सोशल मीडिया और तकनीक के आगे चुनाव प्रचार थम जाने का क्या मतलब?
चुनाव आयोग के नियम और कानून को भले ही सख्ती से लागू कराता हो, क्या सोशल मीडिया और तकनीक के इस दौर में व्यावहारिक तौर पर ये प्रभावी रह गये हैं?
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आखिरी दौर की वोटिंग से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार थम गया. ठीक वैसे ही जैसे गुजरे जमाने में हुआ करता था - जब खबरों का माध्यम सिर्फ रेडियो और अखबार हुआ करते थे.
वोटिंग से पहले चाहे वो स्टार प्रचारक हो या कैंपेन में शामिल कार्यकर्ता, हर किसी को इलाका छोड़ना पड़ता है. उम्मीदवार भी अपने इलाके में व्यक्तिगत संपर्क करते हैं लेकिन ग्रुप में चलने या नारेबाजी की इजाजत नहीं होती.
चुनाव आयोग के नियम और कानून को भले ही सख्ती से लागू कराता हो, क्या सोशल मीडिया और तकनीक के इस दौर में व्यावहारिक तौर पर ये प्रभावी रह गये हैं?
सोमनाथ मंदिर से
यूपी में चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के गुजरात दौरे पर निकले. भाई के घर पर मां से मिले और फिर अगली सुबह दर्शन करने मंदिर पहुंचे.
सोमनाथ मंदिर में प्रधानमंत्री मोदी ने पूजा पाठ किये. इस दौरान उनके साथ अमित शाह और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल भी रहे. क्या ये महज संयोग था कि मोदी सोमनाथ मंदिर में उसी दिन पूजा करने पहुंचे जब बनारस में वोट डाले जा रहे थे? सोमनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है - और 1990 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इसी मंदिर से अपनी रथयात्रा शुरू की थी. आडवाणी की रथयात्रा अयोध्या पहुंचनी थी लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने उसे बिहार से आगे नहीं बढ़ने दिया.
हर हर महादेव!
मोदी ने बनारस में भी 4 मार्च को रोड शो किया जिस दिन पूर्वांचल के कई जिलों में वोट डाले जा रहे थे. हालांकि, अफसरों ने मोदी के काशी भ्रमण को रोड शो के दायरे से बाहर पाया.
उसी दिन अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने भी वाराणसी में रोड शो किया. रोड शो में पहली बार उनके साथ डिंपल ने भी हिस्सा लिया.
चुनावी मुहिम का प्रबंधन
यूपी में सात चरणों में मतदान हुए और एक बात गौर करने वाली रही वोटिंग के दिन कहीं न कहीं अखिलेश यादव और राहुल गांधी का साथ नजर आना. 'यूपी को ये साथ पसंद है' स्लोगन के साथ पहले कांग्रेस और फिर समाजवादी गठबंधन की मुहिम चलाने वाले प्रशांत किशोर ने खास तौर पर ये प्लान किया था.
बताते हैं कि गठबंधन में साथ वाली बात लोगों के दिमाग में रजिस्टर हो इसके लिए प्रशांत किशोर ने ये प्लान किया कि वोटिेंग वाले दिन ये दोनों मीडिया में साथ जरूर दिखें. याद कीजिए, पहले बनारस में 15 फरवरी को रोड शो होने वाला था, लेकिन किसी कारण से रद्द करना पड़ा तो दोनों नेता कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के साथ लखनऊ में साथ नजर आये.
प्रशांत किशोर लोगों तक मैसेज पहुंचाने में कामयाब भी रहे - और किसी भी तरीके से चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन भी नहीं हुआ.
फिर तो सोमनाथ मंदिर में मोदी का दर्शन भी संदेश भेजने में सफल रहा - और वो भी आदर्श आचार संहिता के सीमा क्षेत्र से सैकड़ों किलोमीटर दूर रहा.
वैसे तो चुनाव आयोग लोगों को एक ऐसा माहौल देना चाहता है जिसमें वे निष्पक्ष माहौल में निर्भीक होकर अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकें. ये नियम सख्ती से इसलिए भी लागू किये जाते हैं कि उम्मीदवार किसी तरह का लालच देकर या किसी और तरीके से लोगों को गुमराह कर अपने पक्ष में वोट न डलवा सके.
लेकिन मौजूदा दौर में क्या ये सब उतना प्रभावी रह गया है. एक इलाके में वोट पड़ रहा होता है और इलाके के सीमा क्षेत्र से बाहर किसी और जगह नेता भाषण दे रहे होते हैं.
भौतिक रूप से उनके भाषण की जगह मतदान की जगह से काफी दूर होती है, लेकिन लाइव टीवी के दौर में ये दूरी कितना मायने रखती है. टीवी को छोड़ भी दें तो फेसबुक, ट्विटर और सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफॉर्म 24 घंटे लोगों तक नेताओं के संदेश पहुंचा रहे हैं. जब तक एसएमएस का दौर था तब तक उस पर भी मनाही रही, लेकिन सोशल मीडिया ने तो ऐसी जगह मुहैया करा दी है कि चीजें कंट्रोल के बाहर हो चुकी हैं.
क्या ऐसे में चुनाव आयोग को ऐसे उपायों के बारे में नहीं सोचना चाहिये, जिससे वास्तव में लगे कि 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार का शोर थम गया.
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