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Updated: 10 मार्च, 2017 07:31 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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यूपी चुनाव खत्म होने के बाद सबसे पहला और सबसे बड़ा बयान अखिलेश यादव का आया है. वे मायावती को सत्ता में साझीदार बनाने की बात कर रहे हैं. ऐसा करके वे क्या साबित करना चाहते हैं ? और मायावती उनके साथ क्‍यों आएंगी ?

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1. अखिलेश के बयान से एक बात तो साफ है कि कहीं न कहीं वे भी मानकर चल रहे हैं कि सपा-कांग्रेस को सत्ता की कुर्सी तक अकेले पहुंचने में कसर रह जाएगी. ऐसा इसलिए कि नतीजों से पहले सियासी रेस में दौड़ रहा नेता समझौते की बात नहीं करता है. 

2. अखिलेश आगे होकर मायावती को न्योता दे रहे हैं ताकि यह साबित हो सके कि वे यदि उन्हें बुआ कहते हैं तो मानते भी वैसे ही हैं. सियासी रिश्तों में भरोसे का कुछ तो ग्राउंड होना ही चाहिए. उम्र में छोटा होते हुए यह बड़प्पन दिखाने का मौका भी है. 

3. मायावती को न्योता देकर अखिलेश यादव एक संदेश मुसलमानों को भी देना चाहते हैं कि वे बीजेपी को रोकने के लिए राज्य में अपनी चिर विरोधी बसपा से भी गठबंधन करने को तैयार हैं. यानी सूबे में गैर-भाजपाई गठबंधन के अगुवा बनने की कवायद है यह. 

4. मायावती ने शुरुआत में तो अखिलेश के साथ गठबंधन से इनकार किया है. लेकिन उनके लिए ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं होगा. 1993 में मायावती के राजनीतिक गुरु कांशीराम और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव मिल कर प्रदेश में सरकार बना चुके हैं. 

mulayam_and_kansiram_031017072805.jpeg1993 में साझा सरकार चलाने वाले कांशीराम और मुलायम की यह दुर्लभ तस्‍वीर सोशल मीडिया पर शेयर हुई.

5. मायावती का इनकार तात्कालिक इसलिए भी कहा जा रहा है ताकि उन्हें सत्ता का लालची न माना जाए. वे इसलिए भी इनकार कर सकती हैं ताकि जब गठबंधन पर गंभीरता से बात हो तो वे खुद को मुख्यमंत्री पद की दावेदार बता सकें. 

6. कुछ विशेषज्ञ यह भी कयास लगा रहे हैं कि यदि अभी मायावती ऐसे संकेत दे दें कि वे सपा के साथ गठबंधन की इच्छुक हैं तो हो सकता है कि उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में तेजी आ जाए. 

7. अखिलेश यादव का यह दांव उन्हें 2019 में बड़ा कद भी दिलवा सकता है, जहां लोक सभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ होने वाले किसी महागठबंधन में वे खुद को बड़े नेता के रूप में प्रोजेक्ट कर सकें. 

8. अखिलेश यादव का मायावती की ओर यह झुकाव कांग्रेस के कद को थोड़ा छांटने की कवायद के रूप में भी देखा जा सकता है, ताकि उन्हें यह गुमान न रहे कि समाजवादी पार्टी राज्य में कांग्रेस के किसी भरोसे पर टिकी है. 

9. समाजवादी पार्टी एक बड़े घमासान के दौर से गुजरी है. अखिलेश यादव उसके सबसे ताजा चेहरे हैं. यदि विधानसभा चुनाव के नतीजे उनके मन मुताबिक नहीं आते हैं तो सबसे बड़ी चुनौती खुद के राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की होगी. क्योंकि शिवपाल यादव एंड कंपनी तो उन्हें कोसने और पूरी तरह कसूरवार ठहराने के लिए तैयार बैठी है. 

10. आखिर में सबसे बड़ी बात... आशंका जताई जा रही है कि यदि सपा सौ - सवा सौ सीटों के आसपास सिमट जाती है तो सपा विधायकों का एक धड़ा अलग होकर शिवपाल यादव से जा मिलेगा. हो सकता है वो गुट बीजेपी के साथ गठबंधन कर ले.

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लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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