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Updated: 30 नवम्बर, 2016 07:45 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
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प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 8 नवम्बर को पांच सौर और हजार के नोटों पर प्रतिबन्ध का ऐलान करने के बाद से इस निर्णय को लेकर राजनीतिक गलियारों में हो-हल्ला मचा हुआ है. विपक्ष द्वारा लगातार सरकार के इस निर्णय को जनता को परेशान करने वाला बताया जा रहा है. नोटबंदी के इस निर्णय पर जनता का मिजाज़ मांपने के लिए तमाम मीडिया संस्थानों द्वारा सर्वेक्षण भी किए गए, जिनमें इस निर्णय के प्रति लोगों का समर्थन ही सामने आया. प्रधानमंत्री मोदी ने खुद अपने एप के माध्यम से एक सर्वेक्षण करवाया, इसमें 93 फीसदी लोगों ने इस निर्णय के समर्थन में अपना मत रखा.

लेकिन, इन सब सर्वेक्षणों पर को विपक्षी दलों और विचारधारा विशेष से प्रभावित बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा नकारा जाता रहा. कहा जाता कि ये चंद लोगों पर आधारित हैं, इसलिए इनकी कोई विश्वसनीयता नहीं. इसी बीच देश के दो राज्यों महाराष्ट्र और गुजरात में निकाय चुनाव संपन्न हुए और इन चुनावों में जो जनमत सामने आया, उसने साफ़ कर दिया कि मोदी सरकार की नोटबंदी के बाद उसके प्रति जनता का मिजाज़ क्या है.

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 निकायों में नंबर तीन से सीधे नंबर एक की पार्टी बन गई है भाजपा

महाराष्ट्र के नगर निकाय चुनाव जिसे बुद्धिजीवी वर्ग मिनी विधानसभा चुनाव कहता है, में भाजपा ने लम्बी छलांग लगाते हुए महानगरपालिका के 147 में से 52 अध्यक्ष पदों पर जीत हासिल की है, इसीके साथ वो निकायों में नंबर तीन से सीधे नंबर एक की पार्टी बन गई है. भाजपा की ही सहयोगी पार्टी शिवसेना 23 सीटों के साथ दुसरे नंबर पर रही. पिछले बार की नंबर एक पार्टी एनसीपी को केवल 16 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. कांग्रेस के खाते में भी सिर्फ 19 सीटें ही आ सकीं. स्पष्ट है कि महाराष्ट्र के इन निकाय चुनाव में जनता ने पूरी तरह से भाजपा को स्वीकृति प्रदान की है.

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महाराष्ट्र के बाद बात गुजरात के निकाय चुनावों की करें तो यहां भाजपा का दबदबा और भी मजबूत हुआ है. यहां पर दो नगर पालिकाओं के चुनावों में भाजपा ने एकतरफा जीत दर्ज की है. केंद्र और राज्य में सत्तासधारी पार्टी को वापी नगरपालिका चुनाव में 44 में से 41 सीटें मिली हैं वहीं सूरत के कनकपुर-कनसाड़ नगरपालिका में 28 में से 27 सीटों पर विजय मिली. जबकि कांग्रेस को वापी में तीन और कनकपुर-कनसाड़ में एक सीट से संतोष करना पड़ा.

वहीं जिला पंचायत, तालुका पंचायत और नगरपालिका उपचुनावों में भाजपा ने 23 और कांग्रेस ने महज आठ सीटों पर जीत हासिल की है. उल्लेखनीय होगा कि गत वर्ष हुए गुजरात के ग्रामीण और शहरी निकायों के चुनावों में कांग्रेस ने ठीकठाक वापसी की थी, लेकिन इसबार भाजपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ कर अपने दबदबे को पुनः कायम किया है.

इन दोनों ही राज्यों के इन निकाय चुनावों के बाद कहने की आवश्यकता नहीं रह जाती कि नोटबंदी के जनता का मिजाज़ क्या है. विपक्षी दल और बुद्धिजीवी वर्ग सर्वेक्षणों को नकार सकते हैं, लेकिन इन चुनावों में जो जनमत सामने आया है, उससे आंख नहीं चुरा सकते. उन्हें स्वीकार करना चाहिए कि नोटबंदी के बाद भाजपा के प्रति जनसमर्थन बढ़ा है और जमीनी हकीकत यही है कि इस निर्णय से थोड़ी-बहुत परेशानी के बावजूद आम लोग बेहद खुश हैं. उन्हें लगता है कि देश में लम्बे समय बाद एक ऐसी सरकार आई है, जो कहने और योजनाएं बनाने में अधिक वक़्त जाया करने की बजाय कदम उठाने में अधिक यकीन रख रही है. साथ ही, जनता यह भी देख रही है कि किस तरह नोटबंदी जैसे एक अच्छे निर्णय का बेहद अतार्किक ढंग से विपक्षी दलों द्वारा बेमतलब का विरोध किया जा रहा है.

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विपक्षी दलों का ये फिजूल विरोध जनता में उनके प्रति जो सन्देश भेज रहा है, वो भी एक कारण है कि जनता उन्हें लगातार खारिज का रही है. मतदाताओं ने पहले असम और मध्य प्रदेश के उपचुनावों और फिर महाराष्ट्र व गुजरात के इन निकाय चुनावों में भाजपा को शानदार जीत देकर यह सिद्ध कर दिया कि अब वे उसीको चुनेंगे, जो काम करेगा. 

लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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