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Updated: 10 मार्च, 2017 04:34 PM
रीमा पाराशर
रीमा पाराशर
  @reema.parashar.315
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देश के पांच राज्यों में नई सूबाई सरकार के लिए हुए चुनावी घमासान के बाद अब नतीजों का काउंट डाऊन शुरू हो चुका है. सो, मतदान की आखिरी कवायद पूरी होते ही गुरुवार को सबकी निगाहें एग्जिट पोल अनुमानों पर टिकी थीं, ताकि मतगणना से पहले जनगण के फैसले की बानगी मिल सके. वहीं जो नतीजे एग्जिट पोल परिणामों ने दिखाए वो कम से कम केंद्र की सत्ता में काबिज़ बीजेपी के लिए उत्साह का टॉनिक देने वाले थे.

इसकी प्रमुख वजह देश के सबसे बड़े सूबे उत्तरप्रदेश के चुनावी आखाड़े से आ रहे रुझान हैं. यूपी को लेकर लगभग सभी एग्जिट पोल नतीजों ने बीजेपी को सूबे में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर दिखाया है. नतीजे सही निकले तो बीजेपी को सबसे बड़े दल का यह रुतबा करीब दो दशकों के बाद हासिल होगा. इतना ही नहीं चुनाव बाद संभावनाओं का जोड़-गुणा फिलहाल बीजेपी को सत्ता की दहलीज़ तक भी पहुंचाता नजर आ रहा है.

modi650_031017123908.jpgयूपी को लेकर लगभग सभी एग्जिट पोल नतीजों ने बीजेपी को सूबे में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर दिखाया है

यूपी के अलावा, उत्तराखंड की पेंडुलम सियासत में भी इस बार सत्ता बीजेपी के पाले में जाती नजर आ रही है वहीं गोवा में चुनावी ऊंट कमल की ओर मुंह कर बैठ जाए तो कोई अचरज नहीं होगा. यानी पांच में से तीन सूबों में बीजेपी की जीत का सेहरा पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी के लिए आगे का रास्ता आसान कर देगा. नतीजों में मिल पर मन-माफिक रुझानों को बीजेपी के रणनीतिकार सही चुनावी पैंतरों का परिणाम मान रहे हैं. उम्मीदवारों के चयन में सही सोशल इंजीनियरिंग से लेकर नोटबंदी को लेकर जनमत के तौर पर नतीजों को आंका जा रहा है.

चुनावी रणनीति से करीबी तौर पर जुड़े एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक जातियों की सियासत में सिमटे उत्तरप्रदेश में अन्य पार्टियों की सीमित जातीय समीकरणों ने काफी हद तक बीजेपी को मदद भी दी. जाटव-दलित मतों पर टिकी बीएसपी के लिए इसे बहुत ज्यादा बाहर जाने की गुंजाइश नहीं थी. पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारकर मुसलमानों का दिल जीतने की कोशिश भी की मगर पहले से बंटे करीब 19 फीसद इस वोट बैंक में उसकी खासी सेंध लगती नहीं दिख रही. ऐसे में दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे निकला हाथी सत्ता का रास्ता भटकता लग रहा है.

कई चुनावों में समाजवादी पार्टी की जीत का ट्रंपकार्ड साबित होते रहे मुस्लिम-यादव वोट बैंक भी दरकता दिख रहा है. इसमें बड़ी वजह मुस्लिम मतों में हुआ बंटवारा भी है. ऐसे में लगभग 35 प्रतिशत गैर-यादव पिछड़े तबके को अपनी ओर रिझाने की भाजपा की रणनीति काफी हद तक प्रभावी दिख रही है. पारंपरिक तौर पर सवर्ण और ओबीसी वोट हमेशा बीजेपी के लिए जीत की चाबी साबित होते रहे हैं. इतना ही नहीं, जानकार एग्जिट पोल नतीजों को नोटबंदी पर जमीनी स्तर से जनता के बीच मिले समर्थन का भी परिणाम मान रहे हैं. बीजेपी नेता, नोटबंदी के बाद उड़ीसा और महाराष्ट्र नगर निकाय चुनावों में मिली कामयाबी के बाद एग्जिट पोल को भी मोदी सरकार के इस बड़े आर्थिक कदम पर समर्थन का वोट मान रही है.

एग्जिट पोल करने वाली सात एजेंसियों के परिणामों में भले ही अंतर हो मगर एक समानता है कि सभी ने बीजेपी को यूपी में सबसे बड़े दल के तौर पर उभरता हुआ दिखाया है. मतदान पश्चात के दो आकलनों में जहां बीजेपी को 203 का जादूई आंकड़ा पार करते दिखाया गया है वहीं अन्य दो में पार्टी को बहुमत से काफी करीब बताया है. रोचक बात है कि पांच साल तक सरकार चलाने के बाद सत्ता विरोधी नाराजगी और पारिवारिक घमासान के बावजूद अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी काफी बेहतर प्रदर्शन करती दिख रही है. जबकि, बहुजन समाजवादी पार्टी सभी एग्जिट पोल में तीसरे नंबर की पार्टी है.

सत्ता के समीकरणों में अगर बीजेपी उत्तरप्रदेश में सरकार नहीं भी बना पाती तो भी सबसे बड़े दल के तौर पर विपक्ष में उसकी मौजूदगी किसी भी दूसरे दल या गठबंधन के लिए चुनौती जरूर होगी. हालांकि नतीजों के आधार पर बीजेपी की पूरी कोशिश होगी की वो अपने दम पर या मामूली बाहरी समर्थन पर सरकार बनाए. इस कवायद में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या को दिल्ली तलब भी कर लिया गया है.

इस बीच अखिलेश यादव ने बसपा के साथ गठबंधन की संभावनाओं का सुग्गा छोड़ बसपा सुप्रीमो मायावती की ही मुश्किलें बढ़ाई हैं. चुनाव में सबसे ज्यादा 97 मुस्लिम उम्मीदवार खड़े करने वाली मायावती के लिए चुनाव बाद अपनी पुरानी गठबंधन सहयोगी बीजेपी के साथ जाना बेहद मुश्किल होगा. वहीं सपा के साथ हाथ मिलाने पर सूबे में सियासत की धुरी की भूमिका हाथ से जाती रहेगी.

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रीमा पाराशर रीमा पाराशर @reema.parashar.315

लेखिका आज तक में पत्रकार हैं.

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