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Updated: 12 अप्रिल, 2016 05:26 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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भारत माता की जय बोलिए और अपनी देशभक्ति साबित कीजिए. ऐसा आजकल कुछ लोगों का मानना है. हालांकि उनके इस दावे के बहुत पहले से भारत माता की जय प्रचलन में रहा है. जब गुलामी की जंजीर तोड़नी थी या देश पर पड़ोसी मुल्क का आक्रमण हुआ तो भारत माता की जय के नारे से मौत का भय निकलकर बाहर चला गया और हजारों लोगों ने अपने देश की रक्षा के लिए प्राणों की आहूति दे दी. इन मौकों पर जिन परिवारों ने अपने लाड़लों को खो दिया उनके भी दिल से राम नाम सत्य है की जगह फक्र के साथ भारत माता की जय निकला. भारत माता की जय का नारा बहुत ही साधारण शब्दों को मिला कर बनाया गया है. जिसका साफ मतलब है कि यह देश हमारी मां है और उसकी जयकार हो.

अब अचानक कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि देशभक्ति साबित करने के लिए यह जरूरी हो गया है कि देश का हर नागरिक भारत माता की जय बोले. भारत माता की जय बोलने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन महज यह दावा करना कि यह बोलने पर ही देशभक्ति साबित होगी- से राजनीति की बड़ी बू आ रही है. लिहाजा कुछ साबित करने के लिए यह बोलने से हर्ज है.

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राष्ट्रीय ध्वज लहराते बच्चे

अब गौर कीजिए, बीते कुछ दिनों में भारत माता की जय के नारे पर मैन्यूफैक्चर हो रही राजनीति ने क्या दिखा दिया. देश में हिंदू और मुसलमान को एक दूसरे के सामने कर देश को उनके बीच में बैठा दिया है.

यह नारा बुलंद कीजिए और देश के प्रति अपने समर्पण को जाहिर कीजिए नहीं तो देशद्रोह के आरोप के साथ-साथ आप इस देश से निकाल दिए जाएंगे. इसी राजनीति को आगे बढ़ाते हुए यह भी दावा हो गया कि गला भी काट दिया जाए तो यह नारा बुलंद नहीं किया जाएगा. इस बीच इस नारे पर फतवा भी जारी कर दिया गया और यह नारा इस्लाम विरोधी करार हो गया है.

कुल मिलाकर कह सकते हैं कि जो नारा मजहब और जाति से ऊपर उठकर राष्ट्रभक्ति का प्रतीक था और वैसा ही रहना चाहिए था उसे धर्म ध्वज बना दिया गया है. नहीं तो भला कैसे देश की भक्ति इस्लाम के विरोध में करार दी जा सकती थी. क्या हमारे अपने राज्य जम्मू-कश्मीर में मौज कशीर का नारा नहीं लगता? मौज कशीर यानी कश्मीर की जय. क्या मौज कशीर भी इस्लाम विरोधी है? शून्य समेत जिस अंक पद्धति का हम इस्तेमाल करते हैं उसे यूरोप में अरबी पद्धति कहा जाता है और खुद अरब में उसे हिंदसा कहते हैं क्योंकि अरब ने उसे हिंदुस्तान से लिया था. अब क्या कोई यह फतवा भी देगा कि अरबी अंक पद्धति भी गैर-इस्लामिक है? ऐसे वक्त में जब पूरी पश्चिमी दुनिया कट्टरपंथ और आतंकवाद के चलते इस्लामोफोबिया से ग्रस्त है, भारत एक मात्र देश है जहां हिंदू और मुसलमान एक साथ बिना किसी फोबिया के रहने का सलीका जानते हैं. पूरी धरती पर भारत एक मात्र ऐसी जगह है जहां मुसलमानों ने सैकड़ों वर्ष तक शासन किया फिर भी हिन्दू धर्म की परिधि कभी संकुचित अथवा सिकुड़ी नहीं.

लिहाजा आज अगर ये कोशिश की जा रही है कि राष्ट्रभक्ति के किसी नारे को धर्म विशेष का ध्वज बनाकर इस देश में हिंदू और मुसलमान को बांट दिया जाए तो ऐसे जयकार से हर्ज होना ही चाहिए. क्योंकि बांटने की यह कोशिश बस एक नारे तक सीमित नहीं रहेगी. क्योंकि हर नारे के बाद किसी न किसी फतवे का आना भी तय है. और हर फतवे के बाद राष्ट्रभक्ति के नए आधार को भी लाने की कोशिश की जाएगी जिसका मकसद बस इस देश में हिंदू और मुसलमान को बांटना होगा. ऐसी ही एक कोशिश के तहत विवादित योग गुरू बाबा रामदेव भी राष्ट्रभक्ति मापने का नया आधार दे रहे हैं. उनका दावा है कि उनकी कंपनी पतंजलि के निर्मित प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ता भी देशभक्त कहे जाएंगे.

गौरतलब है कि भारतीय संविधान में देशभक्ति को प्रमोट करने और एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए मौलिक कर्तव्यों का पूरा लेखा-जोखा दिया है. हालांकि बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने इन मौलिक कर्तव्यों को कानूनी तौर पर लागू नहीं किया लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत ने इसे सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य बताया है. संविधान के मुताबिक देश के नागरिकों से अपेक्षा है कि वह राष्ट्रहित में इन कर्तव्यों का पालन जरूर करेंगे. अब राष्ट्रभक्ति मापने के नित नए आधार को देखते हुए लगता है जरूरत है संविधान में दिए मौलिक कर्तव्यों को पढ़ा जाए, समीक्षा की जाए और जरूरत पड़े तो नए कर्तव्यों के जोड़ा जाए. आखिर हर पांच साल पर नई विधायिका का चुनाव भी तो इसीलिए किया जाता है कि नए कानून बनाए जाएं और पुराने कानून को हटा दिया जाए जिससे देश की एकता और अखंडता को कायम रखा जा सके.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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