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Updated: 21 मार्च, 2017 07:14 PM
प्रदीप भंडारी
प्रदीप भंडारी
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उत्तरप्रदेश चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की तीन चौथाई बहुमत से जीत दर्ज हुई . इस जीत को कई राजनैतिक पंडित विपक्षी पार्टियों का पतन और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर जनमत के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, परंतु अगर इसका बारीकी से आकलन किया जाये तो कई अनेक राजनैतिकऔर सामाजिक घटनाक्रम को ध्यान में रख कर करना उचित होगा .

इसमें कोई दो राय नहीं हैं की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रिय छवि भारतीय जनता पार्टी की जीत का एक बहुमूल्य कारण है यद्यपि हमें यह नहीं भूलना चाहिये की बिहार चुनाव में भी उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं थी. आज़ादी के बाद से उत्तरप्रदेश चुनाव में जाती के अलावा धन ,बल और बाहुबल चुनाव जीतने के लिए महत्वपूर्ण औजार के रूप में उपयोग होते आये हैं.

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विमुद्रीकरण के बाद उत्तर प्रदेश की जनता-जनार्दन ने पहली बार उत्तर प्रदेश के अनेक राजनेताओं को कुछ समय के लिए लाचार और बेबस देखा. धन, बल, और बाहुबल के धनि कई नेताओं ने पहली बार अपनी इस ताकत को कम होते हुए देखा और इस घटती ताकत की बेबसी को विमुद्रीकरण के प्रति विरोध दर्ज करने के जरिये व्यक्त किया.

इस विरोध के कारण जनता में यह प्रतीत हुआ की अवैध रूप से धन राशि इक्कठा करने वाले नेता एक ऐसे कदम के विरोध में खड़े हुए हैं जो जनता के हित में लिया गया है. आम आदमी के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं था कि कितना काला धन पकड़ा गया परंतु उसने काले धन की यथास्थिति को परिवर्तन करने के प्रयास को अपना जनमत दिया. इस स्थिति में चुनावी युद्ध मोदी बनाम अन्य में जनता ने प्रधानमंत्री मोदी के भ्रष्टाचार के खिलाफ लिए गए कदम को चुना. इसमें विमुद्रीकरण को भ्रष्टाचार के विरुद्ध लिए गए कदम के रूप में प्रचार करने में मोदी अपने विरोधियों से ज़्यादा सटीक और कारगर साबित हुए. सही मायने में कहा जाये तो इस बार उत्तर प्रदेश में नोटों की नहीं वोटों की राजनीति हुई है. विमुद्रीकरण के अलावा जाति समीकरण का सही बैठना भी भाजपा की जीत का एक अहम कारण था.

1990 में कल्याण सिंह की सरकार में जब भाजपा को 221 सीटें मिली थीं तब मुख्यतः ठाकुर ब्राह्मण जातियों का वोट मिला था. इस बार स्वामी प्रसाद मौर्या के भाजपा में आने और केशव प्रसाद मौर्या के अध्यक्ष बनने के बाद गैर यादव ओबीसी वोट(और 25 से 30 सीटों का योगदान मौर्या जाती द्वारा) भारतीय जनता पार्टी को मिला.

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इसके साथ ही लोधी और कुर्मी जातियों से भी भारतीय जानत पार्टी को सहयोग मिला. अपना दल के साथ गठबंधन करने से इन जातियों के वोट लामबंध करना भाजपा के लिए आसान हो गया. पूर्वी उत्तर प्रदेश के अंदर भारतीय जनता पार्टी ने काफी छोटी पार्टियों से गठबंधन करते हुए 117 महत्वपूर्ण सीटों में अधिकतर अपने खाते में डाली. मनोज सिन्हा जैसे नेताओं से भुमियार वोट भी भारतीय जनता पार्टी के पक्ष मैं आया. मुख्तार अंसारी के बसपा में वापस आने से हिन्दू वोट का ध्रुवीकरण होने से भी भाजपा को फायदा हुआ.

हालांकि यह कहना गलत होगा कि यह चुनाव की जीत सिर्फ हिन्दू वोट के ध्रुवीकरण से हुई. इस बार शुरुआती आंकड़ों के आधार पर कई मुस्लिम महिलाओं ने भी भारतीय जनता पार्टी को अपना मत दिया. ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर स्पष्टिकरण से अपनी राय रखने से मुस्लिम महिलाओं के बीच में प्रधान मंत्री मोदी एक सेक्युलर नेता के रूप में अपनाये गए. उन्होंने अपनी आवाज मुस्लिम महिलाओं के गौरव को सर्वोपरि रखते हुए उठाई. उज्ज्वला नीति महिलाओं के बीच मैं काफी लोकप्रिय हुई और जमीन पर इसके क्रियान्वन से कई महिलाओं को इससे लाभ भी हुआ. मुस्लिम के आलावा भारतीय जनता पार्टी को इस बार कई यादव जाति के वोट भी प्राप्त हुए हैं. इसमें मुख्य कारण 1.) स्थानीय यादव प्रतिनिधि से मनमुटाव 2.)  शिवपाल यादव गुट की बेइज्जतीके बाद नाराजगी और बुजुर्ग यादवों की अखिलेश यादव से पारिवारिक बंटवारे के बाद दूरी (खास तौर पर उनका अपने पिता से व्यवहार).

निष्कर्ष के तौर पर काफी कारणों के साथ मिलने से मोदी लहर उत्तर प्रदेश चुनाव मैं मतदाताओं का जनमत हासिल कर पाई. अब समय जनता के विश्वास को नीतियों के रूप मैं क्रियान्वित करने का  है.

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लेखक

प्रदीप भंडारी प्रदीप भंडारी @pradip.bhandari.18

लेखक 'जन की बात' के फाउंडर हैं

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