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Updated: 12 जुलाई, 2017 10:28 PM
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दुनिया भर में गालियों की अहमियत को कौन नहीं जानता. सीरिया से लेकर अमेरिका तक, हर देश की अपनी अलग गालियां और अपनी अलग लड़ाइयां हैं. लेकिन जिस तरह गालियों का विकास भारत में हुआ है उस तरह शायद ही कहीं हुआ हो. मैं पूरी तरह से गलत भी हो सकती हूं, लेकिन भारतीय गालियां काफी इनोवेटिव होती हैं. पहले जहां मां-बहनों को नवाजा जाता था वहीं अब बाप-भाई-पति भी इसी कड़ी में शामिल कर लिए गए हैं. पुरखों को तारना तो पहले ही सीख लिया गया था.

Abuse, Slang, Internet

अगर आप भारत की गलियों में घूमते हैं तो विविध तरह की गालियों का परिचय आपसे हो ही गया होगा. इस मामले में मेरा एक्सपीरियंस कुछ अलग ही रहा है. हर नए झगड़े के साथ मेरी गालियों की डिक्शनरी भी अपडेट होती रहती है. हाल ही की बात है दफ्तर से घर जाने वाली सड़क पर दो दोस्त झगड़ा कर रहे थे. देखने में तो किसी कॉलेज के स्टूडेंट लग रहे थे. उन्होंने गालियों का लेवल और ऊपर कर रखा था. अब गालियों में कुत्ते और गधे का प्रमोशन कर दिया गया था. कुछ को सुनकर तो कानों को यकीन ही नहीं हुआ कि इतनी क्रिएटिविटी भी दिखाई जा सकती है कुत्ते की गाली में. उनकी एक-आध गाली को समझने में तो अच्छा खासा समय लग गया. अब उनसे तो पूछा नहीं जा सकता था तो गूगल करना पड़ा.

ऐसा ही एक किस्सा था जब कुछ दिनों पहले एक पति-पत्नी को लड़ते सुना था. यकीन मानिए उस दिन शादी को लेकर कई कॉन्सेप्ट क्लियर हो गए थे. गालियों में इनोवेशन सिर्फ पति ही नहीं पत्नियां भी कर सकती हैं और किसी भी परिस्थिती के सटीक विश्लेषण के तौर पर गाली दे सकती हैं.

हिंदुस्तान में गालियों की अहमियत समझने के लिए सिर्फ यही उदाहरण नहीं हैं, और भी कई बातें हैं. यहां गालियों के अलग-अलग प्रकार भी हैं. यहां प्यार वाली गाली, गुस्से वाली गाली, खुशी वाली गाली, शादी वाली गाली, बच्चों वाली गाली, बड़ों वाली गाली सब कुछ जायज है. इतना ही नहीं लोकगीतों में भी गालियों की अपनी अलग पहचान है.

गालियों को अपडेट करना भी जरूरी है!

कई सालों से गालियों का जो एक सीमीत भंडार था वो पिछले कुछ समय में काफी तेजी से अपडेट हुआ है. और मुझे कुछ लोगों से ये शिक्षा मिली है कि गालियों को अपडेट करना भी जरूरी है. अब खुद ही सोचिए आप किसी से झगड़ा कर रहे हों जो मौखिक गाली देने की कला में निपुण हो तो जीतने के लिए आपको कितनी मेहनत करनी होगी. मौखिक गाली इसलिए क्योंकि अब तो सांकेतिक गालियों का बोलबाला भी होने लगा है.

ऐसा ही हुआ मेरे साथ जब बगल वाले घर की एक लड़की ने अपना कौशल मुझपर आजमाने की कोशिश की. बहुत मेहनत के बाद भी कुत्ती, कमीनी तक ही बोलना सही लगा मुझे, लेकिन अगर सामने वाले की डिक्शनरी आपसे ज्यादा अपडेट हो तो यकीनन आपका हारना तय है. उसी दिन रूममेट के लेक्चर से भी यही बात समझ आई की गालियों की डिक्शनरी अपडेट करना अब काफी जरूरी हो गया है. अरे अब तो फिल्मों में भी गालियां अपग्रेड हो गई हैं और वेब सीरीज में तो तौबा ही है तो आखिर क्यों बच्चों वाली गालियों तक ही सीमित रहा जाए. उस दिन पहली बार एहसास हुआ कि अभी तो हमे सिर्फ बच्चों वाली गालियां आती हैं.

Abuse, Slang, Internet

अगर गालियां नहीं होती तो शायद जिंदगी में काफी कुछ नहीं होता. आजकल लोगों को लड़ते या बोलते सुनकर तो यही लगता है कि गालियों की अहमियत बढ़ गई है. नुक्कड़ पर खड़े लोगों से लेकर ऑडी में घूमने वाले ग्रुप तक अगर गालियां ना हों तो उनका दिन शुरू होने से लेकर खत्म होने तक कुछ भी प्रोडक्टिव नहीं होगा. किसी से कोई काम करवाना हो या किसी के किए गए काम की तारीफ करनी हो गालियां हर मौके के लिए हाजिर रहती हैं. हिंदुस्तानी गालियों में जो फीलिंग आती है वो किसी अन्य भाषा में गाली देने पर नहीं आती इस बात से तो मैं भी सहमत हूं, लेकिन गाली देने की जरूरत से थोड़ा सहमत नहीं हूं. भले ही गालियां हमारी लाइफस्टाइल का हिस्सा बन चुकी हैं, लेकिन इनके बिना भी रहना मुमकिन है. भले ही अपनी डिक्शनरी अपडेट कर ली हो हमने, लेकिन इनका इस्तेमाल करना अभी भी नहीं सीख पाए हैं.

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