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Updated: 22 अप्रिल, 2017 03:55 PM
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का बीजेपी पर ताजा इल्जाम है कि वो एमसीडी चुनाव में भ्रष्टाचार छुपाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का इस्तेमाल कर रही है. क्या इसे भी केजरीवाल के यू टर्न के तौर पर देखा जाना चाहिये?

केजरीवाल के कहने का मतलब तो यही लगता कि बीजेपी ने पिछले 10 साल में एमसीडी में जो भी घपले किये उसे छुपाने के लिए मोदी के नाम का सहारा ले रही है. तो क्या केजरीवाल भी अब मान चुके हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी एक ऐसा नाम बन चुका है कि कोई पार्टी उसके पीछे अपनी कमियां छुपा सकती है? भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में इक्सक्लूसिव राइट्स रखने वाले केजरीवाल ने क्या अब ये तमगा मोदी की ओर बढ़ा दिया है?

मोदी-मोदी

अप्रैल के पहले ही हफ्ते में दिल्ली की एक रैली में जब 'मोदी-मोदी' नारे लगे तो अरविंद केजरीवाल आपे से बाहर हो गये. केजरीवाल ने सवाल किया - अगर मोदी के नारों से पेट भर जाता तो मैं भी मोदी-मोदी के नारे लगाने को तैयार हूं. फिर क्रोध से लाल केजरीवाल ने खुद ही तीन बार 'मोदी-मोदी' के नारे लगा डाले.

केजरीवाल ने और भी सवाल किये, 'इन लोगों से पूछिये मोदी-मोदी के नारे लगाने से क्या उनका हाउस टैक्स माफ हो जाएगा? क्या मोदी ने उनके बिजली के बिल कम किये?' आखिर में गुस्से में केजरीवाल बोले - 'मोदी के नारे लगाने वाले लोग पागल हो गए हैं.'

arvind kejriwal manish sisodiaमोदी और बीजेपी को अलग कैसे कर दिये?

राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आने से पहले तक अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हमेशा की तरह आक्रामक हुआ करते थे. दिल्ली की 70 में से 67 सीटें जीतने वाले केजरीवाल ने उपचुनाव में हार के बाद एमसीडी चुनाव के लिए उन्हें अपनी रणनीति में काफी बदलाव करने पड़े.

और यू टर्न

ये केजरीवाल ही हैं जो मोदी को 'कायर' और 'मनोरोगी' कहने के साथ साथ उन पर अपनी हत्या कराने तक का इल्जाम लगा चुके हैं. मोदी के खिलाफ वाराणसी लोक सभा सीट से चुनाव लड़ चुके केजरीवाल ने मोदी का शायद ही ऐसा कोई फैसला हो जिस पर सवाल न उठाया हो. चाहे बात नोटबंदी की हो या फिर सर्जिकल स्ट्राइक की ही क्यों न हो. सर्जिकल स्ट्राइक पर तो केजरीवाल ने बड़ी ही चतुराई से सबूत तक मांग लिया था.

जहां तक राजनीतिक चालों की बात है, मोदी ने एक एक करके केजरीवाल के सारे दावों की हवा निकाल दी है. सबसे पहले तो मोदी की नजर केजरीवाल के झाडू पर पड़ी. जो झाडू केजरीवाल की पार्टी की पहचान हुआ करता था - उसे स्वच्छता अभियान के प्रतीक के रूप ने देखा जाने लगा है. केजरीवाल ने राजनीति में वीआईपी कल्चर खत्म करने के सबसे बड़े पैरोकार के तौर पर खुद को प्रोजेक्ट किया था. कभी सिक्योरिटी न लेने के नाम पर तो कभी सड़क पर वीआईपी बन कर न घूमने को लेकर. ऐन एमसीडी चुनावों के बीच मोदी ने गाड़ियों से लालबत्ती हटाकर वीआईपी कल्चर खत्म करने का क्रेडिट भी अपने नाम कर लिया. खुद को प्रधान सेवक बता चुके मोदी ने आम आदमी के बराबर बताकर केजरीवाल से ये दावा भी हथिया लिया.

अचानक हृदय परिवर्तन कैसे हो गया कि बगैर गुस्से के भी खुद ही मोदी-मोदी करते नजर आने लगे?

पंजाब में सरकार बनाने का ख्वाब देख रही आम आदमी पार्टी को विपक्ष में बैठने को मजबूर होना, गोवा में खाता तक न खुलना और फिर दिल्ली के उपचुनाव में कांग्रेस द्वारा तीसरे पोजीशन पर धकेल देना, ऐसे सबक हैं कि किसी को भी अपनी रणनीतियों पर विचार करने को मजबूर होना पड़ेगा. केजरीवाल ने भी अपनी पार्टी के लिए ऐसा ही किया है.

दरअसल, उपचुनाव की हार के बाद केजरीवाल की पार्टी ने फैसला किया कि आगे से वो मोदी पर निजी हमले नहीं करेंगे. अब केजरीवाल बीजेपी पर तो वैसे ही बरसते हैं, लेकिन मोदी को पूरी तरह बख्श दे रहे हैं.

दिल्ली में 23 अप्रैल को एमसीडी चुनाव में वोट डाले जाने हैं - और केजरीवाल ने प्रचार का बिलकुल नया तरीका अख्तियार किया है. केजरीवाल ने तो यहां तक कह दिया है कि बीजेपी को वोट दिया तो अगले पांच साल कूड़ा, मच्छर ऐसे ही रहेंगे. ट्विटर पर केजरीवाल ने अपनी पोस्ट में कहा है - 'कल अगर आपके घर डेंगू हो जाए, तो आप खुद उसके जिम्मेदार होंगे, क्योंकि आपने बीजेपी को वोट दिया.'

reply to kejriwal tweetकेजरीवाल से सवाल...

ध्यान देने वाली बात ये है कि केजरीवाल ने इन बातों से मोदी को बिलकुल अलग रखा है. दिल्ली सरकार को परेशान करने के लिए उप राज्यपाल को भला बुरा कहते वक्त भी केजरीवाल के निशाने पर मोदी ही हुआ करते रहे, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा. केजरीवाल की नयी दलील ये है कि एमसीडी में मोदी का कोई सीधा रोल तो होगा नहीं, उसे तो दिल्ली के नेता विजेंदर गुप्ता जैसे लोग ही चलाएंगे. मतलब ये कि केजरीवाल नजर में फिलहाल हर कसूर सिर्फ बीजेपी का है, मोदी का तो कतई नहीं.

केजरीवाल के राजनीति में आने का एक ही एजेंडा था, सिस्टम से भ्रष्टाचार खत्म करना. भ्रष्टाचार के लिए वो लोकपाल लाने के वादे के साथ चुनाव लड़े, सरकार बनाई, इस्तीफा दिया, माफी मांगी और फिर रिकॉर्ड जीत के साथ दोबारा सरकार बना ली. न तो केजरीवाल लोकपाल ला पाये, न मोदी के नोटबंदी से काला धन की सेहत पर कुछ खास असर के कोई सबूत मिले, लेकिन मोदी का नाम लेकर केजरीवाल ने बीजेपी पर जो हमला किया है उससे नये सवाल जरूर खड़े हो गये हैं. ऐसा क्यों लगता है जैसे केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी को खुद से भी बड़ा चेहरा मान लिया हो. ये विचार सिर्फ एमसीडी चुनाव तक के लिए हैं, या आगे भी कायम रहेगा? मतलब गुजरात चुनाव में भी मोदी के प्रति केजरीवाल की यही धारणा बरकरार रहेगी क्या?

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