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Updated: 23 अगस्त, 2016 07:47 PM
संतोष चौबे
संतोष चौबे
  @SantoshChaubeyy
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पाकिस्तान दुनिया को कहता रहता है कि भारत निर्दोष कश्मीरियों की आवाज़ को कुचल रहा है. इसके नेता कोई मौका नहीं छोड़ते हैं विश्व समुदाय को ये जताने में कि कश्मीर में भारतीय दमन युवाओं का खून सडकों पर बहा रहा है. इसके समर्थन में वो दुनिया को वो दृश्य दिखाते हैं जहाँ कश्मीरी जनता खुलेआम सडकों पर भारतीय सुरक्षा बलों से टकराव मोल ले रही है, उन पर पथराव कर रही है. ऐसे दृश्य कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के सोशल मीडिया फीड्स में भरे रहते हैं. सोशल मीडिया उनके लिए उतना ही सुलभ है जितना हमारे आपके लिए. ऐसे विडियो क्लिप जो तथाकतित भारतीय दमन को दिखाते हैं इन्टरनेट के माध्यम से विश्व के किसी भी कोने में देखे जा सकते हैं. फिर भी तथाकतित भारतीय दमन चक्र उन पर कोई कार्यवाही नहीं करता है.

ये बहुत ही दुखद है कि जारी हिंसा में अभी तक 68 कश्मीरियों को जान से हाथ धोना पड़ा है और ये पूरे भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि वे सभी भारतीय थे. लेकिन इतना ही दुखद ये भी है कि कश्मीर की पाकिस्तान प्रायोजित हिंसा में हज़ारों जवान भी मारे गए हैं. स्वतंत्रता दिवस के दिन, 15 अगस्त को, आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में सीआरपीएफ कमांडेंट प्रमोद कुमार शहीद हो गए और आठ जवान गंभीर रूप से घायल. 16 अगस्त को पांच जवान पुलवामा में एक ग्रेनेड हमले में गंभीर रूप से घायल हो गये. 17 अगस्त को तड़के सुबह बारामुला में आतंकवादियों ने सेना के काफिले पर हमला किया जिसमे तीन जवानों को जान से हाथ धोना पड़ा. 9 जुलाई से जारी हिंसा, जो हिज़्बुल मुजाहिदीन के घाटी कमांडर बुरहान वानी के सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में मारे जाने के बाद भड़काई गयी, में कई जवान गंभीर रूप से घायल हुए हैं.

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साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक, अब तक कश्मीर में जारी हिंसा में (जो 1988-89 में शुरू हुई) लगभग 14,000 नागरिकों की मौत हुई है, तो 6,200 से भी ज्यादा जवानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है.फिर भी भारतीय सेना हमेशा से आलोचना के केंद्र बिंदु में रही है.

इस लगभग तीन दशक पुरानी पाकिस्तान प्रायोजित हिंसा ने एक पूरी पीढ़ी को खपा दिया है और अभी की पीढ़ी का भविष्य भी खतरे में डाल दिया है. हिंसा जिसे न सिर्फ पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों और अलगाववादियों ने बढ़ाया बल्कि कई सारे कश्मीरियों ने भी इसमें अपना योगदान दिया. कश्मीर के बुजुर्गों और अभिभावकों को समझना होगा और उन्हें अपनी युवा पीढ़ी को समझाना होगा कि वो पाकिस्तान के बहकावे में अपने ही देश से लड़ रहे हैं. अब जबकि वो इस तीन दशक पुरानी हिंसा का परिणाम देख चुके हैं, उन्हें समझना होगा की कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और उनका भविष्य भारत में ही है.

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 कश्मीर में हिंसा

पाकिस्तान कहता है कि भारत अपना दमन चक्र चला रहा है फिर भी कश्मीर के अलगाववादियों, को जो कश्मीर में ही रहते हैं, को खुली छूट है कि वो दुनिया को और कश्मीरी अवाम को भारत के खिलाफ भड़काते रहे. क्यों नहीं दमनकारी भारत उनके पर क़तर देता? क्यों नहीं उनके सोशल मीडिया फीड्स को जो दिन-रात भारत विरोधी बातों को प्रचारित करते रहते हैं उनको बंद कर देता?

बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है. पाकिस्तान का सरमाया चीन ही अपने यहाँ देश विरोधी बातों को बर्दाश्त नहीं करता. फिर चाहे वो नोबेल विजेता लिउ सियाओबो हों या वो छात्र जिनको बहुत ही बेरहमी से 1981 में तियानानमेन चौक पर क़त्ल कर दिया गया क्योंकि वो राजनितिक और लोकतान्त्रिक सुधारों की मांग कर रहे थे. अगर आप कश्मीर के कुछ मुख्य अलगाववादियों के ट्विटर फीड देखें तो आप खुद ही समझ जायेंगे. सैयद अली गिलानी - @sageelani; मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ @MirwaizKashmir; आशिया अंद्राबी @aasiyehandrabi - कि वो किस तरह से भारत में रहकर भारत के खिलाफ ही ज़हर उगलते रहते हैं.

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दुनिया देखती है कि कैसे हाफिज सईद, सैयद सलाहुद्दीन और मसूद अज़हर जैसे वांछित आतंकवादी खुलेआम पाकिस्तान की जमीन से भारत पर हमला करने की धमकी देते रहते हैं. हाफिज सईद के सिर पर अमेरिका का इनाम है. सलाहुद्दीन हिज़्बुल मुजाहिदीन का प्रमुख है. इसका परिवार अभी भी भारतीय सुविधाओं का उपभोग करता है जबकि इसके आतंकवाद ने यहां हज़ारों घर उजाड़ दिए हैं. मसूद अज़हर की रिहाई का सौदा आतंकवादियों ने इण्डियन एयरलाइंस फ्लाइट 814 के निर्दोष यात्रियों की जान के बदले किया था. ये सब पाकिस्तान के सम्मानित नागरिक हैं. ये आतंकवादी कश्मीर के आतंकियों और अलगाववादियों के लिए संरक्षक का कार्य करते हैं और हमेशा उनके संपर्क में रहते हैं. फिर भी पाकिस्तान ये कहता रहा है कि भारत कश्मीरियों के असंतोष का गला घोंट रहा है.

दुनिया देखती है कि जब कभी भी कश्मीर में अशांति फैलती है कैसे भारतीय संसद गंभीरता के साथ उस पर विमर्श करती है और कैसे विपक्ष सरकार को उसकी जवाबदेही के प्रति आगाह करता रहता है. अभी कुछ ही दिनों पहले संसद में कश्मीर मुद्दे पर बहस हुई जिसमें सभी दलों ने पूरी ईमानदारी से हिस्सा लिया और अपनी बेबाक राय रखी. और कई सारे प्रश्न इस मुद्दे पर थे कि कैसे भारत सरकार ने कश्मीर के हालात को बिगड़ने दिया. दुनिया देखती है कि भारतीय मीडिया ऐसी रिपोर्टों से भरा रहता है जो ना सिर्फ भारतीय सुरक्षा बलों का पक्ष दिखाती हैं बल्कि कश्मीरियों का पक्ष भी दुनिया के सामने रखती हैं.

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क्या कभी दुनिया ने पाक अधिकृत कश्मीर या गिलगित-बल्तिस्तान के बारे में ये सब देखा और सुना है?

क्या दुनिया जानती है कि कश्मीर या गिलगित-बल्तिस्तान के मुख्य अलगाववादी या विरोधी आवाज़ों के बारे में?

'कश्मीर के अलगाववादी' पर एक साधारण गूगल खोज सूचनाओं का पुलिंदा खोल देती है जबकि 'पाक अधिकृत कश्मीर के अलगाववादी' से कोई ख़ास जानकारी नहीं मिलती.

इसके समर्थन में ये कहा जा सकता है कि पाक अधिकृत कश्मीर स्वर्ग है और वहां विरोध की कोई आवाज़ नहीं है. पर सच्चाई सबको पता है.

दुनिया को पता है कि पाक अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान की सेना एक कठपुतली सरकार द्वारा चलाती है. न्याय की हत्या, न्यायिक हत्याएं, लोगों का गायब हो जाना, बन्दूक के साये में जीवन बिताना, विकास की ओर टकटकी लगाकर देखना और फिर निराशा में सर हिलाना - पाक अधिकृत कश्मीर की यही नियति है.

चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर जिसका एक बड़ा हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है उसका पुरजोर विरोध हो रहा है पर ये खबरें दुनिया तक नहीं पहुँचती हैं. थोड़ी बहुत आवाज़ें जो वैश्विक मंचों पर सुनाई देती हैं वो उन पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों की है जो कहीं और निर्वासित जीवन बिता रहे हैं. और उनके अनुभव बहुत ही डरावने हैं.

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जम्मू और कश्मीर जिसको कुछ कश्मीरियों, आतंकवादियों, अलगाववादियों और पाकिस्तान ने आज इस स्थिति में पहुंचा दिया है वो कभी धरती पर स्वर्ग कहा जाता था पर किसी ने ऐसा कुछ कभी पाक अधिकृत कश्मीर के विषय में नहीं सुना होगा. पाक अधिकृत कश्मीर की राजधानी मुज़फ़्फ़राबाद वहां के आतंकी शिविरों के लिए जानी जाती है. पाकिस्तान पाक अधिकृत कश्मीर का इस्तेमाल आतंकी शिविर लगाने और आतंकी तैयार करने में करता है जिनको फिर भारत में अशांति फ़ैलाने के लिए भेजा जाता है. ये कहा जाता है कि संचार के सभी माध्यमों पर पाकिस्तान की सेना का पूरा नियंत्रण है और किसी आज़ाद मीडिया को कार्य करने की अनुमति नहीं है जबकि भारत के मीडिया संस्थानों ने खुलकर कश्मीर पर अपनी राय रखी है भले ही वो भारतीय सरकार की आलोचना करती हैं. जम्मू और कश्मीर के अलगाववादी सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग करते हैं भारत के खिलाफ प्रोपेगंडा करने में जबकि पाक अधिकृत कश्मीर के अधिकांश लैंडलाइन नंबर भी पाकिस्तानी सेना की निगरानी में हैं.

फिर भी भारत कश्मीर में, उस कश्मीर में, जिसको उसने विशेष संवैधानिक दर्ज़ा दे रखा है, में दमनचक्र चला रहा है.

लेखक

संतोष चौबे संतोष चौबे @santoshchaubeyy

लेखक इंडिया टुडे टीवी में पत्रकार हैं।

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