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Updated: 21 फरवरी, 2017 04:21 PM
संतोष चौबे
संतोष चौबे
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बुंदेलखंड, जिसे हम कालाहांडी का विकराल रूप कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, उत्तर प्रदेश विधान-सभा चुनावों के चौथे चरण में 23 फरवरी को अपने जन-प्रतिनिधियों को फिर से चुनने के लिए मतदान करेगा. जैसे कालाहांडी पिछड़ेपन और भूख से होने वाली मौतों के कारण पूरी दुनिया में कुख्यात हो गया था, कुछ वैसा ही हाल बुंदेलखंड का भी है. हालांकि यहां भूख से होने वाली मौतों पर बात नहीं होती है, लेकिन भूख मिटाने की तलाश में यहां से होने वाला पलायन पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुका है.

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बुंदेलखंड के सात जिले जो यूपी में आते हैं, झांसी, बांदा, ललितपुर, महोबा, जालौन, चित्रकूट और हमीरपुर, की जनसंख्या लगभग 1 करोड़ है. आंकड़ों के अनुसार, इस करोड़ में से लगभग 33 लाख लोग भूख से बचने की तलाश में और रोजी-रोटी की जुगाड़ में देश के दूसरे हिस्सों में पलायन कर चुके हैं. कुछ स्वयंसेवी संगठनों के अनुसार ये आंकड़ा 65 लाख तक पहुंच चुका है.

और हो भी क्यों न!

बुंदेलखंड दशकों से सूखे की मार झेल रहा है. अगर हम साल 2000 से देखें तो ये क्षेत्र कम से कम 8 सूखों का दौर देख चुका है. यहां से रोज पलायन करने वालों की औसत संख्या 6000 है. सूदखोरों और महाजनों के यहां, यहां के लोगों के कर्ज में लगभग 60 फीसदी हिस्सेदारी है जो 10 प्रतिशत प्रति महीना तक ब्याज वसूलते हैं. यहां की जनसंख्या में 60 फीसदी मजदूर हैं और उन 60 फीसदी मजदूरों में 60 फीसदी किसान और खेतिहर मजदूर हैं जो अपने जीवन निर्वाह के लिए खेती और पशुधन पर निर्भर हैं.

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पर खेती नहीं है. पानी की कमी से यहां उद्योग-धंधे भी नहीं हैं. और ऐसे में मजदूरों के लिए भी यहां कमाने का कोई खास साधन नहीं है, खासकर जब यहां भवन-निर्माण की गतिविधियां थम जाती हैं. स्वराज अभियान के 2015 के सर्वे ने पाया के सूखे की मार झेल रहे इस क्षेत्र का हर छठा घर घास की रोटी खाने के लिए अभिशप्त था और हर पांचवा घर भूखा सोया, 60% घरों को दूध और 53% घरों को दाल मयस्सर नहीं हुई, और मजबूरी में 40% परिवारों को अपना पशुधन बेचना पड़ा और 27% परिवारों को अपनी जमीन या तो बेचनी पड़ी या गिरवी रखनी पड़ी.

अब जीवन के मारे इस बुंदेलखंड के लोग अपना भविष्य फिर से चुनने जा रहे हैं, अपने जन-प्रतिनिधियों के रूप में. उन जन-प्रतिनिधियों में से जिनमें कई करोड़पति हैं, उस इलाके में जहां गरीबी और भूख की वजह से शहर के शहर उजाड़ हो चले हैं और कई गांवों में केवल बच्चे और असहाय बुजुर्ग ही रह गए हैं.

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बुंदेलखंड में अमीर प्रत्याशियों की भरमार

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक बुंदेलखंड में अमीर प्रत्याशियों की भरमार है. एडीआर की यूपी चुनावों के चौथे चरण के लिए जारी विश्लेषण के अनुसार 11 जिलों की 53 सीटों पर कुल 189 करोड़पति उम्मीदवार मैदान में हैं. इसमें अगर हम बुंदेलखंड के कुछ करोड़पतियों की बात करें तो जालौन के कालपी से निर्दलीय उम्मीदवार बालगोविंद ने 10 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति घोषित की है, झांसी के गरौठा से सपा प्रत्याशी दीप नारायण झा के पास 27 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है, बांदा के बीजेपी प्रत्याशी प्रकाश चंद्र के पास 14 करोड़ से ज्यादा, झांसी के बबीना से सपा प्रत्याशी यशपाल यादव के पास 9 करोड़ से ज्यादा, महोबा के निर्दलीय उम्मीदवार संजय कुमार के 12 करोड़ से ज्यादा, महोबा से सपा प्रत्याशी सिद्धगोपाल साहू के 5 करोड़ से ज्यादा और जालौन के महान दल उम्मीदवार रविन्द्र सिंह के पास लगभग 6 करोड़ की संपत्ति है.

ये तो वो चंद नाम हैं जो एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार सबसे अमीर प्रत्याशियों में आते हैं. एडीआर ने चौथे चरण के लिए 680 प्रत्याशियों का विश्लेषण किया है और इन सबसे अमीर नामों के आलावा भी लिस्ट में कई और नाम हैं. अमीर होना कोई गुनाह नहीं है लेकिन बुंदेलखंड के अमीर प्रत्याशी इस इलाके की गरीबी से कोई मेल नहीं खाते हैं. उनकी अमीरी तो यहां की गरीबी, यहां की तंगहाली, यहां की भूख और यहां से होने वाले पलायन का मजाक उड़ाती लगती है. ऐसा लगता है जैसे वो उत्तर प्रदेश की कालाहांडी के अमीर चितेरे हैं जिन्हें अपना कैनवास बुन्देलखण्ड की गरीबी में ही दिखता है. ऐसा नहीं होता तो एक इलाका जो दशकों से सूखे और भूख की त्रासदी झेल रहा है वो अपनी गरीबी के साथ जीने के लिए अभिशप्त नहीं होता.

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लेखक

संतोष चौबे संतोष चौबे @santoshchaubeyy

लेखक इंडिया टुडे टीवी में पत्रकार हैं।

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