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Updated: 06 दिसम्बर, 2016 07:59 PM
रीमा पाराशर
रीमा पाराशर
  @reema.parashar.315
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संसद के इतिहास में ये मौका कम ही आया है जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री के निधन पर श्रद्धांजलि के बाद कार्रवाई को स्थगित कर दिया गया, लेकिन अम्मा यानी एआइएडीएमके प्रमुख जयललिता के लिए परम्परा से हटकर शोक जताया गया. ये हुआ भी केंद्र सरकार की सिफारिश पर. कुछ सांसद दबी जुबान से एक दूसरे से पूछ बैठे कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी चीफ मुफ़्ती मोहम्मद सईद के निधन पर ऐसा क्यों नहीं हुआ. इन सवालों का जवाब सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने दिया ये कहकर कि "अम्मा का कद बहुत ऊँचा था ये सम्मान उसी कद को है."

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 जयललिता को अंतिम बिदाई देते नरेंद्र मोदी

पीडीपी जो कि सरकार की सहयोगी है और AIADMK सिर्फ एक ऐसी पार्टी जिसके साथ नरेंद्र मोदी के साथ रिश्ते अच्छे हैं. लेकिन फर्क भविष्य की राजनीति के गर्त में छिपा है जहाँ बीजेपी खुद को देखना चाहती है और उस भूमिका तक पहुचने में पार्टी को उम्मीद है तो सिर्फ AIADMK से.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जयललिता के पार्थिव शरीर के पास उनकी खास सहयोगी शशिकला के सर पर हाथ रखकर ढांढस बढ़ाना कई संकेत देता है. ये बात साफ़ है कि आने वाले दिनों में शशिकला AIADMK में सबसे अहम किरदार निभाने वाली हैं. ये बात किसी से छिपी नहीं की अस्पताल में जब जया ज़िन्दगी और मौत से जूझ रही थीं और चर्चा इस बात पर जारी थी कि आखिर उनकी विरासत को आगे किसके हाथों में सौंपा जाए तो पार्टी और काडर की जुबां पर एक ही नाम था शशिकला. खुद पर चल रहे अदालती मुकदमों को देखते हुए केंद्र सरकार से फिलहाल अच्छे संबंध रखना शशिकला की भी ज़रूरत है और राज्य से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में AIADMK का साथ बीजेपी की अपनी ज़रूरत है.

अम्मा के साथ उमड़े जनसमर्थन को भांपते हुए केंद्र सरकार ने हॉस्पिटल से लेकर अंतिम संस्कार तक पूरा रोल निभाया. केंद्र का नुमाइंदा बनाकर केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू को चेन्नई भेजा और वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री राज्य में उपजने वाले संवैधानिक संकट के बारे में जयललिता के सहयोगियों को सलाह देते रहे. राष्ट्रीय शोक का एलान हुआ और तमाम मंत्री अम्मा और मोदी के सौहार्दपूर्ण रिश्तों का बखान करने लगे.

अब बीजेपी को ना सिर्फ अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए AIADMK के समर्थन की ज़रूरत है बल्कि कांग्रेस और ममता बनर्जी समर्थित विपक्ष के खिलाफ भी, इसलिए आने वाले समय में पार्टी के रणनीतिकार इस कोशिश में रहेंगे की किसी भी तरह अम्मा के जाने से AIADMK टूट के कगार पर पहुंचकर विपक्ष को फायदा ना पहुंचाए. बीजेपी को फायदा इस बात का है कि विचारों के मामले पर दो ध्रुवों में बटी तमिलनाडु की राजनीति में दक्षिणपंथी विचारों पर वो AIADMK के साथ खड़ी है. हालाँकि, उसके पास ना तो राज्य में अम्मा या एमजीआर जैसा कोई चमकता सितारा है और ना ही डीएमके जैसा कास्ट कॉम्बिनेशन. इस खालीपन को भरना ही पार्टी के लिए चुनौती है.

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 शशिकला और नरेंद्र मोदी- फाइल फोटो

ये वही बीजेपी है जिसके नेता कभी शंकराचार्य की गिरफ्तारी से आहत होकर जयललिता के खिलाफ धरने पर बैठे और ये अम्मा की वही पार्टी है जिसने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिरने पर सोनिया गांधी से नजदीकी साधी थी. लेकिन गेम बदला नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर जिनके रिश्ते अम्मा के साथ राजनितिक तौर पर मधुर रहे. सत्ता में आते ही मोदी ने सहयोगी ना होने के बावजूद AIADMK के नेता को लोकसभा में उप सभापति बनवाया तो जया ने विरोध के बावजूद जीएसटी बिल पर सरकार को असमंजस में ना डालते हुए वाकआउट कर बिल पास करवा दिया.

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फिलहाल राज्य के नए मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम को पार्टी पर अपनी पकड़ बनानी है और शशिकला को अम्मा की गैरमौजूदगी में खुद को साबित करना है. इन दोनों के बीच की प्रतिस्पर्धा ही बीजेपी को आने वाले दिनों में राजनितिक फायदा पहुंचाएगी. ज़ाहिर है उसकी कोशिश किसी ना किसी तरह दोनों के साथ मधुरता बनाने की होगी तभी अम्मा के लिए पनपी सहानुभूती की नमी पर वो अपनी सियासी फसल खड़ी कर पाएगी.

लेखक

रीमा पाराशर रीमा पाराशर @reema.parashar.315

लेखिका आज तक में पत्रकार हैं.

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