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Updated: 02 सितम्बर, 2017 03:12 PM
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मोदी सरकार के लिए अगले पांच वर्ष 'संकल्प से सिद्धि' के साल हैं. मंत्रिमंडल के फेरबदल में ये वैसे ही है जैसे कोई विजन डॉक्युमेंट होता है, जिसमें 'अच्छे दिन' और 'नया इंडिया' से लेकर बीजेपी का 'स्वर्णिम काल' एजेंडा भी समाहित है. इस बीच, जानी मानी मैगजीन फोर्ब्स का सर्वे आया है. ये सर्वे वैसे तो अच्छे दिनों के खिलाफ जाता है, लेकिन इसमें कुछेक अच्छी बातें भी हैं.

अच्छी बात ये है कि 53 फीसदी लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन 63 फीसदी का मानना है कि ऐसी कोशिशों का आम लोगों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला. फोर्ब्स के इसी सर्वे में पाया गया है कि देश में रिश्वतखोरी की दर 69 फीसदी है, जबकि पाकिस्तान में ये 40 फीसदी पायी गयी है. सबसे खराब बात ये है कि 18 महीने के इस सर्वे में भारत को टॉप-5 मुल्कों में पहला स्थान मिला है - जबकि पाकिस्तान चौथे पायदान पर है.

बुरी खबर एक ये भी आयी है कि मोदी कैबिनेट के एक मंत्री की छुट्टी की वजह भ्रष्टाचार बना है. मोदी सरकार के भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के दावे पर बीते तीन साल में लगा ये पहला दाग है.

दाग अच्छे हैं...

एक विज्ञापन की लाइन है - अगर दाग लगने से कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे हैं, सही बात है. दाग का सामने आ जाना और अच्छी बात है. दाग के खिलाफ एक्शन होना उससे भी अच्छी बात है - और दाग को सबके सामने पेश कर दिया जाना सबसे अच्छी बात होगी.

narendra modiदाग बुरे नहीं होते, अगर एक्शन भी हो...

मोदी सरकार के जिस मंत्री पर भ्रष्टाचार का दाग लगा है वो खुफिया एजेंसियों के रडार पर काफी दिनों से थे. 'आज तक' को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के अनुसार उनका फोन भी टैप हो रहा था, कंफर्म तब हुआ जब एक हाई प्रोफाइल छापे के दौरान चार लोगों को गिरफ्तार किया गया. गिरफ्तार लोगों में से एक ने पूछताछ में मंत्री के साथ सौदेबाजी की बात बतायी. इस मामले से जुड़ी पूरी फाइल प्रधानमंत्री कार्यालय के पास है और मंत्री को इस्तीफा देने को कहा गया है. सीबीआई ने इस बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ भी बोलने से इंकार किया है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सीबीआई ने जो शिकायत दर्ज की है उसमें संबंधित मंत्रालय के अज्ञात अधिकारियों का जिक्र है, जिनके लिए रिश्वत की रकम रखी गयी थी.

मामला संदिग्ध तो है लेकिन असलियत जांच पूरी होने पर ही पता चलेगी. मालूम होने से ये तो तय है कि दाग धुल जाएंगे. अब सवाल ये है कि सिर्फ मंत्री पद ही जाएगा या वो जेल भी भेजे जाएंगे?

क्या उस मंत्री का नाम भी सामने आएगा? या केवल इसी बात से संतोष करना होगा कि एक भ्रष्ट मंत्री पकड़ा गया और उसे पद से हटा दिया गया. यूपीए शासन में तो ऐसे कई मामले देखने को मिले थे. तीन साल बाद इस तरह का ये पहला मामला पता चला है. भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस के लिए इम्तिहान की घड़ी है.

सत्ता पक्ष को ये समझना होगा कि ये कोई सर्जिकल स्ट्राइक नहीं है कि सिर्फ अरविंद केजरीवाल जैसे कट्टर मोदी विरोधी ही उसके साक्ष्य मांगेंगे - सबूत मांगने वाले और भी हैं. बहुत सारे हैं.

चुनावी चेहरे कौन?

मोटे तौर पर मंत्रियों के कामकाज का जो ऑडिट हुआ है उसमें किसी तरह के रैंकिंग की बात नहीं है. एक वे रहे जिन्होंने उम्दा प्रदर्शन किया, दूसरे वे जो ठीक ठाक पाये गये और तीसरे वे जो किसी काम के नहीं रहे. किसके साथ क्या सलूक हो इसका अधिकार केवल प्रधानमंत्री मोदी के पास है - और जैसा नजर आ रहा है, अमित शाह के पास भी.

कयासों के कोई सिर पैर तो नहीं होते, लेकिन ऊपरी तौर पर जो संकेत मिलते हैं उन्हीं को आधार बनाया जाता है. कैबिनेट फेरबदल में इसी आधार पर अंदाजा लगाया जाता है कि मंत्री बनने की प्रबल संभावना किसकी है? ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं. यूपी चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए न जाने कितने नामों पर चर्चा हुई. मनोज सिन्हा को तो मान ही लिया गया कि जो बनारस में जो पूजा पाठ कर रहे थे वो शपथ से पहले के थे, लेकिन अचानक से योगी आदित्यनाथ प्रकट हुए और मुख्यमंत्री बन गये.

narendra modi, amit shahसंकल्प से सिद्धि की ओर...

माना जा रहा है कि जिन राज्यों में जल्द ही चुनाव होने हैं उन्हें खास तवज्जो मिलेगी. यही वजह है कि गुजरात से भारती धीरूभाई, मध्य प्रदेश से प्रह्लाद पटेल और कर्नाटक से प्रह्लाद जोशी का नाम हवा में तैर रहा है. चूंकि पश्चिम बंगाल पर बीजेपी का खासा जोर है इसलिए रूपा गांगुली का नाम भी संभावितों की फेहरिस्त में शामिल हो रहा है. क्रिकेट की पॉलिटिक्स वाले युवा जोश अनुराग ठाकुर के नाम पर भी सट्टेबाजी हो सकती थी अगर सियासत में भी ऐसी कोई संभावना होती, लेकिन ये तभी हो सकता है जब जेपी नड्डा को हिमाचल प्रदेश के लिए बीजेपी सीएम कैंडिडेट घोषित करे, जैसे सर्वानंद सोनवाल के केंद्रीय मंत्री रहते असम चुनाव के वक्त किया गया था. धर्मेंद्र प्रधान भी फिलहाल इसी कैटेगरी में हैं, जिन्हें ओडिशा चुनाव में बीजेपी प्रोजेक्ट कर रही है.

जिन मंत्रियों के इस्तीफे की बात चर्चित रही उनमें ज्यादातर उत्तर प्रदेश से देखे गये जहां स्थानीय निकायों के अलावा फिलहाल कोई चुनावी संभावना नहीं है. चर्चित नामों में सबसे ऊपर - उमा भारती, राजीव प्रताप रूडी और संजीव बालियान रहे. पूछे जाने पर इनमें से दो ने तो पार्टी का हुक्म सर-आंखों पर वाले अंदाज में प्रतिक्रिया दी, लेकिन उमा भारती इसे ट्विटर पर लेकर चली गयीं.

उमा भारती के ट्विटर डिबेट का असर ऐसे देखा जा सकता है कि अब उनके इस्तीफे पर नहीं, बल्कि विभागीय फेरबदल पर बात आ पहुंची है. जहां तक विभागों की बात है रक्षा और रेल मंत्रालय पर सभी की नजर है. मनोहर पर्रिकर के गोवा चले जाने के बाद से अरुण जेटली के पास रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार है. रेल भवन पिछले 10 दिन से सुरेश प्रभु का चेहरा नहीं देख पाया है. सुरेश प्रभु ने लगातार दो हादसों के बाद प्रधानमंत्री से मिल कर इस्तीफे की पेशकश की थी जिस पर उन्हें इंतजार करने को कहा गया था. खबर है कि तब से सुरेश प्रभु घर से ही कामकाज देख रहे हैं - उनके हवाले कोई और मंत्रालय किया जा सकता है. रेल मंत्रालय को लेकर नितिन गडकरी का नाम चर्चा में है लेकिन उससे भी ज्यादा चर्चा इस बात की है कि गडकरी रेल मंत्रालय में गर्दन नहीं फंसाना चाहते. लेकिन ये तो कोई बात नहीं हुई. मान लेते हैं कि डर तो सबको लगता है, लेकिन बुलेट ट्रेन से गडकरी को डर क्यों लगता है?

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