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Updated: 05 अगस्त, 2016 08:08 PM
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गुजरात में आनंदीबेन पटेल के बाद विजय रुपानी नए मुख्यमंत्री घोषित किए जा चुके हैं. वहीं इस पद की दौड़ में फ्रंट-रनर माने जा रहे नितिन पटेल को डिप्टी मुख्यमंत्री घोषित किया गया है. इस फैसले से बीजेपी ने कोशिश की है कि राज्य में नेतृत्व को लेकर पार्टी में किसी तरह की कलह की स्थिति न पैदा होने पाए जिससे नई सरकार को आनंदीबेन की सरकार के दौरान हुए नुकसान की भरपाई करने में किसी दिक्कत का सामना न करना पड़े. पार्टी के इस फैसले से एक बात साफ है कि राज्य में बीते दो साल के दौरान उभरे कुछ गंभीर मुद्दे नई सरकार और नए मुख्यमंत्री के लिए कांटों भरा ताज साबित होंगे.

आनंदीबेन पटेल को जब 2014 में गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया, उन्होंने शपथ इस वादे के साथ लिया कि वह गुजरात में विकास के मापदंड को लगातार जारी रखेंगी. ठीक उसी तरह जैसे अपने तीन टर्म के शासन में नरेन्द्र मोदी ने बतौर मुख्यमंत्री किया. आनंदीबेन ने मोदी के नए नारे सबका साथ सबका विकास से अलग अपने लिए गतिशील गुजरात का नारा चुना. लेकिन उनके दो साल के कार्यकाल के दौरान गुजरात में पाटीदार आंदोलन, ऊना दलितकांड, पार्टी की अंदरूनी कलह और अंत में 75 साल की उनकी उम्र पर विवाद छाया रहा. इन परिस्थितियों के बीच आखिरकार उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ गया.

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 विजय रुपानी बने गुजरात के नए मुख्यमंत्री

राज्य में विधानसभा चुनाव 2017 में होने हैं. लिहाजा राज्य के नए मुख्यमंत्री के लिए गुजरात की गद्दी एक कांटों से भरे ताज जैसा साबित होने की उम्मीद है. जानकारों की मानें तो आनंदीबेन पटेल के कार्यकाल में गुजरात सरकार ने काम बहुत किया लेकिन वह अपनी योजनाओं की मार्केटिंग करने में विफल वो हो गईं. और लगातार उनका ग्राफ नीचे गिरता रहा. लिहाजा नए मुख्यमंत्री से उम्मीद यही रहेगी कि वह नरेन्द्र मोदी की तरह अपने काम की भरपूर मार्केटिंग करें जिससे आगामी चुनावों में वह अपनी लोकप्रियता का फायदा उठाते हुए सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले सकें.

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 उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल

नये मुख्यमंत्री के लिये सबसे बडी चुनौती के तौर पर पाटीदार आंदोलन और ऊना दालितकांड ही रहेगा. इन दोनों मुद्दों से बीते दो साल के दौरान पार्टी की मजबूत सरकार की छवि को जोरदार झटका दिया है. अपने 12 साल के कार्यकाल के दौरान मोदी ने जातिवाद की राजनीति को दरकिनार कर विकास मॉडल को सर्वोपरि साबित किया और सरकार की यही छवि बनी कि वह विकास करने वाली है. लेकिन बीते दो साल के दौरान प्रदेश में लोग सरकार की इस छवि को भूल चुके हैं और उनके सामने पाटीदार आंदोलन और उना दलितकांड जैसी सरकार की दो बड़ी विफलताएं हैं. इनके चलते आज हार्दिक पटेल राज्य में हीरो बन चुके हैं और आनंदीबेन को एक समाज विरोधी के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि अपनी इस विफलता को ढ़ंकने के लिए आनंदीबेन ने राज्य में आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा भी की लेकिन वह भी डैमेज कंट्रोल करने में चूक गई.

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लगभग दो दशकों से बीजेपी पाटीदारों के सहारे राज्य की सत्ता पर काबिज है. लिहाजा नए मुख्यमंत्री से उम्मीद होगी कि वह किसी तरह पाटीदार को वापस सरकार के पक्ष में करें. हालांकि हीरो बने हार्दिक पटेल पहले ही बयान दे चुके हैं मुख्यमंत्री कोई भी बने वह आरक्षण की लड़ाई जारी रखेंगे.

नए मुख्यमंत्री के लिए दूसरा अहम मुद्दा दलितों का है. हाल में गौरक्षा के नाम पर उना में दलितों की पिटाई के मामले के बाद पूरा का पूरा दलित समाज सड़कों पर उतर आया. कई दलितों ने इस विरोध के दौरान आत्मदाह करने की कोशिश भी की. अहमदाबाद में हुए दलित महासम्मेलन में समुदाय ने साफ कर दिया कि इस घटना के बाद वह पूरी तरह से बीजेपी सरकार के खिलाफ लामबंद हो गए हैं. इस दौरान अहमदाबाद में दलित-मुस्लिम भाई-भाई का नारा भी गूंजा और मुस्लिम समाज दलितों के समर्थन में कूद पड़ी. इससे सत्तारूढ बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई हैं. अब बीजेपी की चुनौती किसी तरह दलित और मुसलमान वोटर के सामने अपनी गैरसंप्रदायिक छवि को आगे बढ़ाने की होगी. लिहाजा, नए मुख्यमंत्री को इन दोनों वोट बैंक में लगी संभावित सेंध की भरपाई करनी होगी और पूरी कोशिश कर इनमें से अधिकांश को अपने साथ करने की कवायद करनी होगी.

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सबसे अंत में नए मुख्यमंत्री के लिए एक और गंभीर चुनौती आम आदमी पार्टी से मिल रही है. अरविंद केजरीवाल गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी को लड़ाने की पूरी तैयारी कर चुके हैं. केजरीवाल की कोशिश पाटीदार, दलित और मुस्लिम वोटर को साधकर बीजेपी को चुनौती देने की है. लिहाजा आम आदमी पार्टी से मिलने वाली यह चुनौती भी नए मुख्यमंत्री के लिए ताज में लगे एक जहरीले कांटे की तरह साबित हो सकती है. आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष पहले ही दावा कर चुके हैं कि गुजरात में एक कठपुतली सरकार को हटाकर दूसरी कठपुतली सरकार बनाई जा रही है. लिहाजा नए मुख्यमंत्री को यह साबित करने की भी चुनौती है कि वह न तो कठपुतली सरकार है और न ही वह विपक्ष को राज्य में हावी होने का कोई मौका देगी.

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