोधी राजनीति में दोनों अक्सर साथ देखे गये हैं - सिर्फ नोटबंदी को छोड़कर.

राह में रोड़े

दिल्ली म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में कुल 272 सीटें हैं जिन पर फिलहाल बीजेपी और कांग्रेस का कब्जा है. जेडीयू ने सभी 272 सीटों पर चुनाव लड़ने की ऐलान किया है.

नीतीश के लिए बीजेपी को टक्कर देने के लिए तो एमसीडी बढ़िया मैदान है, लेकिन अगर वो चुनाव मैदान में उतरते हैं तो उन्हें आप के साथ साथ कांग्रेस से भी टकराव मोल लेना होगा. बिहार में सत्तारुढ़ महागठबंधन में कांग्रेस नीतीश के साथ है.

होली बाद अप्रैल में संभावित एमसीडी चुनाव को केजरीवाल सरकार के लिए जनमत संग्रह के रूप में भी देखा जाएगा. जिस दिल्ली से विधानसभा की 70 में से 67 सीटें केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के पास हैं - उनकी सरकार के दो साल बाद दिल्ली के लोग क्या सोचते हैं, एमसीडी चुनाव के नतीजे बताएंगे.

नीतीश के एमसीडी चुनाव में हिस्सेदारी की वजह बिहार और यूपी के लोगों की अच्छी खासी तादाद है. देखा जाये तो नीतीश की पार्टी उन्हीं लोगों से उम्मीद के बूते चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है.

ये पूर्वांचल के लोगों का ही प्रभाव है कि एक दौर में केजरीवाल के खिलाफ किरण बेदी को आजमा चुकी बीजेपी मनोज तिवारी को कमान सौंप चुकी है. मनोज तिवारी लोकप्रिय भोजपुरी गायक होने के साथ साथ भोजपुरी फिल्मों में भी काम कर चुके हैं.

इस तरह देखा जाये तो पूर्वांचल के लोगों का इन दिनों खासा दबदबा है. यूपी विधानसभा चुनाव के आखिरी दो चरणों में भी आखिरी फैसला उन्हें ही सुनाना है - और उसी से तय होगा कि इस बार होली किस रंग से खेली जाएगी. नीतीश कुमार की भी होली के रंग को लेकर दिलचस्पी जरूर होगी.

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