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Updated: 29 अगस्त, 2018 04:26 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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अयोध्या की दिवाली में इस बार फर्क बस इतना था राम, सीता और लक्ष्मण हेलीकॉप्टर से अयोध्या पहुंचे, वैसे भी कलियुग में त्रेता युग की तरह पुष्पक विमान तो होते नहीं.

अयोध्या के इस दिवाली समारोह से सियासी रंग उतरने का नाम इसलिए भी नहीं ले रहा था क्योंकि असली दिवाली का कार्यक्रम तो योगी ने गोरखपुर के लिए बना रखा है.

अब तो योगी भी पहली बार

अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ज्यादातर मामलों में 'पहली बार' वाली बाजी मार लिया करते रहे, योगी आदित्यनाथ ने इस बार उन्हें कड़ी टक्कर दी है. सरकारी दिवाली के बहाने ही सही ये तो मानना ही पड़ेगा कि योगी ही इतिहास में पहली बार अयोध्या में त्रेतायुग की तरह दिवाली मना रहे हैं.

बिलकुल उसी अंदाज में जैसे त्रेता युग में 14 साल का वनवास काटने के साथ ही लंका पर विजय पाकर अयोध्या लौटे भगवान राम का जोरदार स्वागत हुआ. स्वागत में राम की नगरी अयोध्या को दीपों से सजाया गया था - और राम का राज्याभिषेक हुआ. इस बार ये काम भी योगी आदित्यनाथ के हाथों संपन्न हुआ. वैसे बीजेपी का बरसों लंबा वनवास खत्म होने के बाद ही मुख्यमंत्री योगी दिवाली पर अयोध्या पहुंचे हैं.

योगी सरकार पहले ही सरयू नदी के तट पर राम की विशाल मूर्ति बनाने की घोषणा कर चुकी है, जो स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से भी बड़ी होगी. लेकिन राम मंदिर की तरह इसमें भी रोड़ा है - नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल की मंजूरी जरूरी है और उसी का इंतजार है.

वैसे तो रिकॉर्ड टूटने के लिए ही बनते हैं - मगर, कुछ रिकॉर्ड बनने ही नहीं चाहिये. अगर बन भी तो टूट ही जाने चाहिये और बलात्कारी गुरमीत रामरहीम जैसों के रिकॉर्ड तो मिटा ही देने चाहिये.

बाकी राजनीति जो भी हो अयोध्या की इस दिवाली की सबसे अच्छी बात तो योगी आदित्यनाथ के हाथों गुरमीत रामरहीम का रिकॉर्ड टूटना ही है. वैसे बताते हैं कि रामरहीम ने 50 से ज्यादा रिकॉर्ड अपने नाम कर रखे हैं, जिनमें 17 गिनीज बुक में दर्ज हैं.

पिछले ही साल 23 सितंबर को हरियाणा के सिरसा में 1,50,009 दीये जलाए गये थे जिसमें डेढ़ हजार लोगों ने हिस्सा लिया था. ये रिकॉर्ड तोड़ने के लिए योगी सरकार ने सरयू के तट पर 1.71 लाख दीयों का लक्ष्य रखा. दावा ये है कि दीयों की संख्या दो लाख तक भी हो सकती है.

अब ये तो मानना ही पड़ेगा कि पहली बार वाली बात सिर्फ मोदी के लिए ही नहीं रही, अब इसमें योगी भी हिस्सेदार हो गये हैं. क्या मालूम इसी बहाने सियासत की कोई और ही इबारत लिखी जा रही हो.

दिवाली डिप्लोमेसी के मायने

योगी सरकार का कहना है कि वो अयोध्या को एक पर्यटन केंद्र के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रही है. लेकिन कोई भी सरकारी प्रयास ऐसे मुमकिन है क्या, जिसमें कोई राजनीतिक मकसद शामिल न हो.

ayodhya diwaliत्रेतायुग जैसी दिवाली...

भला नये पर्यटन केंद्र स्थापित करने से किसे ऐतराज होगा, लेकिन पुरानों को दरकिनार करके. आखिर इसका क्या मतलब है? पुरानों में भी बस ताज ही खटक रहा था. गोरखपुर मंदिर को ही पर्यटन केंद्रों में शामिल करने में किसे आपत्ति होगी? वैसे भी बनारस और देश के दूसरे मंदिरों पर जाने वाले विदेशी सैलानी पूजा करने तो आते नहीं. लेकिन ताज को हटाकर गोरखपुर को शामिल किया जाएगा तो सवाल तो पूछे ही जाएंगे.

सरकार ने ताज को हटाये जाने और गोरखपुर मंदिर को जोड़े जाने के मायने अलग समझाये थे. संगीत सोम ने तो सरकार के इरादे ही जाहिर कर दिये. अब सुना है डैमेज कंट्रोल के लिए योगी खुद आगरा जाने वाले हैं.

यूपी चुनावों तक बीजेपी राम मंदिर के मामले में डिप्लोमैटिक बयान देती नजर आयी. सुप्रीम कोर्ड के फैसले के हिसाब से और संवैधानिक दायरे में राम मंदिर बनाये जाने की बात होती रही. अब स्थिति बदली है. जिस बदलाव के संकेत बीजेपी दे रही है उसे तो कांग्रेस पहले से ही महसूस करने लगी है. विकास का मुद्दा सिर्फ गुजरात में ही नहीं पीछे छूटता नजर आ रहा है - ये 2019 का पूर्वाभ्यास है. वैसे श्मशान और कब्रिस्तान के बहाने एक झलक तो यूपी चुनाव में भी देखने को मिली ही थी - और अब तो बीजेपी नेता गाहे-ब-गाहे इशारा भी करते हैं कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनेगा, लेकिन उससे पहले स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से भी ऊंची राम की मूर्ति लगेगी. आखिर तभी तो अच्छे दिनों के बाद बीजेपी का स्वर्णकाल आ पाएगा.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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