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Updated: 27 जून, 2016 06:59 PM
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एक टीवी इंटरव्यू के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछा जाता है - पाकिस्तान के साथ रिश्ते के लिए लक्ष्मण रेखा क्या होनी चाहिए? अपने जवाब में प्रधानमंत्री मोदी पूछते हैं - लक्ष्मण रेखा का फैसला किसके साथ करोगे?

फिर वो दो ऑप्शन भी सामने रखते हैं - वहां की चुनी हुई सरकार के साथ या दूसरे 'तत्वों' के साथ?

इसी इंटरव्यू में सुब्रमण्यन स्वामी को लेकर भी सवाल पूछा गया है. प्रधानमंत्री स्वामी का नाम नहीं लेते, लेकिन कहते हैं कि उनका मैसेज साफ है - उसमें दुविधा की कोई गुंजाइश नहीं बचती.

लक्ष्मण रेखा

सुब्रमण्यन स्वामी ताबड़तोड़ मिसाइलें छोड़ रहे हैं. रघुराम राजन के मामले में स्वामी ने अपना मिशन कामयाब बता चुके हैं. उसके बाद भी वो वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए लगातार मुश्किलें खड़ी कर रही हैं.

स्वामी राजन तक ही नहीं रुकते, उन्होंने मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम और उसके बाद वित्त मंत्रालय के एक अफसर को टारगेट किया. इस पर जेटली ने धैर्य जवाब दे गया और जेटली ने एक ट्वीट कर काउंटर करने की कोशिश की.

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जेटली जानते हैं कि स्वामी पर उनके ट्वीट का कोई असर नहीं होने वाला, लेकिन स्वामी उनके मंत्रालय के लिए आगे भी मुश्किलें न खड़ी कर दें ये इंतजाम जरूर चाहते हैं.

स्वामी को लेकर बीजेपी प्रवक्ताओं से लेकर आलाकमान तक चुप्पी साधे हुए थे. इस मसले पर कोई बात सामने आई है तो वो सीधे प्रधानमंत्री की ओर से.

मैसेज कितना असरदार

टाइम्स नाउ के साथ इंटरव्यू में प्रधानमंत्री से पूछा गया - सुब्रमण्यम स्वामी लागातार सरकार के लोगों पर हमले कर रहे हैं. रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के बाद उन्होंने नए नाम अरविंद सुब्रमण्यम पर भी हमला बोला. जेटली को वह लगातार बोलने के लिए उकसा रहे हैं. यहां तक कि जेटली के जबाव देने पर उन्होंने खून-खराबे तक की बात कह डाली. सभी को इंतजार था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पर क्या कदम उठाते हैं?

इस सवाल पर प्रधानमंत्री मोदी स्वामी का नाम तो नहीं लेते लेकिन सख्त लहजे में मैसेज देते हैं.

प्रधानमंत्री का कहना है, ''मेरी पार्टी में हो या न हो फिर भी मैं मानता हूं कि यह सही नहीं है... ये जो पब्लिसिटी का शौक है उससे कभी भी देश का भला नहीं होने वाला... जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों को बहुत समझदारी के साथ कुछ बोलना चाहिए... कोई अपने आप को व्यवस्था से बड़ा माने यह गलत है... मेरा बहुत साफ मैसेज है उसमें कोई दुविधा नहीं है.''

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अब बस करो स्वामी!

प्रधानमंत्री भले ही कहें कि उनका मैसेज साफ है, लेकिन स्वामी जैसे दोतरफा मिसाइल पर ये मैसेज कितना असरदार होगा मालूम होने के लिए ज्यादा इंतजार की जरूरत नहीं पड़ेगी.

स्वामी को राज्य सभा में यूं ही तो लाया नहीं गया है. बीजेपी एक खास वजह से उन्हें मोर्चे पर तैनात किया है. अरुण जेटली शुरू से ही स्वामी के रास्ते में बाधा बनकर खड़े रहे हैं, ये बात जब तब स्वामी के बयानों में झलकती ही रहती है.

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प्रधानमंत्री का कहना है कि कोई अपनेआप को व्यवस्था से बड़ा मानता है तो गलत है. पर स्वामी को क्या इतने से समझ आ जाएगा. प्रधानमंत्री ने दादरी पर चुप्पी तोड़ी तो बीजेपी के कितने नेताओं पर उसका असर दिखा. कभी कोई ढेरों बच्चा पैदा करने की बात कर रहा तो, कोई डंके की चोट पर शिक्षा के भगवाकरण की बात कर रहा है. स्वामी तो खून खराबे तक की बात करने लगे हैं.

असम चुनाव की बात और थी, यूपी चुनाव के बारे में बीजेपी भले कहे कि राम मंदिर उसके एजेंडे में नहीं है. लेकिन चुनाव में क्या योगी आदित्यनाथ से लेकर साक्षी महाराज और तमाम साध्वी तक - सबके सब खामोश हो जाएंगे.

भला ये लोग खामोश हो जाएंगे तो करेंगे क्या? ऐसे नेताओं की राजनीति तो बयानबाजी के भरोसे चलती है. अगर वे सबके विकास और सबके साथ की बात करेंगे को तो ताली कौन बजाएगा? और ताली नहीं बजी, मीडिया में बयान नहीं छपा, फिर राजनीति का क्या मतलब?

मॉनसून सेशन शुरू होने वाला है. उसके बाद यूपी चुनाव का माहौल बन जाएगा. स्वामी अगर फिल्टर करके बोलेंगे तो क्या उनका अंदाज वही रहेगा? क्या स्वामी का चुप होना बर्दाश्त कर पाएगी बीजेपी? अगर बीजेपी ने बर्दाश्त कर भी लिया तो क्या स्वामी खुद को रोक पाएंगे? कुदरती बातों पर काबू पाना बड़ा मुश्किल होता है.

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