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Updated: 27 जनवरी, 2017 02:45 PM
अशोक उपाध्याय
अशोक उपाध्याय
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22 जनवरी को कांग्रेस एवं समाजवादी पार्टी के गठबंधन का ऐलान दोनों पार्टियों के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर और नरेश उत्तम ने किया था. दोनों पार्टियों के रणनीतिकारों को लगता है की वो धमाकेदार नहीं था. अब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 29 जनवरी को लखनऊ में एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसको धमाकेदार बनाने की कोशिश करेंगे. इसको असरदार बनाने के लिए बड़े मीडिया कवरेज का भी प्लान बनाया जा रहा है.

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इस प्रेस कांग्रेस के बाद राहुल गांधी और अखिलेश यादव एक साथ प्रचार करेंगे. रिपोर्ट के अनुसार दोनों एक साथ पूरे प्रदेश में कुल 14 रैलियां करेंगे. दोनों के लिए एक नया नारा भी तैयार कर दिया गया है. राहुल और अखिलेश चुनावी मंच से ‘यूपी के लड़के vs बाहरी मोदी’ का नारा बुलंद करेंगे. पर क्या ‘यूपी के लड़के vs बाहरी मोदी’ के नारे के सहारे वो चुनावी नैया पर कर पाएंगे? क्या लोगों पर इसका असर होगा? क्या भाजपा इसका जबाब देने को तैयार है?

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नरेंद्र मोदी गुजरात के रहने वाले हैं पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी लोक सभा क्षेत्र से संसद हैं. उत्तर प्रदेश न तो उनकी जन्मभूमि हैं न ही कर्म भूमि. प्रधान मंत्री बनने के बाद वो अब तक अपने लोक सभा क्षेत्र में 10 बार भी नहीं जा पाए हैं. इसके ठीक विपरीत अखिलेश यादव का जन्म भूमि एवं कर्म भूमि दोनों ही उत्तर प्रदेश रहा है. हालांकि राहुल गांधी का जन्म दिल्ली में हुआ है पर वो 2004 से लगातार उत्तर प्रदेश के अमेठी से लोक सभा के सांसद रहे हैं. उनके माता एवं पिता दोनों इस संसदीय क्षेत्र का नेतृत्व कर चुके हैं. यानी की अगर कसौटी यूपी का लड़का होने की है और इस पर राहुल गांधी, अखिलेश यादव एवं नरेंद्र मोदी को परखना है, तो निश्चित रूप से नरेंद्र मोदी उन दोनों के तुलना में बाहरी हैं.

अब नजर भाजपा की रणनीति पर

भाजपा के चुनाव प्रचार सामग्रियों एवं इसके फेसबुक पेज पर कुल 6 नेताओं के फोटो हैं. फोटो के कद के हिसाब 2 नेताओं का चेहरा बड़ा है- नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह. अन्य चार नेता हैं राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र, उमा भारती एवं केशव प्रसाद मौर्या. इन पोस्टरों में चारों का कद मोदी एवं शाह के मुकाबले लगभग आधा है.

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मतलब की इन पोस्टरों पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं मोदी के वरिष्ठतम मंत्री राजनाथ सिंह का कद अमित शाह से आधा है. वो अमित शाह की तरह दो बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं. अमित शाह की न तो जन्म भूमि और न ही कर्म भूमि उत्तर प्रदेश है और न ही उनका व्यक्तित्व नरेंद्र मोदी की तरह से करिश्माई है. तो फिर उनका कद राजनाथ सिंह से दुगना बड़ा क्यों- वो भी उत्तर प्रदेश के चुनाव में? क्या भाजपा को लगता है कि उत्तर प्रदेश में अमित शाह, राजनाथ सिंह से ज्यादा असरदार होंगे एवं ज्यादा वोट दिलवा देंगे? अगर भाजपा के रणनीतिकार ये सोचते हैं तो वो ‘यूपी के लड़के vs बाहरी मोदी नारे को और ताकत दे रहे हैं.

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अब इन चार 'छोटे कद' वाले भाजपा के नेताओं में उमा भारती भी शामिल हैं. हालांकि वो उत्तर प्रदेश से सांसद हैं पर उनकी भी कर्म भूमि उत्तर प्रदेश नहीं मध्य प्रदेश हैं. यानी की पोस्टरों के 6 चेहरों में से 3- मोदी, शाह एवं भारती, उत्तर प्रदेश के नहीं हैं. अगर सपा एवं कांग्रेस बाहरी बनाम लोकल के मुद्दा जोरदार तरीके से उठाती है, जिसकी पूरी-पूरी संभावना है, फिर भी भाजपा अपनी रणनीति में बदलाव नहीं लाती है, तो उत्तर प्रदेश में भी इसको बिहार के भांति हार का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि इस मुद्दे पर वो बिहार की तरह ही बहुत ही कमजोर विकेट पर है. बिहार में लालू एवं नितीश ने बाहरी बनाम बिहारी का नारा दिया था एवं सफल हुए थे. उत्तर प्रदेश में अखिलेश एवं राहुल वही दोहरा रहे हैं एवं भाजपा भी अपनी वही गलती दोहरा रही है.

लेखक

अशोक उपाध्याय अशोक उपाध्याय @ashok.upadhyay.12

लेखक इंडिया टुडे चैनल में एडिटर हैं.

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