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Updated: 23 दिसम्बर, 2016 01:13 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भ्रष्‍टाचार का सीधा आरोप लगाया तो उसके जवाब का इंतजार पूरे देश को था. मोदी ने अगले ही दिन उसका बराबर जवाब दिया. और इससे 3 बातें एक बार फिर साफ हो गईं...

1. भाषण देना एक कला है.

2. राहुल गांधी इस मामले में बिलकुल अज्ञानी हैं.

3. मोदी इस कला के मंजे हुए खिलाड़ी या कहें क्रूर शिकारी हैं. जो अपने विरोधियों को जरा भी नहीं बख्‍शते.

मोदी ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में 30 मिनट का भाषण दिया. कार्यक्रम में बैठी जनता को पूरा अंदाजा था कि यह कोई औपचारिक कार्यक्रम नहीं होगा. 13 मिनट तक बोलने बाद मोदी मुद्दे पर पहुंचे. और अगले 17 मिनट उन्‍होंने नोटबंदी और इसके विरोधियों के नाम कर दिए.

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बीएचयू में नरेंद्र मोदी

हलकी-फुलकी भूमिका

सभा में मौजूद लोगों का साथ लेने के लिए मोदी ने नोटबंदी के बारे में शुरुआत की कि 'देश में इस समय एक बहुत बड़ा सफाई अभियान चल रहा है...'. वे सिर्फ इतना कहकर थोड़ी देर के लिए खामोश हो जाते हैं. उनकी यह खामोशी लोगों को ताली बजाने और मुस्‍कुराने का मौका देती है.

संस्‍कारों का तीखा डीएनए टेस्‍ट

अपने संस्‍कार और नोटबंदी का विरोध करने वालों के संस्‍कार में ईमानदारी और बेइमानी वाला फर्क बताते हुए मोदी कहते हैं कि वे सोच भी नहीं पाए कि कुछ नेता और कुछ दल हिम्‍मत के साथ बेइमानों के साथ खड़े हो जाएंगे. मोदी अच्‍छी तरह से जानते हैं कि कांग्रेस को बेइमानी से जोड़ देने उनके लिए बाएं हाथ की बात है.

मिसाल-बेमिसाल

1. कालाबाजारी जैसे कचरे का ढेर: मोदी देश में व्‍याप्‍त कालाबाजारी को वर्षों से जमा कचरे का ढेर बताते हैं. वे जाहिर करते हैं कि यदि ये नोटबंदी नहीं होती तो कचरे के ढेर की सड़ांध में रहना मुश्किल था. वे देर नहीं लगाते हैं बनारस से खुद को कनेक्‍ट करने में. लोग तब 'हर-हर महादेव' का घोष करने लगते हैं, जब मोदी कहते हैं कि भाले बाबा की धरती में आशीर्वाद है जो उन्‍हें कचरे की यह गंद साफ करने की ताकत देता है.

2. विपक्षी नेता जैसे पाक सैनिक: मोदी फिर वो मिसाल रखते हैं, जिससे भारतीय नफरत करते हैं. वे विपक्ष के आरोपों को पाक सैनिकों की सीमा पर होने वाली फायरिंग की तरह बताते हैं. जो घुसपैठियों को फायदा पहुंचाने के लिए की जाती है और नोटबंदी के दौर में उसका फायदा  कालाबाजारी करने वालों को मिल रहा है.

3. विरोधियों का गठजोड़ जैसे जेबकतरों की चाल: यह तीसरी और सबसे तीखी मिसाल रही. मोदी कहते हैं कि जैसे जेबकतरे आपस में तालमेल बनाकर लोगों की जेब से हाथ साफ करते हैं. उसी तरह विपक्ष सरकार का ध्‍यान दूसरी ओर बंटा रहा है ताकि कालाधन जमा करने वाले अपना पैसा आसानी से ठिकाने लगा लें.

पीपुल्‍स कनेक्‍ट

बिना लाग-लपेट के सीधी बात- 'जनता को कष्‍ट कम नहीं हुआ है'. और वे कष्‍ट शब्‍द पर जोर देते चले जाते हैं और ये कहने में कोई कंजूसी नहीं करते कि देश की सवा सौ करोड़ जनता तो जो कष्‍ट भोग रही है, उसकी दुनिया में मिसाल नहीं मिलेगी. लेकिन उसी सांस में वह यह कहने से भी नहीं चूकते कि लोग यह कष्‍ट इसलिए सह रहे हैं, क्‍योंकि उन्‍हें उम्‍मीद है कि इससे देश का भला होगा. मोदी इस बात के लिए जनता को बार-बार नमन करने का कहते हैं.मोदी जानते हैं कि नोटबंदी की सफलता का सारा दारोमदार जनता की भावना से जुड़ा हुआ है. यदि वह संतुष्‍ट है, तभी तक उनका जलवा है. इसलिए वे यह भी जोड़ देते हैं कि लोग छह-छह घंटे कतार खड़े हैं, तकलीफ सह रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद जब उनसे मुंह में अंगुली डाल-डालकर पूछा जाता है तो भी लोग यही कहते हैं कि 'मोदी ने किया तो अच्‍छा है'.

होशियारी भरी हिट-लिस्‍ट

मोदी पर एक दिन पहले ही राहुल गांधी ने हमला किया था, लेकिन मोदी का जवाबी हमला मनमोहन सिंह से शुरू होता है. कांग्रेस में सबसे गंभीर माने जाने वाले नेता, देश के पूर्व प्रधानमंत्री और जाने-माने अर्थशास्‍त्री. फिर वे कांग्रेस सरकार में वित्‍त मंत्री रहे चिदंबरम को आड़े हाथ लेते हैं. दोनों नेताओं पर कांग्रेस सरकार की नाकामी ही बयान करने का तर्क देकर वे आगे बढ़ जाते हैं. लोगों की उम्‍मीद के विपरीत मोदी हमले के लिए राहुल गांधी पर सबसे आखिरी में निशाना लगाते हैं.मोदी सिर्फ इतना कहकर रुक जाते हैं कि, 'उनके एक युवा नेता हैं...', और सभा में हंसी फूट पड़ती है. मोदी को पूरा अंदाजा रहता है कि उनके मुंह से राहुल गांधी का जिक्र आने पर लोग आनंद लेते हैं. और मोदी यह आनंद देने का मौका यहां भी नहीं छोड़ते. वे राहुल की नकल उतार देते हैं.

श्रोता का उत्‍तम चुनाव

2014 के चुनाव से लेकर बनारस के भाषण तक यदि मोदी की सभाओं पर नजर डालें तो यह बात कॉमन है कि वे अपार जनसमूह और विद्वतजनों की सभा को अलग-अलग तरह से एड्रेस करना जानते हैं. वे राहुल गांधी की बात का जवाब किसी आम सभा में भी दे सकते थे, लेकिन उन्‍होंने बीएचयू में अपनी बात कही. दरअसल, इस बात को राहुल और मोदी की सभा के लाइव टेलिकास्‍ट से समझा जा सकता है. मोदी के भाषण पर सिर हिलाते हॉल में मौजूद बुद्धिजीवियों ने ज्‍यादा असर किया, ब‍जाए महेसाणा की ग्रामीणों के, जो राहुल गांधी के बेहद तकनीकी लग रहे रहस्‍योद्घाटन पर कोई सहज प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी. राहुल महेसाणा की जनता के बीच 'Fire bombing' शब्‍द का इस्‍तेमाल करते हैं. मोदी सहज भाव में अपनी बात कहते चले जाते हैं, जबकि राहुल गांधी बीच-बीच किसी पहले से लिखे हुए भाषण या विषयों की सूची पर नजर डालते रहते हैं.

मोदी यदि किसी ऐतिहासिक तथ्‍य का जिक्र नहीं कर रहे हैं तो उनके भाषण में गलती की कोई गुंजाइश नहीं रहती. बनारस में उनका भाषण ऐसा ही था. वे कांग्रेस, खासकर राहुल गांधी को लेकर बेहद निर्मम रहे. उन्‍हें पता था कि राहुल गांधी दो घंटे बाद बहराइच में भाषण देने वाले हैं, इसलिए वे लोगों के बीच उन्‍हें एक नॉन-सीरियस किरदार के रूप में छोड़ना चाहते थे. और इसमें वे कामयाब भी रहे.

लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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