New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 28 अगस्त, 2017 08:26 PM
राहुल लाल
राहुल लाल
  @rahul.lal.3110
  • Total Shares

भारत-चीन सीमा विवाद का केंद्र बिंदु रहे "डोकलाम" मामले का  कूटनीतिक रूप से अंत हो गया. चीन पर डोकलाम मामले को लेकर चौतरफा वैश्विक दबाव था. पिछले दो माह से चल रहे डोकलाम विवाद को सुलझाते हुए भारत और चीन की सेना ने डोकलाम से पीछे हटने का फैसला लिया है. सोमवार को विदेश मंत्रालय की ओर से से बयान में कहा गया है कि दोनों देशों ने इस मुद्दे पर लगातार बात की है, जिसके बाद इस पर फैसला लिया गया है. इसमें कहा गया है कि विवाद के बाद भी पिछले कई दिनों से दोनों देशों के बीच इस मुद्दे को सुलझाने पर बातचीत चल रही थी. दोनों देशों की सेना अब धीरे-धीरे अपनी सेना हटाएंगी.

चीनी अपेक्षाओं के विपरीत भारत डोकलाम में लगातार डटे रहा. साथ ही अनावश्यक बयानबाजी से दूर रहते हुए शांतिपूर्ण ढंग से कूटनीतिक रुप से गतिरोध को सुलझाने का परिपक्व प्रयास किया. वहीं इस संपूर्ण प्रकरण में चीन के विदेश मंत्रालय द्वारा अनियंत्रित टिप्णियां की गईं. जिसके फलस्वरुप घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर चीन की छवि को काफी नुकसान पहुंचा. जबकि भारतीय कूटनीति को पश्चिम सहित वैश्विक समर्थन मिला.

xi jinping, chinaआखिर क्यों वापस हट गया चीन

अब प्रश्न उठता है कि इस मामले पर लगातार अड़ियल रुख प्रकट करने वाला चीन आखिर कूटनीतिक मार्ग से समाधान के लिए क्यों तैयार हुआ?? वह भी तब जब चीन भारत को लगातार धमकी दे रहा था कि भारत अपनी सेना बिना किसी शर्त के हटाए और सेना के हटने पर ही वार्ता होगी.

जानते हैं वो 10 कारण-

1- डोकलाम मामले को गर्म कर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन की आंतरिक कमजोरियों को छुपाकर नवंबर में कम्युनिस्ट पार्टी के कांग्रेस में फिर से अगले कालावधि का राष्ट्रपति पद पाना चाहते हैं. एक तरह से शी जिनपिंग डोकलाम मामले का लाभ लेकर कम्युनिस्ट पार्टी में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते थे, परंतु भारतीय सेना के अटल इरादों ने शी जिनपिंग के उपरोक्त योजना को ध्वस्त कर दिया था. इस मामले पर और लंबा खींचने पर चीन के घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय छवि को और नुकसान ही पहुंचना था.

2- चीन बार-बार युद्ध की धमकी दे रहा था. परंतु डोकलाम में भारत को महत्वपूर्ण सामरिक बढ़त हासिल है. सामरिक मजबूत स्थिति के कारण डोकलाम में भारतीय पक्ष, चीनी पक्ष से कम से कम 9 गुणा मजबूत है. अर्थात् भारत के एक सैनिक के समतुल्य चीन को 9 सैनिक खड़े करने होंगे. ऐसी स्थिति में डोकलाम में भारत हिला पाना चीन के लिए कठिन होगा.

3- भारत और चीन की भौगोलिक स्थिति भी भारत के पक्ष में है. जंग होने पर चीनी विमानों को तिब्बत के पठार से उड़ान भरनी होगी. ऐसे में न तो चीनी विमानों में ज्यादा विस्फोटक लादे जा सकते हैं और न ही ज्यादा ईंधन भरा जा सकता है. चीनी वायुसेना विमानों में हवा में ईंधन भरने में भी उतना सक्षम नहीं है. युद्ध की स्थिति में चीन के जे-11 और जे-10 विमान चोंग डू सैन्य क्षेत्र से उड़ान भरेंगे. वहीं भारत ने असम के तेजपुर में सुखोई 30 का ठोस बेस बनाया है. युद्ध की स्थिति में विमान यहां से तेजी से उड़ान भर सकेंगे.

sukhoi airbase

4- आज उत्तर पूर्व में हमारी तीन सैन्य कोर यानी तीन लाख जवान तैनात हैं. इस क्षेत्र में कभी कंपनियां हुआ करती थीं, लेकिन आज वहां ब्रिगेड तैनात है. ज्ञात हो एक कंपनी में 100 जवान होते हैं, जबकि ब्रिगेड में 3000 हजार जवान होते हैं. इससे पूर्वोतर में सामान्य स्थिति में भी भारत के भारी भरकम सैन्य उपस्थिति को समझा जा सकता है. अगर वहां थोड़ी भी सैन्य संघर्ष की स्थिति आती है तो चीन को भारत, डोकलाम से निर्णायक दूरी तक पीछे कर देगा.

5- तुलनात्मक तौर पर भारत चीन के समक्ष भले ही कमजोर लगता है, परंतु वास्तविक स्थिति ऐसी नहीं है. चीनी सेना ने वियतनाम युद्ध के बाद किसी युद्ध में भाग नहीं लिया है. जबकि भारतीय सेना सदैव पाकिस्तानी सीमा पर अघोषित युद्ध से संघर्षरत ही रहती है. विशेषकर हिमालयी सरहदों में चीन की इतनी काबिलियत नहीं है कि वह भारत का मुकाबला कर सके.

6- चीन अपने विशिष्ट दबाव की रणनीति के अंतर्गत अपने विस्तारवादी वर्चस्व को आगे बढ़ाता रहा है. इसके सबसे ज्वलंत उदाहरण के रुप में दक्षिण चीन सागर को देखा जा सकता है. पिछले 3 वर्षों में चीन ने बिना एक भी गोली चलाए, दक्षिण चीन सागर के लगभग दो तिहाई भाग पर कब्जा कर लिया है. इसी तरह चीन ने भारत पर भी दबाव डालने का भरपूर प्रयास किया. चीनी मुखपत्र 'ग्लोबल टाइम्स' के माध्यम से भारत को लगातार धमकी दी गई, जब इसका भी प्रभाव नहीं पड़ा तो चीनी विदेश मंत्रालय ने भी कमान संभाल ली. धमकियों को कई बार व्यापक रुप प्रदान करने के लिए संपूर्ण चीनी सीमा पर युद्ध की धमकी दी गई, लेकिन भारत द्वारा डोकलाम में सुदृढ़ तरीके से खड़े रहने से अंतत: चीनी मनोबल ही टूटता चला गया.

7- इस समय चीन न केवल डोकलाम पर अपितु दक्षिण चीन सागर में भी बुरी तरह से घिरा हुआ है. साथ ही चीन के आक्रामक विस्तारवादी रवैया से उसके अधिकांश पड़ोसी देशों के साथ भी संबंध खराब हैं. साथ ही न केवल संपूर्ण पश्चिमी देशों अपितु संपूर्ण पश्चिमी मीडिया का भी भारत को पूर्ण समर्थन रहा.

चीन ने इस संपूर्ण प्रकरण में कई बार भूटान और नेपाल जैसे छोटे पड़ोसी देशों को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया, लेकिन यह प्रयास भी विफल रहा. चीनी विदेश मंत्रालय ने तो एक बार भूटान के हवाले से बयान जारी कर दिया कि भूटान ने ही मान लिया है कि डोकलाम, भूटान का हिस्सा नहीं है. परंतु भूटान ने बाद में स्पष्ट कर दिया कि उसने इस तरह का कोई बयान नहीं दिया है. इसी तरह इस संपूर्ण मामले में नेपाल ने तटस्थ रहने की नीति अपनाई. अभी ही 5 दिवसीय भारत यात्रा पर आए नेपाली प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने भारत में स्पष्ट घोषणा कर दी कि वे अपनी जमीन का प्रयोग का प्रयोग किसी भी तरह से भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं करने देंगे. जापान ने तो डोकलाम मामले को लेकर भारत को स्पष्ट समर्थन की घोषणा ही कर दी थी.

doklam, india, china

8- इसके अतिरिक्त भारत की स्थिति हिंद महासागर में काफी मजबूत है. भारतीय नौसेना बड़ी आसानी से यूरोप, मध्यपूर्व और अफ्रीका के साथ चीन के रास्ते की नाकेबंदी कर सकती है. चीन 87% कच्चा तेल इसी रास्ते आयात करता है. आई एन एस विक्रमादित्य की अगुवाई में भारतीय नौसेना इस नाकेबंदी को और मजबूत कर सकती है.

9- भारत से 5 अरब डॉलर का कारोबार करने वाला चीन इतने बड़े बाजार को भी जोखिम में नहीं डाल सकता था. भले ही तनाव के मध्य चीनी विदेश मंत्रालय ने अपने कंपनियों को भारत में निवेश न करने की सलाह दी हो, परंतु वास्तविक स्थिति बिल्कुल भिन्न है. चीन ने पिछले वर्षों में जितना निवेश किया है, उसका 77% निवेश हाल के कुछ वर्षों में हुआ है. सरकार ने कुछ ऐसी नीतियां बनाई हैं, जिससे चीन भारत में निवेश बढ़ाने के लिए मजबूर हुआ. सरकार ने मोबाइल कंपोनेंट पर 30% तथा तैयार मोबाइल पर 10 फीसदी आयात शुल्क लगा दिया है. इससे आयात महंगा होने के कारण चीनी कंपनियां भारत में ही यूनिट लगा रही हैं. ज्ञात हो चीनी मोबाइल कंपनियों को 50% बाजार भारतीय बाजार ही है. इस विवाद के बाद भारत में चीन विरोधी भावनाएं बढ़ती जा रही थी तथा उनका मार्केट शेयर भी गिरता जा रहा था. भारत-चीन व्यापार पूर्णतः चीन के पक्ष में झुका हुआ है. यही कारण है कि इस भारी तनाव के बीच नाथूला से चीन ने भारत के मानसरोवर तीर्थयात्रियों का रास्ता तो बंद किया था, लेकिन व्यापार नहीं.

10- चीन में अगले माह सितंबर में 3-5 सितंबर ब्रिक्स सम्मेलन है. इस कारण इस सम्मेलन से पूर्व भारत और चीन के ऊपर डोकलाम दबाव को निपटाने का भारी दबाव था. ब्रिक्स का महत्वपूर्ण सदस्य रुस, जो भारत और रूस दोनों का घनिष्ठ मित्र है, ने भी चीन के ऊपर दबाव डाला कि वह भारत के साथ विवाद जल्द से जल्द सुलझाएं. इसके पूर्व जब शंघाई सहयोग संगठन की बैठक हुई थी, तो उस समय डोकलाम विवाद प्रारंभिक स्टेज में था, परंतु अब इस मामले को नहीं सुलझाने पर ब्रिक्स सम्मेलन ही संकट के दायरे में आ जाता.

इस संपूर्ण प्रकरण से चीन की अंतर्राष्ट्रीय छवि विश्व समुदाय में जहां धूमिल हुई, वहीं भारत के दृढ़ता ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत, चीन के दुष्प्रचार और झांसे में न तो आता है और न आएगा. साथ ही दक्षिण एशिया में चीन को प्रतिसंतुलित करने वाले घटक के रुप में भारत की छवि में निखार ही आई है. इस मामले में भारत पीछे जाता तो न केवल पूर्वोतर भारत गंभीर सुरक्षा संकट से जूझता, अपितु दक्षिण एशिया विशेषकर पड़ोसी देशों में भारत की छवि धूमिल होती.परंतु आज के इस घटनाक्रम ने चीन को भारत ने सम्मानित ढंग से बाहर जाने का मौका देकर एक संतुलित रास्ते की ओर कदम बढ़ाया है. साथ ही भारत को सदैव चीन के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है.

ये भी पढ़ें-     

ड्रैगन को डोकलाम का सपना नहीं अपने दीवार में लगी दीमक से बचना चाहिए

भारत-चीन के दम की पोल खोलती एक खबर...

चीनियों को भूल जाने की बीमारी है, या वे नाटक करते हैं ??

लेखक

राहुल लाल राहुल लाल @rahul.lal.3110

लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय