New

होम -> ह्यूमर

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 22 नवम्बर, 2016 02:39 PM
नरेंद्र सैनी
नरेंद्र सैनी
  @narender.saini
  • Total Shares

भारतीय दुनिया भर में आईटी और धन कमाने के मामले में काफी पहचान रखते हैं, और काले धन के मामले में तो कहना ही क्या. लेकिन वे आबादी के मामले में काफी कुख्यात भी हैं. भारत में पैसा हो न हो लेकिन स्विटजरलैंड में खाते (काले धन) होने का दंभ हमेशा कोई न कोई सरकार भरती रहती है और कहती है कि विदेशों में काला धन जमा है, हमें उसे वापस लाना है.

अब सरकार ने इस काले धन को लाने के लिए और घरों से निकलवाने के लिए 500 और 1000 रु. के नोट बंद किए तो हर जगह कतार नजर आ रही है. सरकार ने ये फैसला लिया 8 नवंबर को, भारत में अधिकतर लोगों का वेतन 1 से 10 तारीख को मिलता है, इसलिए सरकार ने सीधे आम आदमी की तन्ख्वाह पर सर्जिकल स्ट्राइक कर डाली. काला धन कितना आया यह तो सरकार जाने लेकिन वेतनभोगी लोगों की सफेद और मूंगफली टाइप की तन्ख्वाह भी काली हो गई. अब बैंक पहुंचो तो लाइनें हैं कि खत्म नहीं होती. एटीएम से पैसा निकलवाने के लिए दिन भर की छुट्टी लो और फिर पाओ मात्र दो हजार रुपये.

ये भी पढ़ें- 'अबकी बार, खुले में शौच पर वार'

bank_650_112216021912.jpg
 नोटबंदी के बाद हर जगह कतार नजर आ रही है

ऐसे ही सारे माहौल के बीच दिमाग में सवाल उठने लगा कि क्या एक बार फिर से हम जनसंख्या विस्फोट का शिकार हो सकते हैं. अगर मौजूदा सरकार ने इस तरह के एक दो फैसले और ले लिए तो वे दिन दूर नहीं जब हमें फिर से हम दो हमारे दो (ओह नहीं, हम दो हमारे एक) के नारे देने पड़ें क्योंकि 1960-70 के दशक में कहा जाता था कि जितने बच्चे होंगे उतने ही ज्यादा कमाएंगे, शायद आने वाले समय में यह अवधारणा कतारों के मामले में सही सिद्ध हो कि जितने ज्यादा बच्चे होंगे उतनी ही ज्यादा कतारों में लग सकेंगे. एक बच्चा एचडीएफसी बैंक की कतार में होगा तो दूसरा आईसीआईसीआई और तीसरा कमाने जा सकेगा.

शायद जब सरकार काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में सोच रही थी तो वह इसके साथ जुड़ी दूसरी बातों पर ध्यान देना भूल गई. अगर काले धन की यह सर्जिकल स्ट्राइक बंद कमरों तक पहुंच गई तो पहले ही सवा सौ करोड़ की आबादी की वजह से संकट झेल रहा, देश नए संकट में फंस सकता है.

ये भी पढ़ें- कौन मारेगा ? मरे मोदी के दुश्‍मन

वैसे सरकार कह रही है कि यह शुरुआती दिक्कत है, हम उम्मीद करते हैं कि यह शुरुआती परेशानी ही होनी चाहिए क्योंकि हम भारतीय संयमी नहीं हैं क्योंकि अगर कतारों को लेकर हमारा संयम टूट गया तो उसके बाद न जाने क्या-क्या टूटेगा यह समझने वाली बात है. वैसे एक बैंक की कतार में लगे एक शख्स का यह कहना मजेदार था कि मैंने कभी सरकार की नहीं सुनी और मेरे पांच बच्चे हैं. सब अपने-अपने कार्ड लेकर कतारों में लगे और, तीन दिन में ही हमने अपने महीने का खर्च निकाल लिया, आज मैं वेतन के रूप में मिला अपना काला धन जमा कराने आया हूं (मजाक करते हुए)...ये होता है पांच बच्चों के पिता होने का गर्व और भविष्य को लेकर निश्चितता कई लोगों को प्रेरित कर सकती है.

लेखक

नरेंद्र सैनी नरेंद्र सैनी @narender.saini

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सहायक संपादक हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय