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Updated: 10 मई, 2017 06:43 PM
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राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस सिर्फ राहुल गांधी के भरोसे नहीं है. यूपी चुनाव में सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति से दूरी के जो संकेत दिये थे - लगता है उसे अब वापस ले लिया है.

तबीयत खराब होने के बाद सोनिया गांधी को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, लेकिन वहां भी वो राष्ट्रपति चुनाव के लिए मजबूत स्ट्रैटेजी तैयार करने के लिए काम कर रही हैं. ममता बनर्जी को अस्पताल से किया गया फोन इस बात का सबूत है.

अस्पताल से सियासत

पिछले साल अगस्त में तबीयत बिगड़ जाने के चलते बनारस का रोड शो बीच में ही छोड़ कर दिल्ली लौट आईं. यूपी सहित पांच विधानसभाओं के चुनाव हुए लेकिन कहीं नहीं गईं. सोनिया के सक्रिय राजनीति में आने के बाद ये पहला चुनाव रहा जब वो कोई रैली नहीं कीं. इन चुनावों में पंजाब छोड़ कर कांग्रेस की हर जगह हार हुई. कांग्रेस नेताओं को छोड़ कर बाकी सभी ने कांग्रेस की हार के लिए राहुल गांधी को ही जिम्मेदार माना, पंजाब की जीत का क्रेडिट भी कैप्टन अमरिंदर लूट ले गये.

rahul gandhi, sonia gandhiताकि यूपी जैसा हाल न हो...

सोनिया गांधी के राजनीतिक तौर पर सक्रिय होने की खबर भी उसी अस्पताल से आई है जहां उन्हें बनारस से लाकर भर्ती कराया गया था - सर गंगा राम अस्पताल. सोनिया गांधी को फूड पॉजनिंग के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया है. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सोनिया गांधी ने अस्पताल से ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को फोन किया - और अगली मुलाकात का वक्त तय हुआ.

विपक्षी एकता की मुश्किलें

राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष मजबूती के साथ उतरे और केंद्र की मोदी सरकार को कड़ी टक्कर दे, ये चाहता तो विरोधी दलों के सभी नेता हैं लेकिन पहल की नीतीश कुमार ने. फिर भी नीतीश कुमार चाहते हैं कि सबसे बड़ी पार्टी होने के चलते कांग्रेस इस मामले में अगुवाई करे. नीतीश की सलाह के बाद आगे बढ़ते हुए सोनिया गांधी ने एनसीपी नेता शरद पवार और सीपीएम नेता सीताराम येचुरी से भी मुलाकात की. सोनिया ने लालू प्रसाद को भी इस मुद्दे पर विचार के लिए आमंत्रित किया है.

सोनिया गांधी ने अस्पताल से ही ममता बनर्जी से फोन पर बात की और फिर 15 मई को मुलाकात का वक्त तय हुआ. पश्चिम बंगाल में सीपीएम और ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस एक दूसरे के सियासी प्रतिद्वंद्वी हैं और ऐसे में दोनों के साथ आने की संभावना काफी कम नजर आती है.

दरअसल, सोनिया से मुलाकात के बाद सीताराम येचुरी उन नेताओं को साधने की कोशिश कर रहे हैं जिनसे सोनिया का सीधा संपर्क बंद है. इनमें आंध्र प्रदेश के वाईएसआर कांग्रेस के नेता जगनमोहन रेड्डी जैसे नेता हैं. तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि यही समीकरण ममता के मामले में उलटा पड़ जाता है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए हो रही विपक्षी एकता की इस मुहिम में ओडिशा की बीजेडी और दिल्ली की आप जैसी पार्टियां भी हैं जो अभी मौजूदा मुश्किलों से जूझ रही हैं.

विपक्ष की इस राह में सबसे बड़ी मुश्किल आप और आरजेडी को लेकर आई है. कपिल मिश्रा ने जहां आप नेता अरविंद केजरीवाल पर 2 करोड़ रिश्वत लेने का आरोप लगाकर हड़कंप मचा रखा है, वहीं जेल से शहाबुद्दीन के साथ लालू प्रसाद की बातचीत का ऑडियो एक टीवी चैनल पर प्रसारित होने के बाद अलग बवाल मचा हुआ है.

राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस को राहुल के भरोसे नहीं छोड़ने की कई वजहें हैं. नीतीश कुमार, लालू प्रसाद या शरद पवार इस मुद्दे पर सोनिया से बातचीत के लिए तैयार तो हो सकते हैं, लेकिन राहुल के नाम पर पीछे हट जाने का खतरा है. वैसे पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में राहुल गांधी ने सीपीएम के साथ गठबंधन जरूर कर लिया था, लेकिन ममता को कांग्रेस से और दूर कर दिया. चुनाव से पहले ममता ने सोनिया से 10, जनपथ जाकर मुलाकात की थी क्योंकि वो चाहती थीं कि टीएमसी के साथ उनका गठबंधन भले न हो लेकिन कांग्रेस और लेफ्ट एक साथ चुनाव में न उतरें. हुआ वही जो ममता नहीं चाहती थीं.

ये सारे कारण हैं कि सोनिया को कमान फिर से अपने हाथ में लेनी पड़ी है - और नतीजा ये है कि अस्पताल में भी वो मोदी सरकार को मात देने की योजना बना रही हैं.

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