अखिलेश को कांग्रेस से गठबंधन से गुरेज नहीं: आखिर क्या हैं मजबूरियां?
आखिर अब ऐसी कौन सी मजबूरियां हैं जिसके कारण समाजवादी पार्टी को गठबंधन के लिए सोचने पर मजबूर कर रही हैं?
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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश ने एक बार फिर कांग्रेस के साथ गठबंधन के संकेत दिए हैं. यूपी सीएम ने कहा कि अगर कांग्रेस तथा सपा मिलकर चुनाव लड़ें तो गठबंधन 403 सीटों में से 300 से अधिक पर जीत दिला सकता है.
हालांकि अखिलेश ने सुझाव दिया कि अगर कांग्रेस गठबंधन चाहती है तो उसे यह भी स्वीकार करना होगा कि वह कम सीटों पर चुनाव लड़े. अखिलेश ने कहा कि केवल 'नफा-नुकसान' सोचने से यूपी में गठबंधन नहीं चल सकेगा.
'नफा-नुकसान' सोचने से यूपी में गठबंधन नहीं चल सकेगा' |
इससे पहले खाट यात्राओं के दौरान राहुल गांधी द्वारा ‘अखिलेश अच्छा लड़का है’ कहे जाने और फिर कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के साथ मुलाकात ने इन चर्चाओं को खूब हवा दी है.
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इससे पहले यूपी में कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर मुलायम और अखिलेश, दोनों से ही मुलाकात भी कर चुके हैं.
मुलायम कर चुके हैं चुनाव पूर्व गठबंधन से इनकार
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव पिछले महीने विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी के साथ गठबंधन करने से इनकार कर चुके हैं. उन्होंने कहा था कि यदि कोई पार्टी सपा में विलय चाहती है तो उसका स्वागत है. इसके अलावा बीते सात नवंबर को अखिलेश यादव ने भी गठबंधन के बारे में फैसला नेताजी पर छोड़ने की बात कही थी.
अखिलेश गठबंधन करने को क्यों मजबूर?
सवाल यह उठता है कि आखिर अब ऐसी कौन सी मजबूरियां हैं जिसके कारण समाजवादी पार्टी को गठबंधन के लिए सोचने पर मजबूर कर रही है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के बाद शायद अखिलेश यादव को ये अहसास हो चुका है कि जनता भारतीय जनता पार्टी को आने वाली विधान सभा चुनाव में सपोर्ट कर सकती है. जनता को नोटबंदी के फैसले के बाद मुश्किल जरूर हो रही है लेकिन उसका सपोर्ट सरकार को मिल रहा है क्योंकि कहीं न कहीं जनता ये सोच रही है कि ये कदम भ्रष्ट्राचार को रोकने में कामयाब होगा.
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भाजपा और नरेंद्र मोदी के विकास के नारे पर अखिलेश यादव का विकास भारी पड़ता दिख रहा था लेकिन फिर अचानक से यादव परिवार की अंदरूनी लड़ाई बुरी तरह से सतह पर आ गई. अंदरूनी खींचतान ने चुनाव से ठीक पहले पार्टी कार्यकर्ताओं और वोटरों को दुविधा में डाल दिया. बीते तीन महीनों के दौरान मुलायम सिंह यादव के परिवार में हर दिन चले शह-मात के खेल ने पार्टी के सबसे अहम वोटबैंक मुसलमानों को भी नाराज कर दिया.
आज की तारीख में समाजवादी पार्टी को सबसे बड़ा खतरा इसी बात का सता रहा है कि कहीं मुसलमान वोट उससे छिटक न जाएं. इस कमी को पूरा करने के लिए शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव ने कौमी एकता दल के सपा में विलय को मंजूरी दी, जबकि अखिलेश यादव लगातार इसका विरोध कर रहे थे.
कांग्रेस के साथ पुराने रिश्ते
कांग्रेस के साथ उसके रिश्ते भी बहुत खुले हुए हैं. उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में वो राहुल गांधी या सोनिया गांधी के खिलाफ अपना उम्मीदवार कभी नही उतारती.
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कांग्रेस को भी सहारे की जरूरत
कांग्रेस पार्टी को भी गठबंधन का बड़ा झटका 2002 के विधानसभा चुनाव में लग चुका है. तब कांग्रेस ने बसपा के साथ गठजोड़ कर चुनाव लड़ा था लेकिन उसे सिर्फ 25 सीटें मिलीं थी. बसपा के साथ गठजोड़ का भयंकर खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा था. बसपा का वोटर तो कांग्रेस के साथ नहीं आया था, लेकिन उस चुनाव में कांग्रेस का जो बचा खुचा वोट बैंक था उसमें भी बसपा ने गहरी सेंध लगा दी थी. दलित वोट कभी कांग्रेस का जनाधार होता था वह पूरी तरह से कांग्रेस के हाथ से खिसक कर बसपा के पाले में चला गया था.
कांग्रेस में एक सोच यह भी है कि कांग्रेस के लिए यूपी का 2017 का चुनाव जितना महत्वपूर्ण है, उससे कहीं अधिक महत्व उसके लिए अगले लोकसभा चुनाव का है. इसलिए जो भी गठबन्धन होगा वह इसी बात को ध्यान में रखकर करना चाहेगा.
हालांकि जानकारों की राय है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन की हालत में सपा को कोई नुकसान भले न हो लेकिन कोई बड़ा फायदा होता भी नहीं दिख रहा है.
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