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Updated: 23 फरवरी, 2017 08:47 PM
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बीजेपी के विरोधी, जिसे अमित शाह ने कसाब करार दिया है, उस पर ध्रुवीकरण के आरोप लगाते रहे हैं. यूपी चुनाव के शुरुआती दौर में बीजेपी के योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की स्थिति कश्मीर जैसी बताई थी - और जैसे जैसे वोटिंग की तारीख पूर्वी उत्तर प्रदेश की ओर बढ़ने लगी बीजेपी नेताओं के सुर बदलने लगे.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने यूपी में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारने पर अफसोस जताया है. हिंदुत्व के एजेंडे के साथ चलने वाली बीजेपी के एजेंडे में क्या ये किसी बदलाव के संकेत हैं?

निजी राय तो नहीं?

यूपी चुनाव में किसी मुस्लिम नेता को टिकट न दिये जाने का सवाल बीजेपी नेता सैयद शाहनवाज हुसैन के सामने उठा, उनका जवाब था - कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं मिला जो चुनाव जीतने में सक्षम हो और इसीलिए बीजेपी को ऐसा करना पड़ा.

काफी दिनों बाद ही सही जब यही सवाल राजनाथ सिंह के सामने आया तो उनका जवाब था, “शायद राज्य कमेटी को कोई भी जीतने वाला मुस्लिम उम्मीदवार न मिला हो. मैं वहां मौजूद नहीं था, मुझे जितना पता है उसके आधार पर बोल रहा हूं.”

bjp-leaders_650_022317060509.jpgअब अफसोस क्यों?

बीजेपी के यूपी की सत्ता में वापसी पर जिन नेताओं के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा होती है, राजनाथ भी उनमें से एक हैं. खुद राजनाथ सिंह ने भी इस बात से कभी साफ तौर पर इंकार नहीं किया है. हालांकि, वो ऐसे सवालों से बचने की कोशिश करते हैं. ये बात अलग है कि राजनाथ सिंह की उम्मीदवारों के चयन में कोई भूमिका नहीं रही, जैसा कि उन्होंने खुद कहा.

राजनाथ सिंह की नजर में ऐसा नहीं होना चाहिये था - और आगे से तो ऐसा नहीं ही होना चाहिये.

एक इंटरव्यू में टाइम्स नाउ से राजनाथ सिंह ने कहा, “हमने कई राज्यों में अल्पसंख्यकों को टिकट दिए हैं. ऐसा यूपी में भी होना चाहिए था. शायद बीजेपी संसदीय बोर्ड को किसी जीतने वाले मुस्लिम उम्मीदवार का नाम नहीं मिला हो, लेकिन मेरा मानना है कि मुसलमानों को टिकट मिलने चाहिए थे.” राजनाथ सिंह के बयान से जिस तरह के अफसोस की झलक मिल रही है, क्या बीजेपी की भी अब यही लाइन होगी या इसे सिर्फ राजनाथ सिंह की निजी राय बता दिया जाएगा.

कब्रिस्तान से कसाब तक...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब एक रैली में श्मशान और कब्रिस्तान का जिक्र किया तो बचाव में मुख्तार अब्बास नकवी आगे आये और उसे सबका साथ सबका विकास से जोड़ कर समझाने की कोशिश की. ये बात अलग है कि उनकी बात किसी के गले नहीं उतरी.

जैसे ही केशव मौर्या को यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया उनके सामने राम मंदिर का सवाल उठा - और उन्होंने साफ तौर पर कहा कि मंदिर बीजेपी के एजेंडे में नहीं है. कुछ दिन बाद अचानक वही दहाड़ने लगे - भव्य राम मंदिर बनेगा.

जब बीजेपी का चुनाव घोषणा पत्र आया तो उसमें राम मंदिर का जिक्र तो था लेकिन टोन थोड़ा कम था - संवैधानिक दायरे में, और भव्य राम मंदिर की उम्मीद जतायी गयी.

घोषणा पत्र में ही सत्ता में आने पर स्कूल-कॉलेजों के सामने रोमियो स्कवाड तैनात करने का वादा किया गया है. विरोधी खेमे में अब चर्चा होने लगी है कि बीजेपी को मौका मिला तो हर कैंपस पर पहरा लगा दिया जाएगा ताकि कोई उस मंसूबे में कामयाब न हो सके जिसे बीजेपी नेता लव जिहाद बताते हैं. बीजेपी भले ही सबका साथ, सबका विकास जैसे नारों का कितना भी प्रचार करे, बीजेपी नेताओं की बातें सुनने के बाद बचाव में दिये गये उनके तर्क बौने लगते हैं.

यूपी चुनाव में कसाब का मतलब समझाने से काफी पहले, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक और बड़ी घोषणा कर रखी है - उत्तर प्रदेश में 12 मार्च से सभी बूचड़खाने बंद कर दिये जाएंगे. मई 2014 के बाद अच्छे दिनों को लेकर लोगों की जो भी राय बनी हो, 11 मार्च को चुनाव नतीजे आएंगे और कुछ ही समय बाद बूचड़खानों पर ताले लटके देखना काफी दिलचस्प होगा.

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