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Updated: 02 जुलाई, 2017 03:40 PM
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विपक्षी एकजुटता को जेडीयू ने एक और झटका दिया है और बिहार का महागठबंधन इससे बेअसर रहेगा कहना मुश्किल है. नीतीश कुमार की पार्टी ने साफ कर दिया है कि जेडीयू तो लालू प्रसाद की रैली में हिस्सा लेने से रही - हां, नीतीश कुमार अगर निजी तौर पर जाने का फैसला करते हैं तो बात और है.

पटना में 27 अगस्त को 'बीजेपी हटाओ, देश बचाओ' रैली होनी है जिसमें उन सभी नेताओं के हिस्सा लेने की अपेक्षा है जो 26 मई को सोनिया के भोज में जुटे थे. जीएसटी समारोह, राष्ट्रपति चुनाव और उपराष्ट्रपति चुनाव के बाद इसे विपक्ष के शक्ति प्रदर्शन का बड़ा मौका माना जा रहा है. ये उसी रैली की बात है जिसको लेकर लालू प्रसाद रांची की अदालत में पेशी से छूट के लिए मिन्नतें करते रहे - लेकिन कोर्ट ने नामंजूर कर दिया.

न दलील काम आयी, न धौंस...

रांची में सीबीआई की विशेष अदालत में लालू प्रसाद पेश तो हुए लेकिन आगे के लिए पेशी में छूट चाहते थे. बिहार सरकार में लालू की चाहे जितनी भी हनक हो लेकिन अदालत परिसर में वो सब हवा हो गयी. लालू ने परिचय भी दिया कि वो पॉलिटिकल आदमी हैं चुनाव है, रैली करनी है - लेकिन स्पेशल जज शिवपाल सिंह को ऐसी बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

लालू की अपील थी, “मुझे डे-बाई-डे हियरिंग में पेशी से मुक्त किया जाये. मैं जिद नहीं कर रहा... हुजूर से आग्रह है कि एकोमोडेट किया जाये. अभी राष्ट्रपति चुनाव है... 27 को मुझे रैली भी करनी है."

lalu prasadकोर्ट में कोई पॉलिटिकल नहीं होता!

इस पर कोर्ट का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नौ महीने के भीतर सुनवाई पूरी करनी है, इसलिए उन्हें सुनवाई में आना ही पड़ेगा. जिद की बात से इंकार कर चुके लालू ने दलील भी दी - 'मुकदमा तो वकील और मुंशी लड़ता है. मुवक्किल के आने या आने से कोई असर नहीं पड़ता. मैं भी वकील हूं. पूर्व सीबीआई जज प्रभाष बाबू लॉ कॉलेज में मेरे जूनियर थे.'

लालू की दलील ने ही कोर्ट की राह आसान कर दी - 'आपको क्या करना है, कार्यकर्ता तो रहेंगे ही. इंटरनेट का जमाना है. आपको जानबूझ कर नहीं बुला रहे हैं.'

आखिरकार जब दलील और खुद के वकील और पूर्व जज के सीनियर होने की धौंस भी बेकार गयी तो लालू ने दोनों हाथ जोड़कर बोले, "तब हमको रांची में एगो परमानेंट क्वार्टर लेना होगा, तभिए ठीक रहेगा."

नीतीश पर सस्पेंस

कोर्ट में पेशी से छूट भले न मिली हो लेकिन बाकी बवाल से फारिग होकर लालू प्रसाद पटना रैली की तैयारियों में लगे हैं. लालू की इस रैली को नाम दिया गया है - 'बीजेपी हटाओ, देश बचाओ'. मीरा कुमार के समर्थन के लिए नीतीश से अपील में भी लालू ने कहा था कि वो उनके 'संघ मुक्त देश' के रास्ते पर ही बढ़ रहे हैं. बिहार चुनाव के दौरान डीएनए डिबेट के बीच हुई लालू ने स्वाभिमान रैली की थी. जिस तरह से वो रैली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जवाब देने के लिए थी उसी तरह से प्रस्तावित रैली का मकसद बिहार बीजेपी के नेता सुशील मोदी को काउंटर करना है. सुशील मोदी ने लालू प्रसाद और उनके परिवार वालों के खिलाफ बेनामी संपत्ति और भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर लगातार आक्रमक बने हुए हैं. 27 अगस्त को गैर-बीजेपी दलों को एक मंच पर लाकर लालू ने केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ हल्ला बोल करने का ऐलान किया है. लालू इस रैली से भी स्वाभिमान रैली के असर जैसी ही उम्मीद लगाये बैठे हैं.

sonia gandhi nitish kumar lalu prasadनीतीश की हर चाल में दो निशाने - लालू प्रसाद और सोनिया गांधी

लालू की इस रैली में भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हिस्सा लेने वाली हैं. आरजेडी नेताओं को उम्मीद है कि इसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और हरियाणा के पूर्व सीएम ओम प्रकाश चौटाला के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा भी जरूर शामिल होंगे. वैसे देवेगौड़ा मोदी सरकार के जश्न-ए-जीएसटी में मंच पर बैठे थे.

लालू की रैली में शामिल होने की मायावती ने तो हामी भर ही दी थी, अखिलेश यादव ने भी हाल ही में कहा था कि वो बीएसपी नेता के साथ रैली में जरूर हिस्सा लेंगे. ये पहला मौका होगा जब अखिलेश यादव और मायावती किसी सार्वजनिक मंच पर साथ नजर आ सकते हैं. वैसे जीएसटी समारोह में समाजवादी पार्टी की ओर से अखिलेश कैंप के रामगोपाल यादव के हिस्सा लेने के बाद इस पर अपडेट के लिए इंतजार करना होगा.

राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार को समर्थन और जीएसटी समारोह में हिस्सेदारी पर अलग रास्ता अख्तियार करने वाले जेडीयू ने साफ कर दिया है कि वो लालू की रैली में भी हिस्सा लेने नहीं जा रही. जेडीयू नेता श्याम रजक का कहना है, "ये आरजेडी की रैली है और जेडीयू पार्टी के तौर पर इसमें हिस्सा नहीं लेगी. अगर जेडीयू अध्यक्ष और सीएम नीतीश कुमार को न्योता मिलता है तब वो व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने पर फैसला लेंगे.'

मीरा कुमार को समर्थन के सवाल पर नीतीश ने लालू की इफ्तार पार्टी के मौके पर 2019 के लिए फिर से एकजुट होने और बिहार की बेटी को 2022 में जिताने की सलाह दी थी. एकबारगी तो ऐसा लगा जैसे नीतीश ने विपक्ष से दूरी सिर्फ राष्ट्रपति चुनाव के लिए बनाई थी और जीएसटी समारोह में प्रतिनिधि को भेजना उसका एक्सटेंशन भर रहा.

लालू की रैली से दूरी बनाने का जेडीयू की फैसला उससे काफी आगे की कहानी कह रहा है. ये अभी महागठबंधन टूटने की गारंटी तो नहीं देता लेकिन सब कुछ यूं ही चलता रहेगा ऐसी आश्वस्ति भी नहीं देता. जेडीयू का ये कदम भी नीतीश की प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा लग रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे नीतीश हर कदम से एक साथ लालू और सोनिया दोनों को मैसेज देना चाहते हों. लालू के लिए चेतावनी है कि अगर किसी ने ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश की तो उनकी सरकार तो चलती रहेगी, लेकिन फेमिली पॉलिटिक्स का क्या होगा? लगे हाथ सोनिया को भी नीतीश संदेश दे ही देना चाहते हैं कि उन्हें दरकिनार कर विपक्ष को जुटाया तो जा सकता है लेकिन एकजुट होकर 2019 में नरेंद्र मोदी को जोरदार टक्कर नहीं दी जा सकती. नीतीश कांग्रेस की कमजोरी को बाखूबी समझ चुके हैं.

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