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Updated: 11 अगस्त, 2017 11:28 PM
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बीजेपी के 'कांग्रेस मुक्त अभियान' का अंजाम क्या होगा, ये तो नहीं मालूम - मगर, एक खास चोटी पर तो वो पहुंच ही चुका है. वेंकैया नायडू के कुर्सी पर बैठने के साथ ही देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों से कांग्रेस का सफाया हो गया है - राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और स्पीकर.

गुजरात में अहमद पटेल की जीत इसी मुहिम का एंटी-क्लाइमेक्स है और 'बीजेपी गद्दी छोड़ो' का नारा भी उसी की परिणति है. 9 अगस्त देश में पहली बार एक साथ कई घटनाओं का साक्षी बना जब यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल में मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों के कई नेता सड़क पर उतरे और एक ही अंदाज में सभी ने सत्ताधारी बीजेपी को चैलेंज किया. सियासी बिसात पर ये बीजेपी के कैंपेन और कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के काउंटर अटैक का खेल काफी दिलचस्प होता जा रहा है - काफी हद तक एक मजेदार 20-20 मैच की तरह.

वे एक 'हंस' को 'तोता' समझ रहे थे

एक ही दिन पहले की बात है. 8 अगस्त को बनारसी लोगों की भी नजर गुजरात के राज्य सभा चुनाव पर बनी रही. कई चर्चाओं में ये टॉपिक ऊपर रहा. बाबतपुर एयरपोर्ट पहुंचते पहुंचते न्यूज अपडेट मिला कि चुनाव खत्म हो चुके हैं, नतीजों का इंतजार है. तब अलर्ट आने लगे थे कि चुनाव आयोग वीडियो देखने के बाद कोई फैसला देगा.

गाड़ी डिपार्चर की नयी पार्किंग में रुकी तभी पीछे वाली गाड़ी से खूब तेज हॉर्न बजा. जोर जोर से लगातार दो-तीन बार और. मेरे ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा ली. असल में पीछे वाली गाड़ी के पीछे कोई और गाड़ी थी जिसमें कोई नेताजी थे. फिर जल्दी जल्दी कई और लोग उतरे और एक जगह खड़े हो गये जिसके बगल में एंट्री के लिए लाइन लगी थी.

jaitley, modi, shahस्वर्णिम काल की ओर...

उन लोगों ने एक अलग लाइन बना ली और उनमें से एक ने आगे बढ़ कर सुरक्षाकर्मी के कान में धीरे से कुछ कहा. मैं लाइन में खड़ा सब देख रहा था. सुरक्षाकर्मी ने कागज देखे और सफेद कुर्ता पायजामा पहने वो नेता और उसके साथी अंदर चले गये. किसी ने कुछ नहीं कहा या शायद सोचा भी नहीं कि नेताजी को लाइन तोड़ कर क्यों जाने दिया गया.

पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों की शारीरिक बनावट ही नहीं बॉडी लैंग्वेज भी अलग अलग होती है. पुलिस के मुकाबले जवानों का चेहरा भी उनके सुडौल शरीर की तरह बेहद सख्त नजर आता है. पब्लिक डीलिंग में पुलिस और पैरा-मिलिट्री फोर्स के जवानों के तौर तरीके भी बिलकुल अलग देखने को मिलते हैं. ड्यूटी के प्रति मुस्तैद पैरा-मिलिट्री के जवान अमूमन सबके साथ एक जैसे ही पेश आते हैं, लेकिन उस सुरक्षाकर्मी का नेताजी के प्रति अलग भाव था.

जब उसके पास पहुंचा तो मैंने भी अपना टिकट और आईडी उसके हाथ में दे दिया. हमेशा वे लोग चेहरा और नाम की स्पेलिंग मिलाते हैं. ऐसा भी कम ही होता है जब वो कुछ बोलते भी हों, सिवा लाइन में बने रहने की हिदायत के. उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया. वो मुस्कुराने की कोशिश कर रहा था. जैसे कुछ कहना चाहता हो. जैसे ही मैं आगे बढ़ने को हुआ, वो बोला - 'वो यहां का मंत्री है ना, हमें भी यहीं रहना है.'

दिल्ली पहुंचने पर मोबाइल को फ्लाइट मोड से हटाया तो फिर से अपडेट आने लगे. पता चला मोदी सरकार के आधा दर्जन मंत्री चुनाव आयोग पहुंचे हुए हैं. फिर कांग्रेस नेताओं के आयोग पहुंचने की भी खबर आई.

achal kumar jotiअचल कुमार जोति, मुख्य चुनाव आयुक्त

फर्ज कीजिए चुनाव आयोग भी 'तोता' बन गया होता तो क्या होता? जिस तरह से अमित शाह के फरमान पर मोदी कैबिनेट के आधा दर्जन लोगों ने चुनाव आयोग पर धावा बोला था, ऐसे में तो कोई भी अफसर दबाव में आ जाता. गुजरात काडर के उस अफसर को भी सीबीआई की तरह तोता बनाने की खूब कोशिशें हुईं, लेकिन वो झांसे में नहीं आया. वो नीर-क्षीर विवेकी हंस बना रहा. खरीद फरोख्त और सारी सियासी सौदेबाजी को किनारे करते हुए उसने कर्तव्य की मिसाल कायम की - और लोकतंत्र बाल बाल बच गया.

जब कांग्रेस के दोनों विधायकों के वोट रद्द किये जाने की खबर आयी तो मुझे बार बार उस जवान का चेहरा याद आ रहा था. कई बार दबाव में ड्यूटी छूट जाती है. ऐसा सभी के साथ होता होगा. कुछ स्टैंड लेने से पहले ही सरेंडर कर देते हैं, कुछ आखिर तक डटे रहते हैं. अचल कुमार जोति लोकतंत्र की ज्योति को बुझने नहीं देंगे - और दूसरों को भी प्रेरित करते रहेंगे. खासकर ऐसे में जब बोफोर्स केस फिर से खुलने वाला हो.

ममता-शरद सोना हैं तो केजरीवाल सुहागा

मॉनसून सेशन का आखिरी दिन ऐतिहासिक रहा, विशेष रूप से बीजेपी के लिए. उपराष्ट्रपति पद का शपथ लेने के बाद मुप्पवरपु वेंकैया नायडू राज्य सभा के सभापति की कुर्सी पर बैठना और बतौर सांसद अमित शाह की एंट्री. इसके साथ ही बीजेपी के पैतृक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा में आस्था रखने वालों का सर्वोच्च चार संवैधानिक पदों पर काबिज होना.

sonia, rahul, mamataअभी तो हम साथ साथ हैं...

अमित शाह के राज्य सभा पहुंचने का क्या असर होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही बता चुके हैं. अगर सांसदों ने बात की बात नहीं समझी तो जाहिर है उन्हें 2019 में देख लिया जाएगा. जब बीजेपी अपने ही सांसदों में अध्यक्ष को लेकर इस तरह का खौफ पैदा कर रही है, विपक्ष के साथ क्या सलूक होगा उसके इरादे से समझा जा सकता है.

कांग्रेस भी अब समझ चुकी है कि बोफोर्स केस री-ओपन होने के पीछे क्या मकसद है. भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं सालगिरह पर आखिरी गेंद पर आधा रन लेकर इंडियन पॉलिटिकल लीग का मैच जीतने वाले अहमद पटेल ने भी सोच समझ कर ही नया स्लोगन दिया है - 'बीजेपी गद्दी छोड़ो'. निश्चित रूप से ये बीजेपी के कांग्रेस मुक्त अभियान का काउंटर अटैक है.

अहमद पटेल की जीत ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी आत्मविश्वास से भर दिया है, ऐसा लगने लगा है. राज्य सभा में गुलाम नबी आजाद ने सत्ता पक्ष को साफ कर दिया कि अगर उसे नेहरू और कांग्रेस के नेताओं से परहेज है तो कोई बात नहीं, गुजरात की जीत ने उनकी आवाज को मजबूत बेस दे दिया है. अगर कोई नयी विचारधारा नया इतिहास गढ़ने की तैयारी में जुटी है तो पुराने इतिहास की विरासत संभालने वाले भी मौके पर मौजूद हैं. चुनाव आयोग से लोकतंत्र को मिला जीवनदान आगे भी फायदेमंद रहने वाला है. ममता बनर्जी ने तो जुलाई में ही 'बीजेपी भारत छोड़ो आंदोलन' की घोषणा कर दी थी - और नौ अगस्त से उनका भी सड़क पर संघर्ष शुरू हो चुका है. बंगाल की ही तरह यूपी में अखिलेश यादव 'देश बचाओ, देश बनाओ' आंदोलन चला रहे हैं तो बिहार में तेजस्वी यादव 'जनादेश अपमान यात्रा' पर निकले हुए हैं.

इस कड़ी में शरद यादव का तूफानी बिहार दौरा भी जुड़ गया है. हालांकि, ममता के साथ साथ विपक्षी दलों की मीटिंग में शरद यादव को मिला सोनिया गांधी का न्योता जेडीयू के केसी त्यागी को नागवार गुजरा है. त्यागी ने इसे उनकी पार्टी तोड़ने की कोशिश बताया है. पूछा जाय तो फिर से वो वही समझाएंगे कि महागठबंधन को इसलिए तोड़ दिया गया क्योंकि बिहार को बचाना था.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ईके पलानीसामी दिल्ली आकर प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात कर चुके हैं. 22 अगस्त को अमित शाह तमिलनाडु के तीन दिन के दौरे पर जा रहे हैं. वहां भी बिहार, गुजरात और यूपी की तरह इस्तीफों के फटाफट विकेट चटकाने की आशंका जतायी जा रही है.

विपक्ष के मुकाबले की तैयारी वैसे तो ठीक नजर आ रही है लेकिन कांग्रेस का अरविंद केजरीवाल को अब तक अछूत बनाये रखना उसकी मोर्चेबंदी में लूप-होल जैसा लगता है. अब ये कौन समझाये कि ममता और शरद यादव को अगर कांग्रेस सोना समझती है तो केजरीवाल सुहागा की तरह हैं. केजरीवाल के विपक्षी खेमे में शामिल होने से कांग्रेस पर लगे दाग भी वैसे ही धुल सकते हैं जैसे दूसरे दलों के नेताओं के बीजेपी ज्वाइन करते ही धुल जाते हैं.

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