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Updated: 30 मार्च, 2017 04:16 PM
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मुमकिन है यूपी की योगी सरकार भी जल्द ही केंद्र की मोदी सरकार की राह चलने लगे. कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी अगर अखिलेश यादव के कामों को योगी सरकार जस का तस अपना ले, जिन्हें कारनामा बताकर चुनावों में भारी जीत हासिल की है.

लोक सभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में जो आठ हथियार गिनाये वे उसी जमाने के हैं जब देश में मनमोहन सिंह की सरकार हुआ करती थी - और उसकी खामियों का ढोल पीट कर बीजेपी सत्ता तक पहुंच पाई.

मनरेगा से आधार तक

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में समझाया कि कैसे मनमोहन सिंह ने बड़ी ही कुशलता से रेनकोट पहनकर कांग्रेस काल के भ्रष्टाचार से भरे बाथरुम का इस्तेमाल किया और अपने ऊपर एक छींटा भी नहीं पड़ने दिया. 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान मोदी मनमोहन सरकार की हर स्कीम में खामी खोज कर उसका मजाक उड़ाते रहे, लेकिन बाद में देखा गया कि उनकी सरकार भी धीरे धीरे उन्हीं योजनाओं को आगे बढ़ाने लगी जो 10 साल के शासन में शुरू हुई थीं.

modi-yogi_650_033017040002.jpgसबका साथ... सबका विकास...

प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद भी मोदी लोगों को समझाते रहे कि अगर पिछली सरकारों ने ठीक से काम किया होता और देश की तरक्की हुई होती तो आजादी के इतने साल बाद भी गरीबों को मजदूरी नहीं करनी पड़ती. उनका इशारा मनरेगा के तहत गरीबों के मजदूरी करने की ओर रहा. ये सुनकर अच्छा लगा और सोच कर तो और भी अच्छा लगता है कि वाकई समुचित विकास हुआ होता तो मनरेगा के तहत जो काम गरीबों को करना पड़ रहा है वहां मशीनें होतीं और वे लोग बस उसे ऑपरेट कर रहे होते.

लेकिन ज्यादा दिन नहीं बीते और मालूम हुआ कि मोदी सरकार भी मनरेगा को पाल पोस कर बड़ा करने लगी है. मनरेगा के 10 साल पूरे होने पर मालूम हुआ कि मनरेगा को राष्ट्र के लिए गौरव समझा जाने लगा है.

आधार को लेकर भी तब बीजेपी नेताओं के ऐसे विचार नहीं थे, जैसा मंत्री बनने के बाद सुनने को मिलते हैं. सुप्रीम कोर्ट की इस हिदायत के बावजूद कि आधार का इस्तेमाल मैंडेटरी नहीं हो सकता, केंद्र सरकार धीरे धीरे ऐसे उपाय करती जा रही है कि बगैर आधार के किसी का कोई आधार ही न बचे.

आधार के खतरे पर लगातार बहस चल रही है, लेकिन उसे सरकारी अमला अनसुना कर रहा है. ताजा मामला क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की पत्नी साक्षी धोनी ने उठाया है. जब साक्षी ने केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से अपनी शिकायत दर्ज करायी तो उन्होंने दार्शनिक जवाब से लाजवाब करने की कोशिश की. इस पर साक्षी ने फौरन सबूत दे डाले तब जाकर वो नरम पड़े - और फिर सरकार को चेतना आ पाई. अब लोगों की निजी जानकारियां ऑनलाइन शेयर न करने के आदेश दिये जा रहे हैं. लेकिन क्या इससे खतरा खत्म हो जाएगा? बिलकुल नहीं, सरकार हमेशा डाल-डाल और अपराधी पात-पात ही रहते आये हैं.

मनमोहन के जमाने के हथियार

लोक सभा में एक सवाल के जवाब में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मामलों के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार जीरो टॉलरेंस की अपनी नीति पर पूरी तरह सक्रिय और प्रतिबद्ध है. फिर उन्होंने बताया कि सरकार ने ऐसे कई उपाय किये हैं जिनसे भ्रष्टाचार को काबू में रखा जा सके.

अब जरा उपायों पर गौर कीजिए - सूचना का अधिकार कानून, बड़ी खरीदारियों में ईमानदारी से जुड़ी शर्त का जोड़ा जाना, सरकारी अधिकारियों की संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक किया जाना, अतिरिक्त स्पेशल सीबीआई कोर्ट बनाना, ई-गवर्नेंस की शुरुआत करना और डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम. जी हां, ये ही वे सारे उपाय हैं जिनकी मदद से मोदी सरकार भ्रष्टाचार से जंग लड़ रही है.

modi-manmohan_650_033017040911.jpgकाम बोलता है...

अब ये भी जान लीजिए कि इन उपायों की नींव कब पड़ी. 2005 में आरटीआई एक्ट लागू हुआ तब देश में मनमोहन सिंह की सरकार थी. मनमोहन की पहली ही पारी में 2007 में सेंट्रल विजिलेंस कमीशन ने सिफारिश की थी कि सरकारी विभाग बड़ी खरीदारी करते वक्त ईमानदारी से जुड़ी शर्त जोड़ दिया करें. 2011 में जब मनमोहन की दूसरी पारी थी तब एक सरकारी आदेश से ग्रुप ए अफसरों की अचल संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करने की शुरुआत हुई. जहां तक अतिरिक्त सीबीआई अदालतों का सवाल है तो 2009 से 2011 के बीच 54 ऐसे कोर्ट शुरू किये जा चुके थे और कुल 71 अदालतें बनाने का फैसला हुआ था. रही बात डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम की तो 2013 में ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी.

मई में मोदी सरकार अपनी तीन साल की उपलब्धियां गिनाएगी तो वहां भी ऐसी बातें देखने को मिल सकती हैं. जब प्रधानमंत्रियों की तुलना होती है तो भी मोदी की तुलना इंदिरा गांधी से ज्यादा और अटल बिहारी वाजपेयी से न के बराबर की जाती है. यही छाप मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के नारे पर भी दिखने लगी है. कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस के नेताओं को बीजेपी में लाकर ही देश को कांग्रेस मुक्त बनाने की रणनीति चल रही है? मणिपुर में मुख्यमंत्री और उत्तराखंड के ज्यादातर बीजेपी नेताओं पर ध्यान दीजिए, सबके डीएनए में कांग्रेस ही है.

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