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Updated: 13 जुलाई, 2017 09:09 PM
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इरोम शर्मिला बोले तो आयरन लेडी आखिरकार घर बसाने जा रही हैं. इरोम एक अरसे से उनके मित्र रहे ब्रिटिश नागरिक डेसमंड कूटिन्हो से शादी रचा रही हैं. इरोम को, हालांकि, इसके लिए भी महीने भर इंतजार करना पड़ेगा - बताया गया है कि इरोम और डेसमंड का धर्म अलग अलग होने के चलते कुछ औपचारिकताएं पूरी करने में वक्त लगेगा.

मायके से बहुत दूर

इरोम के लिए मायका तो पहले ही छूट चुका है. छूट क्या चुका है, बल्कि वहां तो उन्हें एंट्री भी नहीं मिली. अनशन तोड़ देने के बाद जब वो घर लौटना चाह रही थीं तो मोहल्ले वालों ने ही घुसने नहीं दिया. बाद में तो हालत ये हो गयी कि चुनाव प्रचार के लिए कार्यकर्ता न मिलने पर उन्हें खुरई के मैदान से भी हटना पड़ा.

irom sharmila Desmond Coutinhoअपने दोस्त डेसमंड के साथ घर बसाएंगी इरोम

बहरहाल, इरोम का नया घर उनके मायके इंफाल से दो हजार किलोमीटर से भी ज्यादा दूर कोडइकनाल में है. मणिपुर छोड़ कर तमिलनाडु पहुंची इरोम ने कोडइकनाल में ही बैंक अकाउंट खोला है. आधार कार्ड बनवा रही हैं और वहीं से शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए भी अप्लाई किया है.

न पड़ाव, न मंजिल की राह

कहना मुश्किल है इरोम को राजनीति रास नहीं आई या फिर राजनीति को ही वो रास नहीं आईं. इस हिसाब से देखें तो इरोम के लिए राजनीति न मंजिल की राह बन पाई न ही कोई पड़ाव.

इरोम ने नॉमिनेशन तो अरविंद केजरीवाल की तरह सीधे तत्कालीन मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ फाइल किया था लेकिन उनके खाते में सौ वोट भी नहीं आ पाये. इरोम के साथ लोगों का व्यवहार उन्हें कैसा लगा ये उनकी टिप्पणी से समझा जा सकती है - “थैंक्स फॉर 90 वोट्स”.

अनशन खत्म करते वक्त इरोम ने कहा कि वो सिर्फ संघर्ष का रास्ता बदल रही हैं, अपना मकसद नहीं. इसके लिए उन्होंने राजनीतिक दल पीपल्स रिसर्जेंस एंड जस्टिस अलांयस का गठन किया. राजनीति के नये रास्ते पर चल कर इरोम मणिपुर की मुख्यमंत्री बनना चाहती थीं लेकिन चुनाव मैदान में उनकी पार्टी की ओर से तीन ही उम्मीदवार उतारे गये और सभी की जमानत जब्त हो गयी. दिलचस्प बात ये रही कि इरोम को 90 वोट मिले जबकि 143 लोगों ने नोटा का बटन दबाया था.

नतीजा ये हुआ कि इरोम को संन्यास की घोषणा राजनीति में ठीक से आये बगैर ही करनी पड़ी, "मैं इस राजनीतिक प्रणाली से आजिज आ चुकी हूं. मैंने सक्रिय राजनीति छोड़ने का फैसला लिया है. मैं दक्षिण भारत चली जाउंगी क्योंकि मुझे मानसिक शांति चाहिए."

डेसमंड की दोस्ती और मुश्किलें

तस्वीर का दूसरा पहलू देखें तो जिस डेसमंड से इरोम शादी करने जा रही हैं उनसे दोस्ती ही उनकी मुश्किलों की वजह बनी. चाहे वो इरोम के घरवाले हों या बाकी मणिपुरी समर्थक - यहां तक कि लंबे वक्त तक कदम कदम पर साथ रहे उनके करीबी भी इरोम का साथ छोड़ दिये. जिस मणिपुर से AFSPA हटाने की मांग पर इरोम ने 16 साल तक अन्न नहीं ग्रहण किया उनके पीछे हटते ही सभी ने उनसे मुहं मोड़ लिया.

दरअसल, डेसमंड से इरोम की दोस्ती खुद उन्हें छोड़ कर किसी को भी पसंद नहीं आई. इरोम पर जान छिड़कने वाले उनके करीबियों को भी लगा कि डेसमंड ही उनका अनशन तुड़वाया. इंफाल की गलियों में तो डेसमंड के जासूस होने की भी चर्चाएं आम रहीं.

सीधे सीधे न सही लेकिन कुछ हद तक इरोम के लिए भी डेसमंड के विदेशी मूल का मुद्दा वैसे ही आड़े आया जैसे कभी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने.

इरोम शर्मिला अरविंद केजरीवाल की तरह आंदोलन के जरिये राजनीति में आईं और अमिताभ बच्चन की तरह उसे छोड़ कर चली गयीं. अमिताभ और उनमें फर्क बस इतना था कि अमिताभ ने जीत कर और इरोम ने हार कर राजनीति छोड़ी. हां, दोनों में एक बात कॉमन जरूर थी कि उनके सामने राजनीति के दिग्गज चुनाव मैदान में थे.

इरोम की ओर से अब तक यही बताया गया है कि वो आंदोलन नहीं छोड़ रहीं हैं, इसलिए खुले दिल से उनकी मैरेज लीव मंजूर की जानी चाहिये और उन्हें वोट न सही, एक खुशहाल नयी जिंदगी की शुभकामनाएं तो देनी ही चाहिये.

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