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Updated: 13 अगस्त, 2017 03:48 PM
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सात अगस्त से गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में 64 बच्चों की मौत हो चुकी है. ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स का सात महीने से ज्यादा वक्त से पेमेंट बकाया था. इस पेमेंट के लिए कंपनी ने सात महीने में सात रिमाइंडर भेजे - और आखिरकार ऑक्सीजन की सप्लाई रोक दी. लेकिन क्या इस त्रासदी के लिए अकेले ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी जिम्मेदार है? ऐसा तो नहीं लगता, बल्कि इसके पीछे पूरा टीम वर्क है जो कसूरवार लगता है. त्रासदी के सात कसूरवार कौन कौन हैं- आइए समझते हैं.

1. ऑक्सीजन सप्लायर कंपनी के डायरेक्टर मनीष भंडारी

सरकार भले ही इंकार करे, लेकिन साफ हो चुका है कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई. ऑक्सीजन की कमी इसलिए हुई क्योंकि ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो गयी थी. ऑक्सीजन सप्लाई इसलिए बंद हो गयी थी क्योंकि कंपनी का पेंमेंट बकाया था. अस्पताल को ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी पुष्पा सेल्स का 2.5 अरब रुपये का टर्न ओवर बताया जा रहा है, लेकिन उसने 69 लाख का बकाया न मिलने के लिए सप्लाई रोक दी.

brd hospital victimबच्चों पर कहर...

गैस की सप्लाई से कमाई तो उसे अच्छी खासी हुई होगी, लेकिन क्या कंपनी के डायरेक्टर मनीष भंडारी को एक बार भी नहीं लगा कि उसके इस कदम का क्या नतीजा होगा? भले ही इसके पीछे कई लोग जिम्मेदार हों लेकिन पुष्पा सेल्स के डायरेक्टर मनीष भंडारी इस घटना के कसूरवार हैं.

2. BRD मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल राजीव मिश्रा

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक बीआरडी कॉलेज के प्रिंसिपल को पुष्पा सेल्स की ओर से सात रिमाइंडर भेजे गये, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया. सरकार ने प्रिंसिपल राजीव मिश्रा को सस्पेंड कर दिया है.

एग्रीमेंट के अनुसार पेमेंट 15 दिन के अंदर हो जाना चाहिये और बकाया कभी भी 10 लाख से ज्यादा नहीं होना चाहिये. पेमेंट नवंबर 2016 से बताया जाता है और पिछली मई और जून में पार्ट पेमेंट हुआ था. फिर कंपनी ने 31 जुलाई को एक लीगल नोटिस भी भेजा था.

क्या प्रिंसिपल को पता नहीं था कि अगर पेमेंट नहीं हुआ तो अस्पताल में ऑक्सीजन की सप्लाई ठप हो सकती है? इंसेफेलाइटिस वॉर्ड के प्रभारी डॉ. कफील आधी रात के बाद जूझते हुए 12 सिलेंडर इकट्ठा कर सकते हैं तो प्रिंसिपल के पास तो उनसे कहीं ज्यादा ही क्षमता होती होगी. डॉ. कफील ने निजी स्तर पर इतनी कोशिश की, प्रिंसिपल के पास तो सरकारी संसाधन भी होंगे. या सच में उन्होंने रिश्वत के चक्कर में पेमेंट लटकाये रखा और मासूमों को मौत के मुहं में धकेल दिया?

3. गोरखपुर के जिलाधिकारी राजीव रौतेला

खबरें बताती हैं कि बकाये के रिमाइंडर वाले पत्र प्रिंसिपल के साथ-साथ गोरखपुर के जिलाधिकारी और यूपी के चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा विभाग के महानिदेशक को भी भेजी गयी थी. ताज्जुब की बात है किसी ने भी उन पर ध्यान नहीं दिया.

brd hospital victimकलेजा तो हाजिर था, सांस कहां से लाती...

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि 9 अगस्त को जब वो अस्पताल के दौरे पर थे तो उन्होंने पूछा था- 'और कोई आवश्यकता तो नहीं है?' तो क्या उसके बाद भी, किसी को भी ऑक्सीजन की सप्लाई ठप होने की आशंका नहीं हुई? मुख्यमंत्री के दौरे में तो हर अधिकारी होगा जिस पर प्रशासनिक जिम्मेदारी है. तो क्या किसी का ध्यान नहीं गया या सच में सब मिले हुए थे? पेमेंट रोक रखने में भी कोई टीम वर्क काम कर रहा था क्या? क्या जिलाधिकारी को वस्तुस्थिति की कोई जानकारी नहीं रही? क्या पेमेंट रुके होने के पीछे कोई वजह या किसी पर उन्हें कभी शक भी नहीं हुआ?

4. यूपी के चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन

मामला मेडिकल कॉलेज में मौत का था इसलिए मीडिया के सामने चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन आये - और आते ही मीडिया पर ही बरस पड़े. पहले तो उन्होंने कहा कि चैनल वाले भ्रामक खबरें दिखा रहे हैं. फिर जोर देकर बताया कि 'आज सिर्फ सात मौतें' हुई हैं. सात बच्चों की मौत की बात भी उन्होंने इसलिए कबूली क्योंकि ये 11 अगस्त की बात है. 10 अगस्त को 23 बच्चों की मौत हुई थी उसे भी उन्होंने भ्रामक कह कर हवा में उड़ा दिया. ऑक्सीजन सप्लाई को सरकारी तौर पर नकारने की पहल संभवत: उन्होंने ही की जिस पर सरकार ने आगे भी स्टैंड बनाये रखा.

क्या मंत्री वास्तव में ऑक्सीजन की सप्लाई और पेमेंट बकाया होने की बातों से बेखबर रहे? अगर नहीं तो उन्होंने ऐसा क्यों किया? अगर ऐसा किया तो क्यों न उन्हें भी इसका कसूरवार समझा जाये?

5. यूपी के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह

स्वास्थ्य मंत्री योगी सरकार के उन दो मंत्रियों में से एक हैं जो फ्रंट पर आकर मीडिया में सरकार की नीतियों, फैसलों और योजनाओं की जानकारी देते हैं. गोरखपुर में मामले में जो भी जानकारी उन्हें मिली होगी वे बताने लायक तो रहीं नहीं, लिहाजा उन्हें सरकार बचाव करना था. अस्पताल का दौरा करने के बाद उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस की और अपने शोध पेश किये. जब सरकार ने ऑक्सीजन की कमी नकारने की लाइन ले रखी थी तो उन्हें भी उसे ही सही साबित करना था. इस काम में उन्होंने संवेदनहीनता की भी सारी हदें पार कर दीं. ऊपर से नया शोध पत्र भी पेश कर दिया - 'अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं'.

मंत्री होने के नाते सिद्धार्थनाथ सिंह जिम्मेदारी से तो भाग नहीं सकते, लेकिन जिस तरीके से उन्होंने हर किसी को गुमराह करने की कोशिश की उससे भरोसा अपनेआप कम हो जाता है. वो कुछ भी कहें, कसूरवारों की फेहरिस्त से वो खुद को अलग नहीं कर सकते.

6. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ

योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम बनने से पहले लंबे अरसे से गोरखपुर से सांसद रहे हैं. गोरखपुर में उनके सामाजिक कार्यों के तमाम किस्से बताये जाते हैं. वहां के लोग भी इस बात का जिक्र भी बड़ी शिद्दत से करते हैं. द वायर वेबसाइट से बातचीत में एंसेफेलाइटिस उन्मूलन अभियान के कैंपेनर डॉ. आरएन सिंह ने एक बार कहा था, "योगी आदित्यनाथ ने तीन बार पांच सात हजार लोगों को लेकर दस दस किलोमीटर की यात्रा की, धरना दिया, लोकसभा में मुद्दा उठा, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. हम लोग 2009 से लेकर 2011 तक सरकार को खून से खत लिखते रहे. सात जिलों से कम से कम चालीस बार सौ-दो सौ की संख्या में ख़त भेजे गए. हम सभी अपना खून निकाल कर ये खत लिखते थे."

yogi adityanathगोरखपुर में भावुक हुए योगी

त्रासदी के तीसरे दिन जब योगी आदित्यनाथ गोरखपुर पहुंचे तो पत्रकारों के सवालों पर उनका जवाब था- "कुछ तो शर्म करो." असल में बच्चों की मौत को लेकर योगी आदित्यनाथ लगातार कहते आ रहे हैं कि मीडिया सही आंकड़े दिखाये. जब मीडिया सही आंकड़े दिखा रहा है तो वो सरकार के खिलाफ चला जा रहा है - और इस पर यूपी के तमाम मंत्री और मुख्यमंत्री सभी मीडिया पर गुस्सा उतार रहे हैं.

बाद में अपनी प्रेस कांफ्रेंस में योगी ने कहा, "मैं मुख्यमंत्री बनने के बाद अब तक 4 बार BRD अस्पताल आ चुका हूं. 9 अगस्त को भी BRD आया था. मैं 1996-97 से इस लड़ाई को लड़ रहा हूं. उन बच्चों के लिए मुझसे ज्यादा संवेदनशील कोई नहीं हो सकता. मैं इंसेफेलाइटिस के खिलाफ सड़क से संसद तक लड़ा." वो इस दौरान थोड़े भावुक भी नजर आये.

इससे पहले योगी का कहना था, "बच्चों की मौत गंदगी भरे वातावरण और खुले में शौच के चलते हुई है... मच्छरों से फैलने वाली कई बीमारियां हैं, जिसमें इनसेफलाइटिस भी शामिल है."

7. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

ये सही है कि किसी थानेदार की गलती के लिए प्रधानमंत्री को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. मगर, ये भी सही है कि अगर कोई वादा और उसे भूल जाये तो उसे कसूरवार होने से छूट देने का कोई मतलब नहीं बनता. 22 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गोरखपुर में एम्स की आधारशिला रखने पहुंचे थे जहां उन्होंने घोषणा की थी कि ‘एक भी बच्चे को इन्सेफलाइटिस से मरने नहीं दिया जाएगा.’

तीन दिन में तीन दर्जन बच्चे मर जाते हैं जिनमें एंसेफेलाइटिस से भी जूझ रहे होते हैं - और उनकी सांस चलती रहे इसके लिए अस्पताल में ऑक्सीजन भी नहीं मिलती. यूपी सरकार की संवेदनहीनता तो लोग देख ही रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने एक ट्वीट भी नहीं किया तो लोग उन्हें भी क्यों न कसूरवार मानें? प्रधानमंत्री की ओर से संवेदना भरे एक ट्वीट का ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ चुके बच्चों के मां बाप को अब भी इंतजार है.

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