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Updated: 18 जून, 2017 05:09 PM
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सियासी हलकों में ये आम धारणा है कि अमित शाह मातोश्री जाने से बचते रहे हैं. वजय ये मानी जाती है कि वो शिवसेना को ज्यादा अहमियत नहीं देना चाहते. अगर राष्ट्रपति चुनाव नहीं होता तो शाह के इस महाराष्ट्र दौरे में भी मातोश्री का कार्यक्रम शायद ही बन पाता.

मातोश्री में मुलाकात

बहरहाल, बीजपी अध्यक्ष शाह जब मातोश्री पहुंचे तो उनके साथ महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस भी थे. बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद शाह का ये पहला मातोश्री दौरा था. इससे पहले वो विधानसभा चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे पर चर्चा के लिए मातोश्री गये थे.

मातोश्री की ये मुलाकात करीब सवा घंटे चली. जाहिर है बातचीत के मुद्दों में सबसे ऊपर तो राष्ट्रपति चुनाव ही रहा होगा, लेकिन किसानों का मसला अछूता रहा होगा ऐसा भी नहीं लगता.

इस मुलाकात से पहले जब शाह के सामने मध्यावधि चुनाव का सवाल उठा तो उन्होंने फडणवीस के बयान को एनडोर्स करने के साथ ही इस बात का भी ख्याल रखा कि शिवसेना भी कहीं नाराज न हो. फडणवीस ने कहा था कि बीजेपी मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार है.

uddhav Thackeray, amit shahये मुलाकात बहुत जरूरी है...

मध्यावधि चुनाव को लेकर शाह का कहना रहा, 'मुख्यमंत्री फडणवीस के कहने का मतलब यह था कि यदि मध्यावधि चुनाव हम पर थोपा जाता है, तो हम चुनाव लड़ने को तैयार हैं.'

शाह की ये टिप्पणी फडणवीस के उस बयान पर थी जिसमें उन्होंने कहा था, 'जब किसानों का आंदोलन चल रहा था, तो कुछ लोग सरकार को गिराने या समर्थन वापस लेने की बात कर रहे थे. अगर कोई सरकार से समर्थन खींचना चाहता है और फिर से चुनाव के लिए जाना चाहता है, तो बीजेपी मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार है. हम चुनाव के बाद फिर से सत्ता में आएंगे.'

बात तो राष्ट्रपति चुनाव और किसानों की कर्जमाफी की चल रही थी, लेकिन मध्यावधि चुनाव की ये बात अचानक उठी कहां से? दरअसल, शिवसेना नेता संजय राउत के बयान पर फडणवीस की ओर से पलटवार था. राउत ने यूं ही बीजेपी को लेकर बड़ी गंभीर बात बोल दी थी - 'जुलाई बाद सरकार मुसीबत में होगी.'

सकते में शिवसेना

राउत की इस बात पर बीजेपी का रिएक्ट करना स्वाभाविक ही था. राउत ने जुलाई की बात कही थी और जुलाई में ही राष्ट्रपति चुनाव होना है. यानी राष्ट्रपति चुनाव भले ही जैसे तैसे बीत जाये, उसके बाद बीजेपी-शिवसेना के रिश्ते पहले जैसे नहीं रहने वाले हैं. एक मराठी चैनल से भी राउत ने कहा था कि अगर किसानों का कर्ज माफ नहीं किया गया तो वे अपना समर्थन वापस ले लेंगे.

राउत की इन बातों पर बीजेपी को सख्ती से इसलिए भी टिप्पणी करनी पड़ी क्योंकि कुछ दिन पहले ही उद्धव ठाकरे ने किसानों के मुद्दे पर एक बड़ी रैली की थी - और उसमें उन सभी को जुटाया जिससे बीजेपी को चिढ़ हो. बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा चिढ़ने वाली बात किसान नेता राजू शेट्टी की शिरकत रही.

लेकिन जब मुख्यमंत्री मध्यावधि चुनाव की बात कर दी और उसके बाद शाह ने भी बयान दे दिया तो शिवसेना में जैसे हड़कंप मच गया.

एनडीटीवी से बातचीत में राउत खुद को संभालते नजर आये, कहा - पीटीआई की खबर को वो तवज्जो नहीं देते. राउत का कहना था कि मध्यावधि चुनाव वाली बात को वो फडणवीस का आधिकारिक बयान नहीं मानते. राउत का कहना था कि जब फडणवीस सामने से बोलेंगे तो उनकी पार्टी आधिकारिक प्रतिक्रिया देगी.

राउत की ही तरह उद्धव ठाकरे ने भी ऐसे प्रतिक्रिया दी जैसे वो उसे कम महत्व देना चाहते हों. उद्धव बोले, 'मध्यावधि चुनाव की बात किसानों की कर्जमाफी से ध्यान भटकाने के लिए की जा रही है. ऐसा लगता है कि बीजेपी के पास काफी पैसा है, जिसका इस्तेमाल चुनाव में किया जाना है. उन्हें ये पैसा किसानों को देना चाहिए.'

फ्रेंडली किचकिच

मध्यावधि चुनाव की चर्चा छेड़ बीजेपी ने शिवसेना को दबाव में ला दिया है. पंचायत, म्युनिसिपल काउंसिल और म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में शिवसेना को शिकस्त देने के बाद बीजेपी के हौसले बुलंद हैं. शिवसेना विधायक भी किसी भी सूरत में विधानसभा चुनाव का सामना करने को तैयार नहीं हैं.

बावजूद इसके किसानों के आंदोलन से बीजेपी सरकार मुश्किल महसूस करने लगी थी. स्थिति पर काबू पाने के लिए सरकार को किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा करनी पड़ी. इस बारे में सरकार की तरफ से कहा गया कि एक कमेटी बनायी जाएगी जो कर्ज माफी के लिए मानक तैयार करेगी. सरकार के इस ऐलान से किसानों का आंदोलन तो थम गया लेकिन राजनीति नहीं.

स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के नेता राजू शेट्टी ने सरकार के कदम का स्वागत किया और साथ में कहा कि अगर वादाखिलाफी हुई तो वे लोग 25 जुलाई से दोबारा आंदोलन करेंगे. शिवसेना अध्यक्ष ने भी कहा है कि अगर किसानों की मांगें नहीं मानी जातीं तो शिवसेना 'राजनीतिक भूकंप' ला देगी.

बीजेपी और शिवसेना के रिश्ते के हालिया इतिहास पर नजर डालें तो एक फ्रेंडली किचकिच हर चुनाव के इर्द गिर्द उछल उछल कर मीडिया के जरिये पब्लिक का ध्यान खींचती रही है. विधान सभा चुनाव के वक्त लग रहा था कि शिवसेना केंद्र की सत्ता से अलग हो जाएगी. फिर नगर निकाय चुनावों के वक्त भी लगा कि महाराष्ट्र सरकार से भी शिवसेना हट जाएगी. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ - और अगर ट्रैक रिकॉर्ड किसी भविष्यवाणी का आधार माना जाये तो मध्यावधि चुनाव की बात भी एक तरीके से फ्रेंडली किचकिच ही साबित होने वाला है.

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