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Updated: 26 अप्रिल, 2017 05:26 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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आम आदमी पार्टी से बाहर किए गए योगेंद्र यादव को केजरीवाल की हार-जीत की स्‍ट्रेटजी का पता था. चुनाव में उनका उतरना जीत हासिल करना नहीं था, बल्कि उनकी मुखालफत करना था. केजरीवाल के झूठे वादों का बखान जनता के बीच करना था. अपनी इस रणनीति में वह सफल हुए. स्वराज इंडिया के लिए यह चुनाव नींव का पत्थर रखने जैसा था. इसलिए उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं था. उनके नेता योगेंद्र यादव ने परिणाम आने के बाद कहा कि दिल्ली की जनता ने सत्ता भारतीय जनता पार्टी को सौंपी है, कांग्रेस-आप को विपक्ष में बैठाया है, वहीं उनकी पार्टी को बाहर से निगरानी का जनादेश दिया है. उन्होंने ईवीएम के साथ छेड़छाड़ से इनकार किया है.

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आप नेताओं को लताड़ते हुए योगेंद्र ने कहा कि इतनी बड़ी हार के बाद भी बेशर्मी देखिए कि ईवीएम को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उन्होंने कहा कि केजरीवाल ने राजधानीवासियों को जितना निराश किया है, उतना अब तक किसी सरकार या पार्टी ने नहीं किया. राइट-टू-रिकॉल की बात करने वाले केजरीवाल अगर आज विधानसभा के चुनाव करा लें, तो तुरंत सत्ता से बाहर हो जाएंगे. विपक्ष में बैठने के लायक भी सीटें नहीं मिलेंगी. भाजपा ने उनसे नैतिकता के आधार पर कुर्सी छोड़ने की मांग की है. खैर, केजरीवाल कुर्सी तो कोई नहीं छोड़ने वाले. चुनाव से पहले किए वायदों का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता. तीनों प्रमुख पार्टियों को अब आरोप-प्रत्यारोप छोड़कर जनादेश का सम्मान करना चाहिए.

जनता को मूर्ख और खुद को होशियार समझने की बेवकूफी का खामियाजा दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को निगम चुनाव की हार से उठाना पड़ा. दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को बेदखल कर दिया है. उनके द्वारा दिखाया गया विकल्प की राजनीति का सब्जबाग ज्यादा दिन तक नहीं टिक सका. दो-तीन सालों में उसकी भ्रूणहत्या हो गई. दिल्ली की सत्तासीन आम आदमी पार्टी के लिए यह हार भविष्य के लिए एक गंभीर संदेश है.

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दरअसल केजरीवाल शायद भूल गए हैं कि राजनीति मुद्दों से चलती है झूठे वायदों से नहीं. निगम के चुनाव में दिल्ली की जनता ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाने का कारण भी केजरीवाल ही थे. जनता उनसे बहुत खफा है. जो परिणाम आए हैं उनसे अचंभित होने की जरूरत नहीं है. वही हुआ जिसकी सभी को उम्मीद थी. दिल्ली में जब से अरविंद केजरीवाल की सरकार आई है तभी से दिल्लीवासियों के भीतर निरापद के भाव हैं. दिल्ली कूड़े के ढ़ेर में तब्दील हो गई है, चारो तरफ गंदगी की भरमार है. आप पार्टी के अलावा अन्य दूसरी विपक्षी पार्टियों के लिए भी फिर से खतरे की घंटी बज गई है. एमसीडी चुनाव भी मोदी लहर के बूते जीता गया है. यानी मोदी लहर बरकरार है.

पूर्वी दिल्ली, नार्थ व साउथ नगर निगम के तीनों निकायों पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा हो गया है. सबसे ज्यादा नुकसान आम आदमी पार्टी को हुआ है. जीत के लिए उतरी आप तीसरे स्थान पर है, कांग्रेस दूसरे स्थान पर बनी है. दिल्ली के लोगों ने 2015 में अपार उम्मीदों के साथ केजरीवाल को प्रचंड बहुमत देकर बदलाव की राजनीति का सपना देखा था. लेकिन दो वर्ष के भीतर ही जनता का उनसे मोहभंग हो गया. जनता के अलावा उनके पार्टी कें संस्थापक सदस्य भी उनके साथ नहीं टिक सके. एक-एक करके सभी अलग हो गए. इस समय जो उनके इर्द-गिर्द जमला घूमता है वह स्वार्थियों की टोली महज है. वह किसी न किसी रूप में अपना स्वार्थ पूरा करना चाहते हैं.

जीत के लिए दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने दिल्ली की जनता को शत-शत नमन करते हुए कहा कि यह जीत सुकमा में शहीद हुए सभी सीआरपीएफ जवानों की समर्पित की जाती है. उन्होंने सभी कार्यकर्ताओं से अनुरोध किया है कि सुकमा में जवानों की मौत को ध्यान में रखते हुए किसी भी तरह का जश्न न मनाया जाए.

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कांग्रेस की तरफ से आए पहले बयान में दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित कहती हैं कि इस परिणाम से चुनाव आयोग और सरकार को दुविधा दूर करनी चाहिए, पर जो हारता है वो कहता है कि ईवीएम खराब है, जो जीतता है वो कहता है ठीक है. वहीं सत्ताधारी पार्टी के वरिष्ठ नेता और मंत्री गोपाल राय ने फिर से हार का ठीकरा ईवीएम के सिर फोड़ दिया है. कोई उनको यह बताए कि उनकी यह करारी हार, विकल्प की राजनीति के सब्जबाग की मौत व भद्दी जुबान विभिन्न सरकारी संस्थाओं का अपमान और व्यक्ति विशेष के निरादर का नतीजा है.

इन चुनावों को आम आदमी पार्टी की दो साल पुरानी अरविंद केजरीवाल सरकार के रिपोर्ट कार्ड के रूप में देखा जा रहा है. मतलब साफ है आगे का रास्ता अब केजरीवाल के लिए कठिन हो गया है. साख कैसे बचे इस बात की चिंता उन्हें सताने लगी है. इन चुनावों में सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस पार्टी को हुआ है. डूबते को तिनके का सहारा. चुनाव से पहले कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे, जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट सा गया था. लेकिन उनके जाने की सहानुभूति पार्टी को मिली. कांग्रेस को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिली हैं. जो पार्टी शून्य पर हो, उसे इतनी सीटें मिले, इसे भी चमत्कार ही कहेंगे.

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