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Updated: 30 जुलाई, 2017 06:58 PM
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नीतीश कुमार से शरद यादव की नाराजगी का पूरा फायदा लालू प्रसाद उठाना चाहते हैं. लालू प्रसाद ने शरद यादव को बीजेपी के खिलाफ आगे की लड़ाई की कमान संभालने का ऑफर दिया है.

महागठबंधन तोड़ कर बीजेपी के सपोर्ट से सरकार बनाने के नीतीश के फैसले पर शरद यादव अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. हालांकि, खबर है कि शरद यादव के पास केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री पद का भी ऑफर है.

नीतीश के नयी व्यवस्था में कुर्सी संभालने के बाद से शरद यादव ने साफ तौर पर कुछ नहीं कहा है. हालांकि, इस दौरान वो राहुल गांधी से मुलाकात और अरुण जेटली से बात भी कर चुके हैं. शरद यादव ने एक ऐसा ट्वीट किया है जो मोदी सरकार पर सीधा हमला है. तो क्या मान लिया जाये कि शरद यादव ने लालू के साथ जाने का फैसला कर लिया है?

नाराजगी

बिहार में आये राजनीतक भूचाल से जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव को भी तेज झटका लगा था. तभी तो मीडिया से मुखातिब होकर उन्होंने सरेआम नाराजगी जताई, "नीतीश कुमार ने सरकार बनाने का फैसला बहुत जल्दबाजी में लिया है. गठबंधन तोड़कर इतनी जल्दी बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाने के फैसले का मैं समर्थन नहीं करता."

sharad yadavलालू या नीतीश कौन...

शरद यादव और जेडीयू के कुछ नेताओं में अली अनवर भी थे जिन्होंने नीतीश के कदम की आलोचना की थी. बुरा तो औरों को भी लगा होगा लेकिन वे चुप रहे. मालूम हुआ कि शरद यादव ने राहुल गांधी से भी मुलाकात की जिन्होंने नीतीश पर धोखेबाजी का इल्जाम लगाया. जेडीयू में टूट-फूट की आशंका और शरद यादव के मान-मनौव्वल के बीच खबर ये भी आई कि उनकी केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली से बात हो गयी है. इस बातचीत में शरद यादव के सामने केंद्र में मंत्री पद मिलने की बात सामने आई.

नीतीश के शपथ लेने और उसके बाद मंत्रिमंडल के गठन के बाद भी शरद यादव की ओर से वैसा कोई बयान नहीं आया है. हां, शरद यादव ने कुछ ट्वीट जरूर किये हैं. एक ट्वीट में शरद यादव ने ये कह कर मोदी सरकार पर हमला बोला है कि वो न तो काला धन वापस ला सकी और न ही पनामा पेपर्स में जिनके नाम हैं उन पर कार्रवाई कर सकी.

नीतीश के 2013 में एनडीए छोड़ने के बाद से शरद यादव बीजेपी के प्रति लगातार हमलावर बने रहे हैं. उससे पहले शरद यादव एनडीए के संयोजक रह चुके हैं.

अब लालू प्रसाद ने शरद यादव से अपनी लड़ाई का नेतृत्व करने में ये कहते हुए मदद मांगी है कि एक जमाने में लाठी खाने में दोनों साथी रहे हैं.

उलझन

मीडिया से बातचीत में लालू ने बताया, "मैंने शरद यादव से फोन पर बात की है. मैं उनसे अपील करता हूं कि आइये और देश के हर कोने में जाकर इस लड़ाई की कमान अपने हाथों में लें." ऐसी ही बात लालू ने एक ट्वीट में भी कही है.

देखा जाय तो लालू ने काफी सोच समझ कर शरद यादव को साथ लाने की कोशिश की है. जिस मुश्किल दौर से लालू इस वक्त जूझ रहे हैं उसमें शरद यादव उन्हें कई तरीके से सूट करते हैं.

एक तरफ लालू प्रसाद 27 अगस्त को पटना रैली को सफल बनाने की कोशिश में हैं तो दूसरी तरफ तेजस्वी को भी लोगों के बीच भेजने की भी तैयारी कर रहे हैं. लालू को भी आशंका है कि कोर्ट से कभी भी फैसला आ सकता है जिसके पक्ष में होने की कम ही गुंजाइश है. साथ ही तेजस्वी पर भी भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. ऐसे में लालू को जो मदद शरद यादव से मिल सकती है वो किसी और से संभव नहीं है.

एक तरफ शरद यादव का लालू प्रसाद की जाति से ताल्लुक रखना और दूसरी तरफ उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई आरोप न होना. हवाला में नाम आने पर इस्तीफा देने वाले शरद यादव सीनियर नेता हैं और सभी से उनके ठीक ठाक संबंध भी हैं.

खुद भ्रष्टाचार के मामले सजायाफ्ता होने के कारण लालू प्रसाद का अपना और अपने परिवार का बचाव मुश्किल हो रहा है. अगर शरद यादव उनके साथ हो लेते हैं तो उन्हें राहत मिल सकती है. बीजेपी के खिलाफ अभी तक डटे होने के कारण शरद यादव, लालू के यादव-मुस्लिम फॉर्मूले में भी फिट बैठते हैं.

लेकिन लालू के इस ऑफर में तस्वीर नहीं साफ है. लालू ने साथ आने को तो कहा है कि लेकिन बदले में क्या देंगे ये सवाल भी शरद यादव के मन में जरूर होगा.

पुरानी व्यवस्था में तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम थे. पर्दे के पीछे नीतीश का तख्तापलट कर तेजस्वी को सीएम बनाने की खबरें आती ही रही हैं. कहा तो ये भी गया कि लालू चाहते तो तेजस्वी को इस्तीफा दिला कर आरजेडी नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी को डिप्टी सीएम बना सकते थे. सिद्दीकी के इतने सीनियर होने के बावजूद उनका नंबर लालू के दोनों बेटों तेजस्वी और तेज प्रताप के बाद आता है.

ऐसी व्यवस्था में शरद यादव को क्या मिल सकता है? फर्ज कीजिए शरद यादव लालू के साथ हो लेते हैं और अगले चुनाव में उनके नेतृत्व में जीत हासिल होती है तो क्या संभव है कि लालू उन्हें मुख्यमंत्री और फिर से तेजस्वी को डिप्टी सीएम ही बनाएंगे? संभावना न के बराबर है. राष्ट्रीय स्तर पर भी थोड़ी देर के लिए कल्पना करें तो विपक्षी मोर्चे में शरद यादव प्रधानमंत्री पद के दावेदार तो बनने से रहे. अगर भविष्य में कभी कोई व्यवस्था बनी, जिसकी कहीं कोई संभावना दिखाई तो नहीं देती, तो भी शरद यादव केंद्र में मंत्री बन सकते हैं. एक संभावना है कि शरद यादव को अब्दुल बारी सिद्दीकी के मुकाबले थोड़ी तवज्जो मिले. तेजस्वी के सीएम बनने की सूरत में लालू उन्हें डिप्टी सीएम ऑफर कर सकते हैं. वस्तुस्थिति तो शरद यादव के सामने है ही, फैसला भी उन्हीं को करना है. उन्हें लालू की डूबती जहाज में ज्यादा दम नजर आता है या नीतीश के आगे बढ़े कदम उन्हें अच्छे लगने लगते हैं, ये फैसला भी उन्हीं को करना है.

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