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Updated: 13 दिसम्बर, 2016 06:01 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
  @alok.ranjan.92754
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नोटबंदी के ऐलान के बाद से ही असदुद्दीन ओवैसी केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध हर मोर्चे पर करते रहे हैं. उन्होंने मोदी के फैसले पर कड़ा विरोध जताया और लोगों को परेशानी होने की बात कही. लेकिन विरोध करना एक बात है और इसे कम्युनल ट्विस्ट देना दूसरी बात. भारत जैसी डेमोक्रेसी में सभी लोग अपनी राय देने में स्वतंत्र हैं, पर क्या इसे सांप्रदायिकता का रंग देना जायज है?

नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार की घोर आलोचना करते हुए एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'जालिम' बताते हुए कहा कि मुस्लिम बहुल इलाकों में बैंक और एटीएम काम नहीं कर रहे.

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 अपनी हेट स्पीच को लेकर चर्चित रहते हैं ओवैसी

ऐसा नहीं है कि वे इस तरह के बयान पहली बार दे रहे हैं. असदुद्दीन ओवैसी अपनी हेट स्पीच के लिए जाने जाते हैं. किसी से ये भी नहीं छिपा है कि वो नरेंद्र मोदी को नफरत की नजर से देखते हैं. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या कम्युनल राजनीति करने के लिए कोई सांसद इस तरह के निचले स्तर तक गिर सकता है. इससे पहले 18 नवम्बर को उन्होंने नोटबंदी मसले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कॉमेडी शो का ऐक्टर बताया था. साथ ही ये भी कहा था कि नरेंद्र मोदी तो सपनों के सौदागर हैं. उनके दिखाए गए सपने कभी पूरे नहीं होते हैं.

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नोटबंदी के बाद से ही भारत की जनता बैंको और एटीएम के बहार पैसे निकालने के लिए लाइन में लगी हुई है. कभी भी ये नहीं लगा कि किसी भी धर्म के लोगों के लिए नोटबंदी फायदेमंद साबित हो रही है. सभी धर्म और जाति के लोग बिना किसी वैमनस्य के शांतिपूर्ण तरीकों से पैसा निकाल रहे हैं, घंटो लाइन में खड़े होकर. ओवैसी का ताजा बयान कम्युनल ट्विस्ट से काम नहीं है.

मुस्लिम जनता से सहानुभूति रखना अलग बात है और सांप्रदायिकता का रंग देना अलग बात है. अगले साल उत्तर प्रदेश में विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं. उत्तर प्रदेश में करीब 20 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम हैं. कहीं ऐसा तो नहीं की आने वाले उत्तर प्रदेश के चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए वे इस तरह का तथ्य से परे बयान दे रहे हैं.

असदुद्दीन ओवैसी का मकसद मुस्लिम वोट बैंक को साधे रखना है. इससे पहले भी कई बार उनके विवादपूर्ण बोल 2014 लोकसभा चुनाव, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव और 2015 बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान हम देख चुके हैं. समाज को बांटने वाला बयान देने में वे कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. मोदी को लेकर तो वे हमेशा आग उगलते रहते हैं.

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नोटबंदी के कारण संसद ठप्प है. विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान पर अड़ा है. सियासत अपने चरम पर है. कोई पार्टी इसे 'तुगलकी फरमान' बता रहा है तो कोई 'सुपर इमरजेंसी', 'फाइनेंशियल इमरजेंसी', की संज्ञा दे रहा है. भारतीय डेमोक्रेसी में सब जायज है पर क्या नोटबंदी को सांप्रदायिक रंग देना उचित है. नोटबंदी का उद्देश्य बहुत बड़ा है. लोगों को काफी परेशानी का भी सामना करना पड़ रहा है. कई मौतें भी हुई है लेकिन उसे कम्युनल ट्विस्ट देना लोगों की भावना से खिलवाड़ करना है.

लेखक

आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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