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Updated: 22 दिसम्बर, 2016 10:30 PM
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नोटबंदी पर नीतीश कुमार ने जो बयान दिया उससे हर कोई हैरान रहा. नीतीश ने प्रधानमंत्री मोदी के इस कदम को लोकहित से जुड़ा माना. फिर क्या था, नीतीश से नाराज होने वालों की फेहरिस्त लंबी होती चली गई - लालू प्रसाद से लेकर ममता बनर्जी तक.

सत्ता के स्थानीय गलियारों में सियासी हवाएं जो इशारा कर रही हैं - ऐसा लगता है कि नोटबंदी पर नीतीश कुमार एक बार फिर सबको हैरान करने वाले हैं. बस मौके का इंतजार है, माहौल बनना तो शुरू हो ही गया है.

नोटबंदी के बहाने

8 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की - और 9 नवंबर को नीतीश कुमार अपनी निश्चय यात्रा पर निकल पड़े. भले ही ये महज संयोग की बात रही हो, लेकिन इसी बहाने नीतीश को नोटबंदी पर हकीकत से रूबरू होने का बेहतरीन मौका मिल गया. निश्चित तौर पर नीतीश ने पाया होगा कि नोटबंदी को लेकर जिस जनाक्रोश की आशंका बाकियों को रही होगी वैसा कुछ नहीं हुआ. कहीं से मौत की खबर आती रही तो कहीं से कतार में ही डिलीवरी की फिर भी लोग देश के नाम पर तमाम तकलीफें सहने को तैयार दिखे.

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नीतीश ने नोटबंदी पर बयान देकर चौतरफा फीडबैक का ऑप्शन खुला तो छोड़ा ही, इसी में एक ट्रिक का भी इस्तेमाल कर लिया. बहाने से ही सही नीतीश ने महागठबंधन में प्रेशर पॉलिटिक्स को भी खूब हवा दी. देखते ही देखते उनकी ओल्ड फ्रेंड बीजेपी से नजदीकियों की भी चर्चा छिड़ गई.

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ये निश्चय यात्रा है, खाट सभा नहीं...

बीजेपी ने भी मौके को हाथ से जाने नहीं दिया - और उसके हर नेता ने फायदा भी पूरा उठाया. बिहार के नेता नीतीश के लिए एनडीए को बेहतर बताने लगे तो अमित शाह ने तो ऐसे शुक्रिया कहा कि घर वापसी को लेकर शक शुबहे की गुंजाइश ही खत्म लगे. रही सही कसर प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी कर दी - बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक में नवीन पटनायक के साथ साथ नोटबंदी पर नीतीश कुमार का भी कोटिश: धन्यवाद कह दिया.

ममता की रैली

राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल तो मोदी के पीछे हाथ धोकर पड़े ही थे, ममता बनर्जी ने तो कसम ही खा डाली - मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने की, कुछ उसी अंदाज में जैसे बंगाल से कभी वाम विनाश की शपथ ली थी.

ममता ने आव न देखा ताव, कोलकाता-दिल्ली एक करने के बाद पर्स में हिंदी डिक्शनरी लिये 30 नवंबर को पटना जा धमकीं. नीतीश ने तो घास नहीं डाली लेकिन लालू-राबड़ी ने आव भगत में कोई कसर बाकी न रखी. ममता की रैली के लिए लालू ने रघुवंश प्रसाद और रामचंद्र पूर्वे को भेजा तो राबड़ी ने भी साथ में सेल्फी स्टाइल में फोटो सेशन करवाये.

नीतीश की मंशा देख जेडीयू कार्यकर्ताओं ने तो दूर से भी रैली को न देखने का फैसला कर लिया. अच्छा ही किया, वरना अपने नेता के बारे में ममता के मुहं से 'धोखेबाज' सुनना कैसे बर्दाश्त कर पाते.

लालू की रैली

लालू तो शुरू से ही नोटबंदी के मुखर विरोधी रहे. फेसबुक पर पोस्ट लिख कर भी मोदी से 12 सवाल पूछ डाले. हां, नीतीश के साथ एक मीटिंग के बाद एक आरजेडी नेता ने लालू का स्टैंड क्लियर करने की कोशिश जरूर की - लालू जी ने नोटबंदी नहीं, बल्कि उसेलागू करने के तरीके पर आपत्ति जताई है.

अब 28 दिसंबर को लालू की पार्टी आरजेडी के कार्यकर्ता पूरे बिहार में जिला मुख्यालयों पर धरना देने वाले हैं.

तो क्या नीतीश कुमार इससे भी वैसे ही दूरी बनाएंगे जैसे ममता के मामले में किया था?

बिहार में सत्ताधारी महागठबंधन के सबसे असरदार हिस्सेदार लालू प्रसाद पहले ही कह चुके हैं, "नीतीश कुमार भी 28 दिसंबर को नोटबंदी पर राष्ट्रीय जनता दल के विरोध प्रदर्शन में शामिल होंगे."

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ये सब तय उस मीटिंग में हुआ था जो राबड़ी देवी के आवास पर आरजेडी कार्यकर्ताओं की मीटिंग बुलाई गई थी. इस मीटिंग में जाने माने अर्थशास्त्री मोहन गुरुगोस्वामी को भी बुलाया गया था. अपने प्रजेंटेशन में गुरुगोस्वामी ने समझाया कि इस वित्तीय वर्ष के खत्म होने तक देश के सकल घरेलू उत्पाद में 2.5 फीसदी की कमी होगी.

नोटबंदी पर नीतीश के लिए अब भूल-चूक लेनी-देनी का दौर खत्म हो चुका है. नोटबंदी पर लगातार बदलते सरकारी फरमानों की तरह सियासत की नब्ज़ भी कभी धीमी तो कभी तेज हो रही है. नब्ज टटोलने के बाद ही नीतीश ने 50 दिन पूरे होने पर नोटबंदी की समीक्षा का निर्णय लिया होगा.

जब सामने 2019 की ओर जाने वाला फ्लाईओवर हो और रास्ता दो साल से भी ज्यादा लंबा हो फिर तो यू टर्न ही सेफ ऑप्शन बचता है. बताते हैं कि 50 दिन पूरे होने पर नोटबंदी की समीक्षा की घोषणा भी नीतीश ने आरजेडी की एक खास मीटिंग में आकर की थी. सरकार चलाने में मुश्किल खड़े कर रहे आरजेडी के मंत्रियों और विधायकों से निबटने का नीतीश के पास तब शायद यही रास्ता भी बचा था. फिर तो नोटबंदी पर आरजेडी की कोई भी रैली हो तो नीतीश को आना ही है, ममता की बात और थी - लालू की बात और है!

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