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Updated: 19 अप्रिल, 2017 02:33 PM
शिवानन्द द्विवेदी
शिवानन्द द्विवेदी
  @shiva.sahar
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भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक इसबार देश के पूरब छोर पर स्थित ओडिसा के भुवनेश्वर में हुई. इस कार्यकारिणी बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि अभी यह भाजपा का स्वर्ण काल नहीं है. उनका आशय यह था देश के हर राज्य में हर स्तर तक भाजपा की सरकार बनाना उनका लक्ष्य है. अभी की स्थिति में अगर देखें तो निर्विवाद रूप से भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है. देश के सत्रह राज्यों में भाजपा और इसके गठबंधन की सरकारें हैं. तेरह राज्यों में अकेले भाजपा की सरकार है. देश के 58 फीसद भूभाग पर भाजपा की सत्ता है. इतने के बावजूद भी अगर भाजपा अध्यक्ष कहते हैं कि यह भाजपा का स्वर्णकाल नहीं है, तो उनके द्वारा निर्धारित लक्ष्य का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.

इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा को इन तमाम उपलब्धियों के करीब ले जाने में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रिय छवि वाले नेतृत्व और अमित शाह के कुशल संगठन की बड़ी भूमिका है. लेकिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में अमित शाह द्वारा जताई गयी मंशा साफ़ संकेत करती है कि अभी वे इतने भर से संतुष्ट नहीं है बल्कि भाजपा के विस्तार के लिए वो परिश्रम की पराकाष्ठा तक जाएंगे. खैर, वर्तमान भाजपा को समझने के लिए हमे अतीत की भाजपा पर एक संक्षिप्त नजर डालनी होगी. भाजपा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी के लिए पूरब के छोर पर स्थित ओड़िसा को चुना. बीस साल बाद भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ओड़िसा में हुई है. इन बीस वर्षों में भारतीय राजनीति में बहुत कुछ बदल चुका है. सियासत के सारे समीकरण नए ढंग से परिभाषित होने लगे हैं.

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भाजपा के प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन में अटल बिहारी वाजपेयी का कथन ‘अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा’ अब सच दिखने लगा है. हालांकि जब अटल जी यह भाषण दे रहे थे तब भाजपा केंद्र की सत्ता में दूर-दूर तक कहीं नहीं थी. भाजपा को अपनी स्थापना के बाद पहली बार सत्ता में आने के लिए सोलह वर्ष का इन्तजार करना पड़ा था. बीस वर्ष पहले वर्ष 1996 में में भाजपा की गठबंधन सरकार बन गयी थी. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे. लेकिन वह सरकार 13 दिन में ही गिर गयी थी. वर्ष 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो वह सरकार 13 महीने ही चल पाई थी और महज एक वोट से गिर गयी. अपना इस्तीफा देने से पूर्व लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक भाषण दिया था. उस भाषण में उन्होंने देश की जनता का जनादेश हासिल करने का विश्वास जताया था और उनका विश्वास सही साबित हुआ. वर्ष 1999 के आम चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन जीत कर आई और अटल बिहारी वाजपेयी फिर प्रधानमंत्री बने. उस समय बहुत लोगों को ऐसा लगा होगा कि अटल बिहारी वाजपेयी का 1980 में दिया गया भाषण सच साबित हो चुका है, लेकिन वह प्रण अभी पूर्ण नहीं था जिसमे उन्होंने कहा था कि “अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा.’’ सत्ता में होने के बावजूद भी वह भाजपा का स्वर्णकाल नहीं था.

भारतीय राजनीति में वह भाजपा के लिए पहली पीढ़ी के नेताओं का दौर था जो पंडित दीन दयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानव दर्शन को अपनी वैचारिक थाती के रूप में लेकर आगे बढ़ रहे थे. लेकिन वर्ष 2004 में जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार जाती रही और कांग्रेसनीत यूपीए सरकार बनी तब एकबार फिर कमल का सूरज अस्त की ओर बढ़ता नजर आया, अंधेरा घिरने लगा था. बेशक उस दौर में भाजपा की सरकार बनी थी लेकिन उसके दायरे सिमटे हुए थे. पूरब में बंगाल, ओड़िसा और पूर्वोत्तर के राज्यों सहित दक्षिण भारत में भाजपा की स्थिति बहुत सुदृढ़ नहीं हो सकी थी. जनाधार हासिल करने, संगठन खड़ा करने के स्तर पर बहुत कुछ करना शेष रह गया था. पश्चिम में गुजरात को भाजपा की झोली में डालने और उसे सतत बरकरार रखने का श्रेय नरेंद्र मोदी को ही जाता है. भाजपा के बुनियादी जनाधार वाले उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी भाजपा की स्थिति बेहतर होने की बजाय कमजोर होने लगी थी.  

दस वर्ष के वनवास के बाद वर्ष 2014 भारतीय जनता पार्टी के लिए संजीवनी लेकर आया और लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का जादू चला और उत्तर प्रदेश में अमित शाह ने करिश्माई परिणाम दिए. लिहाजा आज फिर भाजपा सत्ता में है. भाजपा का दारोमोदार दूसरी पीढ़ी के नेताओं के हाथ में है. देश में प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार चल रही है. ऐसे में अगर वर्तमान नेतृत्व अभी इतने से भी संतुष्ट नहीं है तो इसका सा मतलब है कि उसे भाजपा के भविष्य को लेकर अभी बहुत कुछ करना है. अमित शाह और नरेंद्र मोदी की कार्य प्रणाली को जो लोग करीब से जानते हैं, वो इनके परिश्रम क्षमता को अवश्य जानते होंगे. दूरगामी सोच और कठोर अनुशासन इनके कार्य पद्धति का हिस्सा है. दोनों ही एक सामान्य कार्यकर्ता से शुरू करके सर्वोच्चता तक पहुंचे हैं. संगठन की बुनियादी समझ के मामले में दोनों ही निपुण हैं.

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आज अगर अमित शाह कार्यकर्ताओं को यह सन्देश देने की कोशिश कर रहे हैं कि यह अभी भाजपा का सर्वश्रेष्ठ नहीं है, तो उनकी नजर उन राज्यों पर है जहां भाजपा को मजबूत करना है और सरकार में लाना है. गौरतलब है कि अमित शाह ने यह बयान ओड़िसा में दिया है. ओडिसा और पश्चिम बंगाल सीमावर्ती राज्य हैं. ओडिसा में अभी हाल में हुए एक लोकल निकाय चुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली है तो वहीँ पश्चिम बंगाल के कांठी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी को पछाड़कर दूसरे पायदान पर जगह बना ली है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांठी सीट पर भाजपा को 9 फीसद वोट मिले थे जो अब 30 फीसद है. यह भाजपा के लिए उत्साह जनक परिणाम है. ओड़िसा में विधानसभा चुनाव के लिहाज से भाजपा की आशाएं प्रबल हैं.

अगर आगामी चुनावों में भाजपा ओड़िसा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में अच्छा कर पाती है तो यह भाजपा को उसी स्वर्णकाल की तरफ ले जाएगा, जिस लक्ष्य को अमित शाह साधे हुए बैठे हैं. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने तुष्टिकरण की जो छिछली सियासत की हदें पार की हैं, उससे तो भाजपा एक बेहतर विकल्प के रूप में वहां नजर आ रही है. ओड़िसा में भी अब भाजपा को ही लोग विकल्प के रूप में स्वीकार करने लगे हैं, ऐसा पिछले लोकल स्तर के चुनावों से स्पष्ट हो रहा है. भाजपा की नजर दक्षिण राज्यों में भी है. कर्नाटक में तो भाजपा 2008 में आ चुकी है लेकिन केरल और तमिलनाडू अभी भी भाजपा की पहुंच से बाहर हैं. हालांकि केरल में भाजपा के मत फीसद में जिस ढंग से इजाफा हो रहा है और वहां कम्युनिस्टों द्वारा भाजपा एवं संघ कार्यकर्ताओं पर बर्बर हिंसा की जा रही है, वह भाजपा के मजबूत होते जनाधार का द्योतक है.

अमित शाह एक कुशल और दूरगामी सोच रखने वाले संगठनकर्ता हैं. नरेंद्र मोदी एक परफॉर्मर प्रधानमंत्री के रूप में अपनी नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने और देश की जनता से नियमित संवाद करने वाले सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बन चुके हैं. ऐसे मोदी और शाह की जोड़ी अगर उन राज्यों में भी भाजपा की भगवा पताका फहरा दे तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी. हमें नहीं भूलना चाहिए कि इसी जोड़ी ने 2014 के बाद उन जगहों पर भाजपा के जनाधार को मजबूत किया है, जहाँ कोई कल्पना भी नहीं करता था. राजनीतिक पंडितों के लिए जो अकल्पनीय है, वो मोदी और शाह के लक्ष्य बिंदु हैं. और, उन लक्ष्यों को लगातार भाजपा हासिल भी करती जा रही है. आमतौर पर किसी भी सरकार के तीन साल बाद लोकप्रियता कम होती है लेकिन मोदी इस मामले में भी परंपरागत धारणाओं को धता साबित करते हुए आगे बढ़ रहे हैं. ऐसे में अमित शाह अगर कहते हैं कि यह भाजपा का अभी स्वर्णकाल नहीं है तो उनके लक्ष्यों का सहज अंदाजा लगाते हुए यह मान लेना चाहिए कि अभी भाजपा और मजबूत होने वाली है. भगवा पताका का विस्तार अभी और बड़ा होने वाला है.

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लेखक

शिवानन्द द्विवेदी शिवानन्द द्विवेदी @shiva.sahar

लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउन्डेशन में रिसर्च फेलो हैं एवं नेशनलिस्ट ऑनलाइन डॉट कॉम के संपादक हैं.

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