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Updated: 21 अक्टूबर, 2017 05:29 PM
प्रभुनाथ शुक्ल
प्रभुनाथ शुक्ल
 
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पंजाब के गुरदासपुर संसदीय उपचुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली है. इस सीट पर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत हुई थी. अप्रैल में विनोद खन्ना के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई थी. इस सीट पर भाजपा की पराजय कई सवाल खड़े करती है. गुरुदासपुर में कांग्रेस को मिली बड़ी जीत से पार्टी को एक नई उम्मीद बंधी है. इस हार से अब तक राहुल गांधी की चुटकी लेने वाली भाजपा की आंख खुली है. 

राजनीतिक समीक्षकों के अनुसार उपचुनाव में जीत कोई बड़ा मायने नहीं रखती. क्योंकि पंजाब में भाजपा और अकाली दल पूरी तरह बिखर गया है. वहां दो बार से अकाली दल की सरकार थी. पंजाब नशे को लेकर काफी बदनाम है. विकास भी उस तरीके से नहीँ हुआ, जिसका नतीजा रहा पंजाब में कांग्रेस की वापसी हो गई. वहां कांग्रेस की सरकार है, इसलिए यह जीत बहुत मायने नहीं रखती है.

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आम तौर पर यह देखा गया है कि जिसकी सत्ता रहती है उपचुनाव का परिणाम उसी की झोली में जाता है. लेकिन सिर्फ गुरुदासपुर के नतीजे से पूरे देश के सियासी मिजाज का अंदाज़ नहीं लगाया जा सकता है. हालांकि यह परिणाम चौंकाने वाले हैं. इसलिए नहीं की वहां कांग्रेस की जीत हुई है बल्कि जीत-हार के बीच का अंतर काफी रहा है. अभी तक विनोद खन्ना जितने वोटों के अंतर से जीतते आए थे, उससे भी अधिक मतों से कांग्रेस की जीत हुई है.

कांग्रेस उम्मीदवार सुनील जाखड़ ने 1.93 लाख वोटों से अधिक के अंतर से चुनाव जीता है. भाजपा उम्मीदवार स्वर्ण सलारिया के 3.06 लाख वोटों की तुलना में सुनील जाखड़ को 4.99 लाख वोट मिले. आम आदमी पार्टी को करीब 24,000 वोट मिले. लेकिन वहीं 2014 में भाजपा के विनोद खन्ना के खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार प्रताप सिंह बाजवा की 1.36 लाख मतों से हार हुई थी. यह जीत कांग्रेस उम्मीदवार की 1980 में सुखबंस कौर भिंडर पर जीत के रिकॉर्ड को भी तोड़ती है. इस चुनाव में सुखबंस कौर को 1.51 लाख मतों से जीत दर्ज की थी.

इस चुनाव परिणाम से यह साबित हो रहा है कि मोदी और भाजपा की नीतियों से लोगों का मोहभंग हो रहा है. क्योंकि यह चुनाव राज्य विधानसभा का चुनाव नहीं था. यह लोकसभा का उपचुनाव था जो सीधे मोदी की नीतियों से जुड़ा था. अगर कांग्रेस उम्मीदवार की जीत बेहद कम मतों से होती तो यह बात मानी जा सकती थी कि वहां कांग्रेस की सत्ता है इसलिए नतीजे चौंकाने वाले नहीं हैं.

इस जीत से कांग्रेस और राहुल गांधी को नई उम्मीद बंधी है. क्योंकि मोदी की सुनामी के आगे कांग्रेस और राहुल गांधी टिक नहीं पा रहे थे. कांग्रेस शासित राज्यों पर भाजपा का कब्जा जारी है. अब तक उसका प्रभाव अठारह राज्यों तक फैल चुका है. जबकि देश की सबसे बड़ी पार्टी लोकसभा में 44 के आंकड़े पर पहुंच गई. पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में भी भगवा ने दस्तक दे दी है. यह माना जाता था कि भाजपा की जीत मध्य भारत में तो सम्भव है, लेकिन दक्षिण और पूर्वोत्तर में उसका फैलाव संभव नहीं है.

अब कांग्रेस की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा हिमाचल प्रदेश को बचाना है. क्योंकि वहां कांग्रेस की सत्ता है. जबकि भाजपा अपनी वापसी के लिए पूरी कोशिश में है. इसलिए पार्टी को गुरुदासपुर की जीत पर अधिक ख़ुश होने की ज़रूरत नहीं है. अगर हिमाचल को राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस बचाने में कामयाब रहते हैं, तो यह कांग्रेस के लिए बड़ी उपलब्धि होगी. इससे यह साबित होगा कि लोगों में मोदी का जादू और भाजपा की नीतियां बेअसर हो रहीं हैं. दूसरी सबसे बड़ी चुनौती गुजरात की जीत होगी. क्योंकि गुजरात के जिस विकास मॉडल को आगे कर मोदी ने सत्ता हासिल किया था वहां कांग्रेस की विजय के साथ यह तिलस्म टूट जाएगा. 

मोदी के केंद्र में आने के बाद गुजरात में अब कोई करिश्माई नेता नहीं दिखता है. आनंदी बेन पटेल के बाद वहां दूसरे चेहरे को कमान सौंपी गई है. दूसरी बात अगर कांग्रेस यहां वापसी करती है, तो यह मोदी और अमित शाह के लिए बड़ी चुनौती होगी. उस स्थिति में कांग्रेस के लिए 2019 की राह आसान हो जाएगी और भाजपा को कड़ी टक्कर देने में वह कामयाब होगी. क्योंकि गुजरात में पटेल आरक्षण को लेकर हार्दिक पटेल भाजपा के लिए मुसीबत बन सकते हैं. यह पटेल अगड़ी जाति में आते हैं. यह पटेलों की कुल आबादी का बीस फीसदी हैं.

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दूसरी बात नोटबंदी और जीएसटी से गुजरात के कपड़ा उद्योग पर काफी बुरा असर पड़ा है. जीएसटी की नीतियों के विरोध में वहां के व्यापरी सड़क पर उतर चुके हैं. लोगों का कारोबार नष्ट हो चला है. इस वजह से लोग केंद्र सरकार से नाराज हैं. मीडिया में जो बातें आ रहीं हैं उससे भी यह लग रहा है कि गुजरात में कांग्रेस-भाजपा को कड़ी चुनौती देने की स्थिति में है.

प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी लगातार गुजरात का दौरा कर रहे हैं. भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री गौरव यात्रा में शामिल हो सरकार की उपलब्धियों को गिना रहे हैं. पीएम ने हजारों करोड़ की परियोजनाओं की आधारशीला रखी है. हालांकि पार्टी ने इसे चुनावी चश्मे से न देखने की बात कही है. लेकिन जमीनी सच्चाई यही है कि गुजरात की स्थिति बेहद अच्छी नहीं है. लेकिन लोकतंत्र का चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा कहा नहीं जा सकता है.

लेकिन कांग्रेस की यह जीत बड़ा संदेश देने में कामयाब रही है. भाजपा के लिए यह चिंतन का वक्त है. क्योंकि लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष का होना बेहद ज़रूरी है.

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