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Updated: 22 सितम्बर, 2017 07:23 PM
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सैम पित्रोदा की सलाहियत लगता है कि काम करने लगी है. ज्यादा तो नहीं लेकिन राहुल गांधी के बारे में लोगों की धारणा थोड़ा बहुत बदलनी शुरू हो गयी है. मुद्दे भी राहुल गांधी सोच समझ कर उठा रहे हैं. अपनी बातें भी वो शोर शराबे के साथ नहीं बल्कि संजीदगी के साथ रख रहे हैं.

विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में मिली नाकामी के बाद कांग्रेस को अपनी स्ट्रैटेजी बदलनी पड़ी है. ऐसा लगता है कांग्रेस ने अब खुद ही आगे बढ़ कर मोदी सरकार को घेरने का फैसला किया है. कांग्रेस की ये सियासी हरकत देश और विदेश दोनों जगह नजर आ रही है - और खास जोर चुनावी राज्यों पर है, लेकिन सबसे पहले होगी राहुल गांधी की ताजपोशी.

राहुल फॉर्म में आने वाले हैं

राहुल गांधी को कांग्रेस का युवराज कहा जाता है और इसीलिए उनके अध्यक्ष बनने को ताजपोशी के तौर पर देखा जाता है. राहलु गांधी ने पहली बार अमेरिका में बोला कि वो प्रधानमंत्री बनने को तैयार हैं, अगर उनकी पार्टी कांग्रेस ऐसा चाहती है. वैसे प्रधानमंत्री बनने की बात तो बाद में आएगी, राहुल के इस बयान को इस तरह लिया गया कि अब वो कांग्रेस की कमान संभालने के लिए तैयार हो चुके हैं.

कई महीनों से राहुल गांधी के कमान संभालने की खबरें आती रहीं हैं. अब सूत्रों के हवाले से कांग्रेस जोर देकर संदेश भिजवाने लगी है कि नवंबर में राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जा सकता है. ऐसा होने पर भी सोनिया गांधी कांग्रेस कार्यकारिणी में बनी रहेंगी - और संसदीय बोर्ड की अध्यक्ष भी रहेंगी.

rahul gandhi, sonia gandhiसरकार बने न बने, अच्छे दिन तो आएंगे...

राहुल गांधी को जनवरी, 2013 में जयपुर में कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया था. कुछ ही दिन बाद उन्हें कमान सौंपे जाने की बातें होने लगी लेकिन कुछ वरिष्ठ नेताओं के विरोध के चलते मामला टलता गया. धीरे धीरे विरोध के वे स्वर भी शांत हो गये हैं. राहुल की सक्रियता के जरिये कांग्रेस के सलाहकार ये जताने की कोशिश कर रहे हैं राहुल गांधी फुल फॉर्म में आने वाले हैं.

उपाध्यक्ष पद राहुल गांधी के लिए भले ही फूलों की सेज जैसा रहा हो, लेकिन अध्यक्ष पद कांटों के ताज से कम नहीं रहने वाला. जिन दिनों राहुल गांधी आधिकारिक तौर पर कांग्रेस की कमान संभालेंगे - गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनावी माहौल शवाब पर होगा.

बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस की घेरेबंदी

अमेरिका में राहुल गांधी के कार्यक्रम का जिस तरीके से प्रचार प्रसार हो रहा है वो किसी फिल्म के ट्रेलर जैसा है. ये ट्रेलर में पूरा फिल्मी है जो थ्रिल, एक्शन और ड्रामा से भरपूर है. फिर तो एक बात और पक्की हो जाती है पिक्चर पूरी बाकी है.

कांग्रेस ने बीजेपी और केंद्र की मोदी सरकार पर चौतरफा हमले की पूरी तैयारी कर ली है. राहुल गांधी विदेशी धरती से सियासी हमला बोल रहे हैं तो सोनिया गांधी देश के भीतर. राहुल गांधी ने बेरोजगारी का मामला उछाल कर मोदी सरकार को घेरा है तो सोनिया गांधी ने पत्र लिख कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महिला बिल पास कराने की चुनौती दे डाली है.

20 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी को लिखी चिट्ठी में सोनिया गांधी ने कहा है - आप लोग सभा में महिला बिल लाइए कांग्रेस उसका समर्थन करेगी. इसके साथ ही सोनिया ने मोदी सरकार को खुली चुनौती दे डाली है कि उसके पास लोक सभा में बहुमत है और वो इसे पास कर दिखाये. महिला बिल लंबे अरसे से लटका पड़ा है. 2010 में राज्य सभा से पास हो चुका महिला समाजवादी पार्टी, बीएसपी और आरजेडी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के विरोध के चलते लोक सभा से पास नहीं हो सका. ये पार्टियां महिलाओं में भी अलग अलग तबके के लिए आरक्षण की मांग कर रही हैं.

बीजेपी के लिए सोनिया की चुनौती कोई छोटी मोटी नहीं है. मुश्किल ये है कि महिला बिल बीजेपी के चुनाव घोषणा पत्र का भी हिस्सा है. मालूम नहीं बीजेपी महिला बिल पर भी अयोध्या में मंदिर निर्माण की तरह ही उलझाये और टाले रखना चाहती है या अब गंभीर है.

महिला बिल के जरिये सोनिया ने बीजेपी को ऐसे वक्त में घेरा है जब वो पिछड़ी जातियों में पैठ बनाने में जुटी है. एक तरफ सरकार मंडल पार्ट 2 की तैयारी कर रही है तो दूसरी तरफ अमित शाह दलित और पिछड़े भोज में लगातार शिरकत कर रहे हैं. जिन पार्टियों के वोट बैंक में बीजेपी घुसपैठ की कोशिश में है, वे ही महिला कोटे के अंदर कोटे की बात कर विरोध करती आई हैं. कांग्रेस अध्यक्ष ने महिला बिल पास कराने की चुनौती देकर मामला काफी उलझा दिया है.

कांग्रेस के तेवर को देखते हुए ये तो मान कर चलना ही चाहिये कि गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों में उसके इरादे क्या हैं. हिमाचल में कांग्रेस को अपना किला बचाने की चुनौती है तो गुजरात में वापसी की. राज्य सभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत से कांग्रेस में काफी जोश भरा हुआ है. कुछ दिनों से कांग्रेस ने गुजरात में बीजेपी को उसी के विकास मॉडल पर सवाल खड़े कर मुश्किलें बढ़ा दी है. जिस विकास मॉडल को बीजेपी पूरे देश में पेश करती रही गुजरात में उस पर खूब हास परिहास चल रहा है. कांग्रेस का सोशल मीडिया कैंपेन 'विकास गाडो थायो छे' यानी 'विकास पागल हो गया है' बीजेपी के दावों पर कहर बन कर टूट पड़ा है.

ये बदलाव कांग्रेस गुजरात और हिमाचल में कांग्रेस की सरकार बनने की गारंटी भले न दे पायें, लेकिन ऐसे संकेत तो दे ही रहे हैं - कांग्रेस के भी अच्छे दिन आने वाले हैं.

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