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Updated: 29 जुलाई, 2017 08:29 PM
बिजय कुमार
बिजय कुमार
  @bijaykumar80
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गुजरात में राज्यसभा के लिए होने वाले चुनाव से पहले राज्य में कांग्रेस पार्टी की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं. अब तक पार्टी के 6 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है और उनके बीजेपी में शामिल होने की खबर है. इसी के मद्देनजर कांग्रेस पार्टी ने बाकी विधायकों को हॉर्स ट्रेडिंग या किसी भी प्रकार के तोड़फोड़ से बचाने के लिए कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक भेज दिया है.

इससे इतना तो साफ़ है कि कांग्रेस को इन विधायकों पर पूरा विश्वास नहीं था या कहें कि पार्टी आलाकमान इनको लेकर सशंकित थी. ऐसी खबरें हैं कि ये विधायक बेंगलूरु के किसी होटल में ठहराए गए हैं. फिर ये लोग यहीं से राज्यसभा चुनाव के मतदान के लिए जायेंगे. ऐसा नहीं है कि इन विधायकों में से हर कोई पार्टी छोड़ दे, लेकिन अब तक 6 विधायकों को खोने के बाद कांग्रेस पार्टी किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती क्योंकि अगर ज्यादा विधायक पार्टी का साथ छोड़ते हैं तो सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार और वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के राज्यसभा जाने में मुश्किल आ सकती है.

ऐसा नहीं है कि इस तरह कि घटना कोई पहली बार हो रही है. इससे पहले भी कई ऐसे मौके आए हैं जब पार्टियों ने अपने विधायकों को किसी गुप्त स्थान पर और विपक्ष की पहुंच से दूर रखा हो. आईये डालते हैं एक नजर कुछ ऐसी ही घटनाओं पर....

तमिलनाडु

Karnataka, MLA, Gujaratनया नहीं है विधायकों की किडनैपिंग

अभी कुछ महीने पहले, फ़िलहाल जेल में बंद अन्नाद्रमुक महासचिव शशिकला ने मुख्यमंत्री पद पर अपने दावे को मजबूत करने और अपने समर्थक विधायकों को किसी तरह के प्रलोभन या दबाव से बचने के लिए कहीं दूर होटल में भेज दिया था, जहाँ किसी बाहरी के जाने कि इजाज़त नहीं थी.

उत्तराखंड

पिछले वर्ष उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार के बहुमत साबित करने से पहले कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने अपने विधायकों को होटल में भेजा था.

कर्नाटक

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इससे पहले पिछले साल ही कर्नाटक में इसी तरह राज्यसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अपने विधायकों को बीजेपी के पाले में जाने से रोकने के लिए कांग्रेस ने उनको मुंबई स्थित एक होटल में ठहराया था.

झारखंड

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इस तरह कि घटनाओं में से मजेदार है वर्ष 2005 का वो घटनाक्रम जब झारखंड में बीजेपी ने अर्जुन मुंडा के नेतृतव वाली सरकार को बचाने के लिए कुछ विधायकों को राजस्थान के एक होटल में रुकवाया था. लेकिन उन्हीं विधायकों ने बाद में मधु कोड़ा की सरकार को समर्थन दे दिया था.

इन सबके अलावा और भी कई ऐसे उदाहरण हैं. लेकिन इन सब से एक बात ये समझ में आती है कि राजनीति में कई बार नेता सही मौके के इंतजार में रहते हैं और मौका देखते ही पाला बदल लेते हैं. ये नैतिक रूप से भले ही सही ना हो लेकिन वास्तविकता यही है. इस तरह के दल-बदल को रोकने में हमारा चुनाव आयोग या कानून व्यवस्था पूरी तरह से कारगर नहीं है. क्योंकि कोई भी अपने पसंद के अनुसार जब चाहे किसी पार्टी का साथ छोड़ सकता है. और लगभग हर एक पार्टी में दूसरे दलों से आये लोग देखने को मिल जाते हैं. इसमें किसी तरह कि कोई बुराई भी नहीं है.

वैसे मौजूदा वक़्त कि बात करें तो केवल कांग्रेस ही नहीं बल्कि दूसरी पार्टियां जैसे कि आप, एसपी और बीएसपी ने भी बीजेपी पर विपक्षी नेताओं को तोड़ने का आरोप लगाया है. लेकिन सच्चाई तो ये है कि दूसरों को दोष देने से पहले इन पार्टियों को ये सोचना होगा कि उनके नेता आख़िरकार उनका साथ क्यों छोड़ रहे हैं और अगर ऐसा हो रहा है तो इसके सबसे बड़े जिम्मेदार वो दल खुद है.

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लेखक

बिजय कुमार बिजय कुमार @bijaykumar80

लेखक आजतक में प्रोड्यूसर हैं.

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