New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 17 सितम्बर, 2016 07:25 PM
गोपी मनियार
गोपी मनियार
  @gopi.maniar.5
  • Total Shares

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गुजरात छोड़ दिल्ली जाने के बमुश्किल अभी अभी ढाई साल ही गुजरे हैं. और आलम ये कि गुजरात में बीजेपी कि डूबती नाव को बचाने के लिये एक बार फिर खुद उन्हें ही मैदान में उतरना पड़ रहा है.

प्रधानमंत्री भले ही इस मौके को जन्मदिन पर मां के आशिर्वाद लेना बता रहे हों लेकिन जानकार मानते हैं कि जिस तरह पिछले दिनों गुजरात में पाटीदार और दलित आंदोलन के कारण राज्य में बीजेपी बैकफुट पर आई है. वैसे में खुद मोदी को गुजरात में बीजेपी की इस डूबती नैया को किनारे लगाने आना पड़ रहा है.

अभी 20 दिन भी नही हुए हैं और नरेन्द्र मोदी का ये दूसरा गुजरात दौरा है. अपने जन्मदिन के बहाने प्रधानमंत्री जहां आदिवासी इलाकों में खेतो के लिए सिंचाई योजना की स्कीम का उद्घाटन करने पहुंचे तो वहीं नवसारी में 10000 से ज्यादा दिव्यांग लोगों को उनके जरूरत की किट बांट मदद का प्रयास किया गया.

modi-650_091716071723.jpg
 जन्मदिन के मौके पर गुजरात का दौरा क्यों कर रहे हैं मोदी..

लेकिन दोनों ही कार्यक्रम में गुजरात की राजनीति सब से ऊपर रही. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात में उतरे, उससे पहले ही यहां के लोगों को एक बार फिर इमरजेंसी की याद आ गई. आपातकाल में जिस तरह इंदिरा गांधी खुद के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को दबाने की कोशिश के तहत जेल में डाल देती थीं, उस तर्ज पर एक ओर प्रधानमंत्री अहमदाबाद पहुंचे तो दूसरी ओर दलित नेता जिग्नेश मावानी ओर 400 पाटीदारों को हिरासत में ले लिया गया. ताकी वो प्रधानमंत्री तक अपनी बात ना पहुंचा पाएं या फिर यूं कहें कि वो प्रधानमंत्री का विरोध न कर सकें.

यह भी पढ़ें- अमित शाह का इतना विरोध क्यों और वहीं जहां बीजेपी की सरकारें हैं

दरअसल, प्रधानमंत्री इससे पहले 30 अगस्त को भी गुजरात के सौराष्ट्र में सौनी योजना के उद्घाटन के लिये आये थे. यहां पाटीदार लड़कों ने प्रधानमंत्री के भाषण के बीच जय सरदार..जय पाटीदार के नारे लगाए थे. इसके बाद पिछले सप्ताह खुद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्य़क्ष अमित शाह ने सूरत में पाटीदार अभिवादन समारोह में सिरकत की थी.

वहां भी पाटीदारों ने अमित शाह का जमकर विरोध किया. इतना ही नहीं कुर्सियां उछाली गईं, पानी की बोतलें फेंकी गई और युवा विरोध करते हुए मंच के करीब तक पहुंच गए.

तभी भांप लिया गया था कि बीजेपी अपने प्रमुख वोटबैंक पाटीदारों में ही अपना अस्तित्व खो रही है. इसी अस्तित्व को बचाने की लड़ाई के तौर पर आज प्रधानमंत्री सूरत से महज 30 किमी की दूरी पर नवसारी आए और अपना जन्मदिन गुजरात में गुजरात के लोगों के बीच मनाया. खुद नरेन्द्र मोदी ने दाहोद के लिमखेडा में अपने भाषण में कहा कि मैं कभी अपना जन्मदिन मनाता नही हूं. लेकिन मां का आशिर्वाद इस दिन जरुर लेता हूं.

modi-650-2_091716071813.jpg
 मोदी का करिश्मा क्या फिर गुजरात में काम करेगा?

गौरतलब है कि नरेन्द्र मोदी गुजरात के विकास पुरुष के तौर पर जाने जाते थे, लेकिन गुजरात से जाने के 1 साल के भीतर ही जिस तरह बीजेपी बैकफुट पर आई, उसके लिये जानकार कहीं न कहीं नरेन्द्र मोदी को ही जिम्मेदार मान रहे हैं. सीनियर जर्नलिस्ट प्रशांत दयाल की मानें तो जब नरेन्द्र मोदी गुजरात में मुख्यमंत्री हुआ करते थे, तब उन्होंने गुजरात में कहीं पर भी सेकंड कैडर के नेता को उभरने का मौका नहीं दिया.

यह भी पढ़ें- गुजरात में अमित शाह की फूट डालो और राज करो की नीति

मोदी ने खुद की छवि ही इतनी बड़ी बना ली थी कि उनके सामने दूसरी सभी नेता काफी छोटे दिखते थे. यही वजह है कि आज के मुख्यमंत्री जब लोगों के बीच जाते हैं तो उनकी तुलना सीधे नरेन्द्र भाई से कि जाती है.

जानकारों के मुताबिक मोदी जब गुजरात विधानसभा के चुनाव में प्रचार के लिये जाते थे, तब लोगो में उनका जादू सर चढ़ कर बोलता था. लोग तब उम्मीदवार को नहीं नरेन्द्र मोदी को वोट देते थे. लेकिन अब नरेन्द्र मोदी को भी लगता होगा कि गुजरात बीजेपी को अगर बचाना है तो संकट मोचक की भूमिका भी उन्हीं को अदा करनी पड़ेगी.

यह भी पढ़ें- विजय रुपानी के लिए गुजरात की गद्दी सिर्फ कांटों भरा ताज

लेखक

गोपी मनियार गोपी मनियार @gopi.maniar.5

लेखिका गुजरात में 'आज तक' की प्रमुख संवाददाता है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय