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Updated: 10 मई, 2017 04:40 PM
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1997 में दक्षिण अफ्रिका दौरे के लिए क्रिकेट टीम में डब्लू वी रामन को चुना गया था, तो सबने आश्चर्य किया कि रामन पांच साल से क्रिकेट से दूर हैं ऐसे में इतने महत्वपूर्ण दौरे के लिए इन्हें कैसे चुन लिया. तो चयनकर्ताओं ने कहा था कि इन्होंने पांच साल पहले 1992 में दक्षिण अफ्रिका के खिलाफ शतक लगाया था. और डब्लू बी रामन उस दौरे में ऐसा खेले कि दोबारा कभी क्रिकेट में नहीं लौटे.

डब्लू बी रामन का एपिसोड थोड़ा पुरानी है, लिहाजा आप भूल सकते हैं, मगर भारतीय क्रिकेट के महान कप्तानों में से एक महेंद्र सिंह धोनी का फैसला तो आपको याद होगा. धोनी जब अपने करियर के चरम पर थे तो तेज गेंदबाज आरपी सिंह ने 2007 में इंग्लैंड में बेहद उम्दा प्रदर्शन किया था. लेकिन चार साल बाद जब उनका करियर ढ़लान पर था और इंग्लैंड में हालत पतली थी तो जहीर खान के घायल होने पर धोनी को चार साल से क्रिकेट से दूर आरपी सिंह याद आए. आरपी सिंह इंग्लैंड बुलाए गए और ऐसी हालत हो गई कि अपने दस ओवर का कोटा तक पूरा नही कर पा रहे थे.

मैं क्रिकेट की ये कहानियां इसलिए सुना रहा हूं क्योंकि ऐसा लगाता है इन दिनों कांग्रेस आलाकमान महेश भट्ट के 'फिर तेरी कहानी याद आई' फिल्म का ये गाना खूब सून रह हैं "यादों के सब जुगून जंगल में रहते हैं". दरअसल जब व्यक्ति बुजुर्ग हो जाता है तो अपने सुनहरे अतीत की यादें उसे खूब आती हैं और संघर्ष कर रहे किसी व्यक्ति को सफलता का कोई रास्ता नहीं सूझता है तो उसे अतीत के आसान रास्ते अपनी ओर खींचते हैं. कांग्रेस ने बदलाव के नाम पर जिस तरह से  महासचिवों और राज्यों के प्रभारियों की नई टीम घोषित की है उसे देखकर तो कम से कम यही लगता है.

पड़ताल की शुरुआत राजस्थान से करते हैं. अगले साल राजस्थान में चुनाव होने हैं जहां से कांग्रेसियों के अनुसार पार्टी को पुनर्जीवित करने की सबसे ज्यादा उम्मीद दिखती हैं. यहां पर प्रभारी महासचिव गुरुदास कामत के इस्तीफे के बाद महाराष्ट्र के ही नेता अविनाश पांडे को प्रभारी बनाया है. साथ में विवेक बंसल और देवेंद्र यादव को सहप्रभारी बनाया है. लोगों ने कांग्रेसियों से पूछा कि ये कौन हैं तो कांग्रेस का जवाब आया कि ये पहले भी राजस्थान के सहप्रभारी रह चुके हैं. पिछले आठ सालों में इनके चुनावी रणनीतिक कौशल क्या रहे हैं और इनकी सांगठनिक क्षमताओं का कौन सा लाजवाब उदाहरण रहा है, अगर आप ये सवाल कांग्रेस में किसी से पूछें तो इनका यही जवाब रहता है कि अविनाश पांडे की ये वही टीम है जिसने 2008 में कांग्रेस को राजस्थान में जिताया था. यानि इनका परिचय यही है कि साढ़े आठ साल पहले राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार बनी थी तो इनका महत्वपूर्ण योगदान था.

ashok gehlot, congressअशोक गहलोत

अब अगला सवाल उठने लगा कि राजस्थान में अगले साल चुनाव हैं तो फिर राजस्थान कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय और कद्दावर नेता पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को गुजरात का प्रभारी बनाकर राज्य से बाहर क्यों भेज रहे हैं. इसका जवाब कांग्रेस दे रही है कि अशोक गहलोत ने पंजाब का प्रभारी बनकर कांग्रेस को पंजाब में सत्ता दिला दी. साथ ही कांग्रेस के आयातित नए रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ इनकी लकी जोड़ी है जो कि पंजाब के बाद गुजरात में भी कमाल दिखाएगी.

बेहद आम मगर हर कालखंड में प्रासांगिक कहावत रहा है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है मगर ये समझना होगा कि विशेष काल परिस्थितियों में घटनाओं के संदर्भ और चरित्र बदलते हैं. इतिहास हुबहू अक्षरश: और भावश: अपने को दोहराए इसकी कल्पना तो अंधविश्वास ही कही जा सकती है. मैं नहीं कह रहा हूं कि कांग्रेस अंधविश्वास के रास्ते पर है मगर ये भी सच है कि जब भी किसी व्यक्ति या संगठन का विश्वास डिगता है तो वो अंधविश्वास का आसरा लेता है.

बदलाव के नाम पर हिंदू वोटों को ध्यान में रखते हुए विधानसभा चुनाव में हारे कांग्रेस के पूर्व नेता बलराम जाखड़ के बेटे सुनील जाखड़ को पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया है. इसी तरह पिछली बार बदलाव के नाम पर चुवाव के लिए मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और चुनाव के बाद राजस्थान में सचिन पायलट को पार्टी की कमान थमा दी. ऐसी बात नहीं है कि ये नेता पुत्र काबिल नही हैं बल्कि यहां ये बातें इसलिए मौजूं है क्योंकि कांग्रेस के पास मोदी या योगी जैसा कोई जमीन से जुड़ा नेता क्यों नही है या फिर कांग्रेस ढूंढना नही चाह रही है. नेताओं के बेटों को राजनीति विरासत में मिली है लिहाजा राजनीतिक रुप से संघर्ष के लिए वो लालायित कभी नहीं दिखे. या तो आप ये कह लें कि बाबा लोग एक कंफर्ट जोन में रहते हैं या फिर ये कह सकते हैं कि परिवार, छुट्टी मनाना, निजता का ख्याल जिसे प्राईवेसी या प्राईवेट स्पेस भी कहा जाता है, भी इनकी प्राथमिकता में राजनीति के इतर रहता है. जबकि मोदी, अमीत शाह या फिर योगी जैसे क्षत्रप फुल टाईम पोलिटिशियन हैं. इनका काम दिनभर राजनीति है और इनसे टाईम टेबल के हिसाब से राजनीति करने वाले मुकाबला नहीं कर सकते हैं.

सबसे बड़ी बात है कि देश का एक वर्ग महसूस कर रहा है कि देश में आजादी के बाद सबसे ज्यादा कांग्रेस की विचारधारा की जरुरत महसूस की जा रही है और इसी वक्त कांग्रेस खुद बेहद कमजोर और असहाय महसूस कर रही है. माहौल ऐसा बनाया जा रहा है कि कांग्रेस की विचारधारा आज प्रासांगिक नहीं है बल्कि सच तो है कि इस विचार को प्रकट करनेवाला और विचार की प्रासांगिकता को समझा पानेवाले नेता की कमी महसूस की जा रही है. डर इस बात है कि विचारधारा के वाहक के अभाव में भारतीय राजनीति की नींव न ढह जाए. कितना सच है या झूठ है ये तो पता नहीं लेकिन मानव सभ्यता के विकास के इतिहास में ये बात पढ़ाई जाती है कि मनुष्य का विकास बंदर से हुआ है ये हमारे पूर्वज हैं. मनुष्य के भी पहले पूंछ हुआ करती थी मगर धीरे-धीरे पूंछ की जरुरत खत्म हो गई और आवश्यकता के अभाव में मनुष्य की पूंछ झड़ गई. कहीं ऐसा न हो कि नेता के अभाव में विचारधारा दम तोड़ दे और फासीवादी-नाजीवादी विचारधारा लोगों को प्रासांगिक लगने लगे.

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