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Updated: 19 सितम्बर, 2017 01:39 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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रविवार जहां एक तरफ देश भर के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जन्मदिन की बधाईयां दे रहे थे, वहीं दूसरी तरफ पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी उनके खिलाफ अपशब्द भरे ट्वीट कर रहे थे. तिवारी ने अपने ट्वीट में लिखा कि "इसको कहते हैं चू**.. को भक्त बनाना और भक्तों को परमानेंट चू**.. बनाना. उन्हें महात्मा भी देशभक्ति नहीं सिखा सकते''

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब किसी कांग्रेसी नेता ने प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया हो. इससे पहले इसी महीने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने इसी तरह का कारनामा किया था. दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर एक पोस्ट शेयर की थी जिसमें लिखा था कि मेरी दो उपलब्धियां भक्तों को चू** बनाया और चू** को भक्त बनाया, साथ ही इसके बगल में पीएम की तस्वीर को लगाया गया था जिसमें पीएम मोदी पगड़ी बांधे हुए हैं और दो उंगली (जीत का प्रतिक) दिखा रहे थे.

नरेंद्र मोदी, मनीष तिवारी, कांग्रेस, भाजपामनीष तिवारीहमारे देश के राजनीति में जितने बड़े नेता होते हैं उनकी मर्यादा तोड़ने वाली जुबान भी उतनी ही लंबी होती है. लेकिन हमारे देश की जनता ऐसे नेताओं को सबक सिखाने में कोई कोताही नहीं बरतती है. अब चुकि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव सर पर है ऐसे में ये ज़हरीले बयानबाज़ी किसे फायदा पहुंचाएगा, ये तस्वीर आने वाले महीनो में साफ़ हो जायेगी. इन मौकों पर चुनाव में जहरीली बयानों का हुआ है जोरदार असर...

  1. 'सरकार...मौत के सौदागर हैं'बात 31 मई, 2007 की है, जब गुजरात के नवसारी में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए सोनिया गांधी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में कहा था- "गुजरात की सरकार चलाने वाले झूठे, बेईमान, मौत के सौदागर हैं."

यहां ‘मौत का सौदागर’ कहते हुए सोनिया ने स्पष्ट तौर पर गुजरात दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को जिम्मेदार ठहराया था. सोनिया का मकसद साफ़ था. एक समुदाय विशेष के कलेजे को ठंडक पहुंचाते हुए उनका वोट हासिल करना. लेकिन जनता ने अंतिम निर्णय उनके खिलाफ दे दिया. उस बयान के कारण जनता में ऐसी प्रतिक्रिया हुई जिससे कांग्रेस के खिलाफ नरेंद्र मोदी को जबरदस्त जीत मिल गई. कांग्रेस को विधानसभा के 182 सीटों में से केवल 59 सीटें ही मिल पायी थी.

2. ‘वे ज़हर की खेती करते हैं’गुजरात के करारी हार से कोई भी सबक ना लेते हुए सोनिया गांधी ने फिर से अपनी गलती दोहराई. उन्होने 1 फरवरी, 2014 को कर्नाटक के गुलबर्ग में नरेंद्र मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देते हुए कहा था कि "मेरा पूरा भरोसा है कि आप ऐसे लोगों को मंजूर नहीं करेंगे जो जहर का बीज बोते हैं"

उस वक्त लोकसभा के चुनाव में कुछ दिन ही शेष रह गए थे और चुनावी माहौल अपने चरम पर था. सोनिया का वह बयान बैक फायर हो गया और नतीजा देश के सामने है. जनता ने कांग्रेस को विपक्ष का दर्जा तक देने लायक नहीं समझा और पार्टी मात्र 44 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी.

3. ‘आप खून की दलाली कर रहे हैं’पिछले साल इसी महीने यानि सितंबर में जब भारतीय सेना द्वारा नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पार आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक किया गया, तो सारा देश जयकारा कर रहा था. यही नहीं इस ठोस रणनीति की दुनिया भर में सराहना की जा रही थी, ठीक उसी वक़्त उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के कारण चुनावी माहौल भी गर्म था. विपक्ष की सराहना राहुल गांधी शायद पचा नहीं पाए और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर ‘खून की दलाली’ करने का आरोप लगा डाला. बकौल राहुल गांधी "हमारे जवानों ने जम्मू-कश्मीर में अपना खून दिया, जिन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक की, आप उनके खून के पीछे छिपे हुए हो. आप उनकी दलाली कर रहे हो"

राहुल गांधी का यह बयान चुनावी माहौल में बिल्कुल ही उल्टा पड़ गया. इसके बाद कांग्रेस को विधानसभा के 403 सीटों में मात्र 7 सीटों पर संतोष करना पड़ा था.

भाजपा पर भी यही नियम होता है लागू......

4. ‘डीएनए में खोट'ऐसा नहीं है कि जनता ने केवल कांग्रेस को ही सबक सिखाया. जब बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहा था तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से भोज देने और फिर उसे रद्द करने की घटना का जिक्र करते हुए इसे ‘डीएनए में खोट’ बता डाला था. नीतीश कुमार ने इसे ‘बिहार के डीएनए में खोट’ के तौर पर प्रचारित-प्रसारित करते हुए इसे मुख्य चुनावी मुद्दा बना दिया. इसे नीतीश कुमार ने बिहारियों के बेईज़्ज़ती के तौर पर पेश किया था.

इस बयान की कीमत बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार के रूप में चुकानी पड़ी थी और इसमें महागठबंधन को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुयी थी.

यहां पर निष्कर्षतः ज़ाहिर है कि अपशब्द या जहरीले बयानों का असर हर चुनाव में उल्टा ही होता है. केवल फायदा उन्हें हुआ, जिनके खिलाफ ये बयान दिए गए. इससे साफ़ संकेत मिलते हैं कि इन बयानों से सस्ती लोकप्रियता तो हासिल हो सकती है, लेकिन इसके द्वारा ना तो जनता का दिल जीता जा सकता है और परिणामतः ना ही कोई चुनाव.

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लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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