नोटबंदी के बाद नसबंदी - चर्चाएं कहीं मोदी सरकार की मंशा तो नहीं जाहिर कर रहीं...
नोटबंदी की खबरें तो देश भर से आ रही हैं और तकरीबन सब एक जैसी ही हैं. नसबंदी की खबर अलीगढ़ और गोरखपुर से आई है.
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क्या नोटबंदी और नसबंदी में भी कोई संबंध हो सकता है? भला नोटबंदी की बहस के बीच नसबंदी का क्या तुक है? फिर क्यों नोटबंदी के दौर में नसबंदी की घुसपैठ करायी जा रही है - और वो भी उन लोगों द्वारा जो अब तक लोगों से ज्यादा बच्चा पैदा करने की सलाह देते रहे.
ऐसा तो नहीं कि नोटबंदी के साथ साथ नसबंदी पर भी बहस आगे बढ़ाई जा रही है? वैसे नोटबंदी के साये में नसबंदी की खबरें भी आ रही हैं. कहीं नसबंदी, नोटबंदी से हुए नुकसान का मुआवजा वसूलने की हिडेन कवायद तो नहीं है.
खबरें
नोटबंदी की खबरें तो देश भर से आ रही हैं और तकरीबन सब एक जैसी ही हैं. नसबंदी की खबर अलीगढ़ और गोरखपुर से आई है. अलीगढ़ के पूरन शर्मा की कहानी टाइम्स ऑफ इंडिया ने छापी है - और पूर्वा पोस्ट ने गोरखपुर से रिपोर्ट फाइल की है कि 8 नवंबर के बाद वहां नसबंदी के मामलों में तेजी देखी जा रही है.
नोटबंदी के बाद एटीएम से एक बार में दो हजार रुपये के नोट निकल रहे हैं, जहां छोटे नोट नहीं हैं. नसबंदी कराने वाले पुरुष को 2,000 रुपये मिलते हैं और महिला को 1,400 रुपये. रिपोर्ट के मुताबिक पूरन शर्मा के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो परिवार के लिए खाने का इंतजाम करें. बताते हैं कि नोटबंदी के बाद उनकी ऐसी हालत हो गयी.
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पूरन को आइडिया सूझा और उन्होंने नसबंदी करा ली. पूरन की पत्नी दिव्यांग हैं नहीं तो उनके घर के लिए 1400 और रुपयों का इंतजाम हो सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि अलीगढ़ में पिछले साल नवंबर में 92 लोगों ने नसबंदी कराई थी. इस साल ये संख्या पौने दो सौ से ज्यादा हो चुकी है. आगरा से मिले आंकड़े बताते हैं कि पिछले नवंबर में जहां 450 लोगों ने नसबंदी करवाई थी, वहीं इस साल नवंबर में इनकी संख्या 900 पार कर चुकी है.
नोटबंदी के बाद नसबंदी की बारी तो नहीं... |
गोरखपुर से पूर्वा पोस्ट की रिपोर्ट से पता चलता है कि नोटबंदी के शुरुआती 20 दिनों में 38 दिहाड़ी मजदूर नसबंदी करा चुके थे. अगर अलीगढ़ और गोरखपुर कोई मानक हैं तो देश के बाकी हिस्सों के हाल को आसानी से समझा जा सकता है.
तो क्या नोटबंदी की मार से जूझ रहे पूरन का इतने भर से काम बन गया. जी नहीं. नसबंदी के एवज में उनका पैसा उनके खाते में ट्रांसफर होगा. फिर वो बैंक की कतार में लगेंगे. फिर अगर उनकी बारी आने तक कैश बचा रहा तो रकम जरूर मिलेगी. सरकारी पैसा है कहीं जाता नहीं. लेकिन कब तक मिल पाएगा किसी को पता भी नहीं.
...और बहस
इसी साल अक्टूबर में गिरिराज सिंह ने सुझाव दिया था कि हिन्दुओं को ज्यादा बच्चे पैदा कर देश में अपनी आबादी बढ़ाने पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए. हालांकि, गिरिराज का कहना था कि ये कोई मौलिक सोच नहीं है, बल्कि उधार की सलाह है. अगस्त में आगरा पहुंचे संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिन्दुओं को अधिक बच्चा पैदा करने की सलाह दी थी.
अब वही गिरिराज सिंह कह रहे हैं कि नोटबंदी के बाद देश में नसबंदी के लिए कानून बनने की जरूरत है. सोनिया गांधी पर विवादित बयान देने के बाद तो गिरिराज को माफी मांगनी पड़ी थी, लेकिन इस मुद्दे पर उन्हें शिवसेना का भी समर्थन मिला है. शिवसेना ने सामना में आर्टिकल लिख कर गिरिराज का सपोर्ट किया है.
वैसे गिरिराज के बयान से पहले ही नोटबंदी और नसबंदी पर साथ साथ चर्चा शुरू हो चुकी थी. लोग मोदी सरकार के नोटबंदी की तुलना इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी के नसबंदी अभियान से करने लगे थे. इमरजेंसी के दौर में जबरन नसबंदी का जो दौर चला उससे हर कोई परेशान हुआ. आम लोगों से ज्यादा तो सरकार कर्मचारी परेशान रहे - और माना जाता है कि उनकी नाराजगी ही इंदिरा गांधी पर सबसे ज्यादा भारी पड़ी. अब नोटबंदी का किस पर ज्यादा असर हुआ है अभी कोई रिपोर्ट नहीं आई है लेकिन अंदाजा है कि आम लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं और रोज कुआं खोद कर पानी पीने वालों की सबसे ज्यादा शामत आई है.
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वैसे गिरिराज का नसबंदी कार्यक्रम इंदिरा सरकार की फेमिली प्लानिंग से बिलकुल अलग है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि शिवसेना ने कहा है कि गिरिराज सिंह को समान नागरिक संहिता लागू करने की भी मांग करनी चाहिये, जिसका मुस्लिम समुदाय विरोध करता रहा है.
एक दफा हिंदुओं को ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह देना और फिर नसबंदी पर कानून की मांग - जाहिर है गिरिराज की मंशा प्रधानमंत्री के 'सबका साथ, सबका विकास' सिद्धांत से मेल नहीं खाता. क्या पता गिरिराज सिंह मोदी सरकार के किसी नये सर्जिकल स्ट्राइक की ओर इशारा कर रहे हों - चुनावों का मौसम फिर से जो आने वाला है.
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