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Updated: 20 दिसम्बर, 2016 07:11 PM
अशोक उपाध्याय
अशोक उपाध्याय
  @ashok.upadhyay.12
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उत्तर प्रदेश में कांग्रेस एवं समाजवादी पार्टी के बीच दूरियां घट रहीं हैं और इन दोनों के मध्य गठबंधन की संभावनाएं प्रबल होती जा रहीं हैं. इस संभावित समझौते पर कटाक्ष करते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि "आज अखिलेश यादव कहते हैं कि यदि कांग्रेस हमारे साथ आ जाए तो यूपी में शायद फिर से हमारी सरकार आ जाए, अरे भाई, बुआ को क्यों छोड़ते हो, बुआ-भतीजा, राहुल सारे इकट्ठे हो जाओ लेकिन उत्तर प्रदेश में सरकार भारतीय जनता पार्टी की ही बनेगी". ऐसा कहना सचमुच पार्टी के जनाधार एवं इसके अध्यक्ष के आत्मविश्वास को परिलक्षित करता है .

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 क्या भाजपा को उत्तर प्रदेश में कोई पराजित नहीं कर सकता ?

पर क्या सचमुच इस गठबंधन से भाजपा पर कोई असर नहीं पड़ेगा? क्या बिहार जैसा महागठबंधन भी उत्तर प्रदेश में भाजपा को जितने से नहीं रोक पायेगा? क्या भाजपा उत्तर प्रदेश में अपराजेय है?

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क्या थम सकती थी लोक सभा चुनाव की आंधी?

सबसे पहले नजर डालते हैं 2014  के लोक सभा चुनाव के परिणाम पर. 42.63% वोट के साथ भाजपा को 80 में से 71 सीटें मिली थी. इसके सहयोगी अपना दल की दो सीटों को भी जोड़ा जाए तो 73 सीटों के साथ भाजपा ने उत्तर प्रदेश में लगभग क्लीन स्वीप कर दिया था. ये मोदी की आंधी थी जिसमें सब के सब बह गए थे. पर इस चुनाव में भी अगर कांग्रेस, बसपा एवं सपा के वोटों को जोड़ दे तो ये 49.65% था. यानि के अगर ये तीनों एक साथ होते तो ये आंधी भी थम जाती.

क्या हुआ था विधान सभा चुनाव में ?

हालांकि इन तीन राजनितिक दलों का गठबंधन, वर्तमान राजनीतिक परस्थितियों में, कल्पना ही प्रतीत होता है. पर अगर पिछले विधान सभा चुनाव की बात करें तो भाजपा कहीं भी लड़ाई में नहीं थी. तीसरे स्थान के लिए इसका कांग्रेस के साथ जोरदार मुकाबला था. भाजपा को केवल 15% वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 11.65%. बसपा को लगभग 26% वोट मिला था एवं सपा को 29%. यानि कि मोदी की हवा के पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा की स्थिति बहुत ही पतली थी.

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क्या मोदी लहर अभी भी बाकी है?

मोदी की 2014 की आंधी के बाद उत्तर प्रदेश के दो पडोसी राज्यों, दिल्ली एवं बिहार में विधान सभा चुनाव हुआ. दोनों ही जगह भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था. इन दोनों ही राज्यों के लोक सभा चुनाव में जबरदस्त मोदी लहर थी जो की विधान सभा चुनावो में गायब हो गई. उत्तर प्रदेश में चुनाव मोदी के प्रधान मंत्री के आधे से भी ज्यादे कर्यकाल पूरा होने पर होगा. अब लोग मोदी के वादों एवं उन पर किये गए अमल के आधार पर वोट देंगे. लोगों की अपेक्षाएं मोदी से बहुत ज्यादा थीं. जहां तक मुद्दा रोजगार का हो, महंगाई रोकने की हो या किसानों के स्थिति में सुधार का हो इन पर लोगों को निराशा ही हाथ लगी है. यानि की जब उत्तर प्रदेश के लोग मोदी के वादों एवं उनकी जमीनी हकीकत का आंकलन करेंगे तो फिर से कमल के बटन को दबाने में संकोच कर सकते हैं.

अमित शाह के बात को कितना महत्व देंगे उत्तर प्रदेश के लोग

बिहार विधान सभा के चुनाव में भी अमित शाह ने कहा था कि लालू - नीतीश एवं कांग्रेस के महागठबंधन ने भाजपा का जीत सुनिश्चित कर दिया है. ठीक इसके उलट, इसने भाजपा की हार सुनिश्चित करा दिया. उत्तर प्रदेश में भी लोक सभा चुनाव के पहले उन्होंने कहा कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बन जाते हैं, तो पाकिस्तान भारतीय सीमा पार करने की हिम्मत नहीं करेगा. वो हेमराज जैसे हमारे किसी जवान का सिर कलम करने का दुस्साहस नहीं कर पाएगा. इस साल अब तक हमारे 60  सैनिक केवल जम्मू कश्मीर में शहीद हो चुके हैं. ये संख्या पिछले वर्ष 33 थी. सैन्य सोर्सेज के मुताबिक, सर्जिकल स्ट्राइक के बाद, पाकिस्तान सेना केवल नवम्बर के महीने तक ही 300 से अधिक बार LoC एवं इंटरनेशनल बॉर्डर का उल्लंघन किया है. 28 नवम्बर को भी पाकिस्तानी आतंवादियों ने हमारे सैनिक को शहीद करके उनके शरीर को विकृत कर दिया था. यानि की भाजपा अध्यक्ष ने इस सम्बन्ध में जो बोला था वो बिल्कुल ही नहीं हुआ.

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उत्तर प्रदेश भाजपा में नेताओं का आयात

आप बाहर से नेताओं का आयात तब करते हैं जब आपके पास प्रतिभा का अभाव हो. या आपके पास जमीनी नेताओं की कमी हो. उत्तर प्रदेश में भाजपा इस वक्त यही कर रही है. स्वामी प्रसाद मौर्य , ब्रजेश पाठक, रीता बहुगुणा जोशी जैसे बड़े नेताओं को ही नहीं बल्कि हर पार्टी के विधायको को अपने यहां आश्रय दे रही है. ये निश्चित रूप से पार्टी के आत्मविश्वास का तो द्योतक नहीं ही है.

ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा उसी परस्थिति में उत्तर प्रदेश चुनाव जीत सकती है जब प्रदेश में मुस्लिम मतों का बंटवारा हो. और कांग्रेस-सपा गठबंधन उसी बिखराव को रोकने का प्रयास है. क्या ये गठबंधन उसको रोक पायेगा? क्या भाजपा इस गठबंधन को एकमुश्त मुस्लिम वोट मिलने के बाद भी चुनाव जीत जायेगे? इन सवालों का जबाब तो समय ही दे पायेगा. पर अमित शाह का ये कहना कि सारे इकट्ठे हो जाएं तो भी भाजपा ही जीतेगी अपने कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों के उत्साह जगाने का प्रयास लग रहा है न की पार्टी का आत्मविश्वास दर्शा रहा है.

लेखक

अशोक उपाध्याय अशोक उपाध्याय @ashok.upadhyay.12

लेखक इंडिया टुडे चैनल में एडिटर हैं.

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