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Updated: 25 नवम्बर, 2016 05:31 PM
अशोक उपाध्याय
अशोक उपाध्याय
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अप्रैल महीने के पंजाब के एक सर्वे के मुताबिक 117 सीटों में से आम आदमी पार्टी 94-100 सीटों पर कब्जा कर सकती थी. और तो और पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे पसंदीदा चेहरा उभरकर आ रहे थे. अरविंद केजरीवाल भी लगातार पंजाब विधानसभा चुनाव में राज्य 100 सीटें जीतने की उम्मीद जताते रहे. दिल्ली विधान सभा में उनकी अप्रत्याशित जीत एवं पंजाब लोक सभा चुनावों में भी आप के शानदार प्रदर्शन के बाद केजरीवाल के  विरोधी भी उनको हल्के में लेने की गलती नहीं कर रहे थे.

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 पंजाब में आम आदमी पार्टी ने दमदार चेहरे के रूप में लुधियाना के बैंस बंधुओं को चुना है

पर जब 21 नवम्बर को नवजोत सिंह सिद्धू की अगुवाई वाले आवाज-ए-पंजाब के अहम नेता बैंस बंधु के साथ आप ने गठबंधन करने की औपचारिक घोषणा की तो लोगों को थोड़ा अचरज हुआ. आखिर 117 सीटों में से 100 सीटों पर कब्जा करने का दावा करने वाली पार्टी क्यों दूसरे के साथ गठबंधन कर रही है? क्या ये समझौता आम आदमी पार्टी के सिद्धान्तों एवं नीतियों के प्रतिकूल नहीं है? क्या आम आदमी पार्टी को लग रहा है की उसके पैरों के निचे से जमीन खिसक रही है? क्या आम आदमी पार्टी अब एक आम पार्टी हो गई है?

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आम आदमी पार्टी पंजाब में काफी दिनों से एक दमदार चेहरे की तलाश कर रही थी. लुधियाना के बैंस बंधुओं के रूप में पार्टी को दमदार चेहरा मिल गया है. लुधियाना दक्षिण और आत्मनगर विधानसभा से विधायक सिमरजीत सिंह बैंस और बलबिंदर सिंह बैंस ने बादल सरकार के खिलाफ काफी दिनों से मोर्चा खोल रखा है. दोनों  इंसाफ पार्टी के बैनर तले काफी समय से पंजाब के रेत माफियाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. इनका आरोप है कि रेत माफियाओं को अकाली सरकार द्वारा संरक्षण दिया जा रहा हैं. बैंस बंधुओं को पांच विधान सभा सीट देकर आप ने अपने खेमे में  इनके दमदार चेहरे सुनिश्चित कर लिया है.  

आम आदमी पार्टी सैद्धानिक रूप से गठबंधन के खिलाफ रही रही है. सितम्बर के महीने में आप के सांसद भगवंत मान ने कहा था की पार्टी किसी के साथ कोई अलायन्स नहीं कर सकती क्योंकि पार्टी के संविधान में इसका कोई प्रावधान नहीं हैं. और केवल दो महीने बाद सारा संविधान एवं सिद्धान्त धरा का धरा रह गया एवम पार्टी ने गठबंधन कर लिया. यही नहीं आप ने अपने स्थापना के समय कहा था की इस पार्टी में परिवारवाद नहीं होगा. पार्टी के संविधान के मुताबिक किसी भी परिवार के दो सदस्य एक साथ पार्टी की कार्यकारिणी में नहीं हो सकते और ना ही  किसी भी परिवार के दो सदस्यों को पार्टी की तरफ से चुनाव लड़ने का टिकट दिया जाएगा. जबकि बैंस बंधु के पार्टी का नाम भले ही इंसाफ पार्टी हो पर लोग इसे दो भाइयों के पार्टी के रूप में ही जानते है. मतलब की अलायन्स एवं दो भाईओं का एक साथ समर्थन, दोनों ही अपने ही सिद्धान्तों के साथ समझौता है.

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 अब आप और बैंस बंधु साथ-साथ खड़े हैं

8 सितम्बर को जब नवजोत सिंह सिद्धू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पंजाब में चौथे फ्रंट 'आवाज-ए-पंजाब' को लांच किया तो उन्होंने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर जमकर निशाना साधा था. सिद्धू ने आप के लिए कहा- 'वे (आप) भोली सूरत दिल के खोटे, नाम बड़े और दर्शन छोटे.' उन्होंने आप के लिए के लिए एनॉर्की (अराजकता) शब्द का भी इस्तेमाल किया. इस पुरे प्रेस कांफ्रेंस में बैंस बंधु भी मौजूद थे और सिद्धू के बातों का समर्थन कर रहे थे. अब आप और बैंस बंधु साथ-साथ खड़े हैं. अगर ये सैद्धान्तिक राजनीति है तो फिर अवसरवादिता क्या है?

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ऐसा माना जा रहा है की अरविन्द केजरीवाल के पिछले पंजाब दौरे में लोगों की भीड़ अपेक्षाकृत नहीं थी. इसके बाद आप के नेताओं में थोड़ा क्षति नियंत्रण करने का प्रयास किया. पहले वे सिद्धू से बातचीत का सिलसिला फिर से सुरु किये पर बात नहीं बानी तो बैंस बंधु को अपने पाले में ले आये. मतलब की उनको जब ये लगने लगा की उनके पैरों के नीचे से जमीन खिंचने लगी तो उन्होंने ये गठबंधन किया. फिर तो ये सिद्धान्त नहीं बल्कि स्वार्थ पर आधारित राजनीति है. आम आदमी पार्टी की शुरुआत राजनीति में बदलाव के लिया हुआ था पर आज ऐसा लगता है की ये भी एक आम पार्टी हो गई हैं.  

अवसरवादिता, सिद्धान्तविहीन राजनीति, तात्कालिक फायदे के लिए काम करना और येन केन प्रकारेण सत्ता पे काबिज होना भारत के लगभग हर राजनीतिक दल की फितरत बन गई है. अगर आम आदमी पार्टी भी यही कर रही है तो ये औरों से कैसे अलग है?

लेखक

अशोक उपाध्याय अशोक उपाध्याय @ashok.upadhyay.12

लेखक इंडिया टुडे चैनल में एडिटर हैं.

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