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Updated: 23 अगस्त, 2016 03:30 PM
रीमा पाराशर
रीमा पाराशर
  @reema.parashar.315
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कश्मीर घाटी में हिंसा को 45 दिन हो गए हैं, ज़ाहिर है केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से पूछा जाने लगा है की आखिर कश्मीर के हालात पर उसकी रणनीति क्या है और वो हिंसा को रोकने के लिए क्या कर रही है? सरकार भले ही सर्वदलीय बैठक बुलाए या विपक्षी नेताओं से मिले, एक बात जो इस पूरी स्थिति में साफ हो रही है वो ये है कि मोदी सरकार इस बार नरमी के मूड में नहीं है. हिंसा और कर्फ्यू के बीच जलते कश्मीर को लेकर सरकार का रुख साफ है कि भले ही हालात पर काबू पाने में और समय लग जाए लेकिन प्रदर्शनकारियों के सामने झुका नहीं जाएगा.

सरकार की इस रणनीति के संकेत केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आजतक और इंडिया टुडे से खास बातचीत में दिए. जेटली ने साफ कहा कि जो लोग हाथ में पत्थर या हथियार लिए हों उनके साथ सहानुभूति नहीं हो सकती क्योंकि ऐसे लोग देश के हिमायती नहीं. पहले वो पतथर फेंके तभी बात होगी. जेटली ने कहा की पाकिस्तान हथियार और पैसे देकर कश्मीर के युवाओं को गुमराह कर रहा है और इसमें उसकी मदद इस पार बैठे लोग भी कर रहे हैं. और अब आतंकियों को दिखाना होगा की उनकी बन्दूक का जवाब सुरक्षा बलों के पास भी है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही सर्वदलीय बैठक में नौजवानों से पत्थर फेंककर किताब उठाने की अपील की और सभी दलों को कश्मीर समस्या पर बातचीत का भरोसा दिलाया लेकिन जेटली ने सरकार की हार्डलाइन छवि को आगे करते हुए साफ किया कि कश्मीर का हल सिर्फ संविधान के दायरे में है कहीं और नहीं. और बातचीत हथियार फेंकने के बाद ही संभव है. देश की सुरक्षा से कोई समझौता व हिंसा करने वालों के साथ कोई रहम नहीं होगा.

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 पीएम मोदी की कश्मीर के विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात

सरकार के इन दो अलग बयानों ने ये तो साफ कर दिया है की एक तरफ वो कश्मीर में जनता और राजनैतिक दलों को साथ लेकर चलने की हिमायती है वहीं दूसरी तरफ मोदी किसी भी सूरत में पाकिस्तान या आतंकियों को ये सन्देश नहीं देना चाहते कि वो किसी भी तरह की हिंसा के आगे झुकेंगे.

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी ये कहकर कहीं न कहीं सरकार की मौजूदा कश्मीर नीति पर सवाल खड़े किए हैं कि "अटल बिहारी वाजपेयी 2 साल में कश्मीर समस्या का हल निकाल लेते लेकिन उनके बाद आई सरकारें ऐसा नहीं कर पाईं." ये बयान सिर्फ बीजेपी के सर्वे सर्वा का ही नहीं है बल्कि सरकार और पार्टी में बैठे लोग भी इस चर्चा में लगे हैं की आखिर सरकार की नीति है क्या. क्यों सिर्फ बयानबाजी से ही कश्मीर हिंसा को रोकने की कोशिश हो रही है.

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इन दो सालों में मोदी सरकार की पाकिस्तान नीति पर कई सवाल उठे और विपक्ष ने मोदी पर पाकिस्तान के प्रति नरमी के आरोप लगाए. शायद इसीलिए अब सरकार ऐसी कोई गलती नहीं करना चाहती. पाकिस्तान की आज़ादी के दिन मोदी का पिछले साल की तरह पाकिस्तान को बधाई न देना और अरुण जेटली का रद्द हुआ पाकिस्तान दौरा सरकार की बदलती रणनीति का ही आइना है. मुमकिन है कि मोदी के पिटारे में इस मुद्दे के हल के लिए ऐसा कुछ हो जिसे भविष्य में सामने लाया जाए. फिलहाल तो ये साफ है कि मोदी कश्मीर के हालात पर आक्रमणकारियों के आगे सर झुकाकर नहीं बल्कि तनकर खड़े होने की नीति को लागू कर रहे हैं और संकेत सीमा पार दिया जा रहा है कि वो ऐसी हिंसा से भारत को हिला नहीं सकता.

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रीमा पाराशर रीमा पाराशर @reema.parashar.315

लेखिका आज तक में पत्रकार हैं.

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