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Updated: 27 जुलाई, 2017 05:01 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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जीएसटी को लागू हुए अच्छा खासा वक्त बीत गया है और इसके बारे में अब लोग जानने भी लगे हैं. बिल में हुए बदलाव हों या फिर इकोनॉमी में हुआ बदलाव भारत में लोग हर चीज एडजस्ट कर ही लेते हैं. जीएसटी को लेकर भी यही हुआ, लेकिन एडजस्टमेंट आखिर कहां तक किया जाए और एडजस्टमेंट की खामियों का क्या? कुछ ऐसा ही हो रहा है जीएसटी के मामले में.

जीएसटी लागू तो कर दिया गया है, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं वैसे-वैसे लोग और परेशान होते जा रहे हैं! भले ही हर मामले में ऐसा ना हो, लेकिन कुछ मामलों में तो है. सबसे ज्यादा परेशानी हो रही है आम दुकानदारों को. जीएसटी के इतने दिन बाद कैसा है लोगों का हाल चलिए जानते हैं...

1. छोटे अनऑर्गेनाइज्ड मार्केट को नुकसान, डीलर्स भी होलसेल मार्केट की तरफ आ रहे हैं....

पिछले साल नोटबंदी ने वैसे ही खुदरा कैश आधारित कारोबार करने वालों की कमर तोड़ दी थी और अब जीएसटी के बाद तो अनऑर्गेनाइड्स सेक्टर को काफी नुकसान हुआ है. अब ऐसा देखा जा रहा है कि छोटे दुकानदार सामान खरीदने के लिए बेस्ट प्राइज-वॉलमार्ट, मेट्रो कैश जैसे होलसेल स्टोर्स की तरफ आगे बढ़ रहे हैं. इससे ये उम्मीद की जा सकती है कि आपके रोजमर्रा के बिल की कीमत शायद थोड़ी बढ़ जाए. लेकिन अगर दूसरी तरफ देखें तो अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर पूरी तरह से बिल और पर्चों पर आ जाएगा. रिटर्न भरने के लिए डिजिटल सिस्टम में भी.

2. फॉर्म भरने और बिल बनाने को लेकर अभी भी दुकानदारों को परेशानी

दूसरी सबसे बड़ी समस्या उन लोगों को हो रही है जिनकी छोटी दुकाने हैं और अलग-अलग तरह का सामान बेचा जाता है. उन्हें ये नहीं समझ आ रहा कि अगर एक इंसान ने कोई ऐसी चीज खरीदी है जो 12% जीएसटी के अंतरगत आती है और दूसरी ऐसी जो 28% जीएसटी के अंतरगत आती है तो बिल कैसे बनाया जाए. क्या दो अलग-अलग बिल दिए जाएंगे या फिर एक ही बिल में दो अलग-अलग टैक्स होंगे.

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3. नॉन एसी रेस्त्रां भी ले रहे 18% टैक्स

ये मेरा पर्सनल अनुभव है. एक जगह से खाना पैक करवाया वहां 12% टैक्स की जगह 18% लगाया गया. जब इसके बारे में मैंने तफ्तीश की तो बोला गया कि हां यही तो रेट है आप चेक कर लो. मैंने बिना कुछ सुने कहा कि नॉन एसी रेस्त्रां में 12% टैक्स लगना है और आप 18% क्यों लगा रहे हैं. बाद में पता चला रेस्त्रां में एक एसी लगा है जो कैशियर या यूं कहें ओनर के पास है. सिटिंग एरिया में पंखों का इस्तेमाल किया गया था.

अब ऐसे में टेक अवे खाने में भी 18% ही लग रहा है. चाहें आप मेकडॉनल्ड्स का टेक अवे ले जा रहे हों या अंदर बैठ कर आलू टिक्की खा रहे हों टैक्स उतना ही लगेगा.

4. जीएसटी रिटर्न फाइल करने को लेकर सबसे ज्यादा परेशानी

जीएसटी रिटर्न को लेकर तो और बवाल मचा हुआ है. दुकानदारों का सिर दर्द बना ये रिटर्न फाइल करना कोई आसान काम नहीं है. पहले तो आपको सही फॉर्म भरना होगा, तीन बार रिटर्न अभी तो नहीं फाइल करना है. फिलहाल एक महीने में एक रिटर्न और सालाना एक एनुअल रिटर्न फाइल करना है. इसके लिए GSTR-1 से लेकर GSTR-11 तक फॉर्म भरना होगा. अगर आपको ये समझ नहीं आ रहा है तो किसी सीए की मदद लें.

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5. एक टैक्स या अनेक टैक्स?

एक रिपोर्ट के मुताबिक मिठाई वालों को सबसे ज्यादा परेशानी हो रही थी. जैसे प्लेन बर्फी 5% टैक्स स्लैब में है, लेकिन चॉकलेट बर्फी 28% टैक्स स्लैब में है. इसके अलावा, प्लेन बर्फी जो इलाइची और ड्राई फ्रूट जैसा कुछ लगा हो तो 12% टैक्स लगेगा.

अब अगर और कोई मुश्किल डिश है जैसे फालूदा जिसमें आइस्क्रीम, फल, जेली, जैम, चॉकलेट आदि शामिल हों तो उसपर क्या रेट लगेगा. कस्टर्ड जैसी चीजें 28% रेट पर है. तो क्या मिठाई वाले अलग-अलग वैराइटी की मिठाई भी ना बनाएं ताकि उन्हें आसान जीएसटी रेट देना पड़े? ये समस्या सिर्फ मिठाइयों के साथ नहीं है बल्कि सभी चीजों के साथ है.

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हमारे देश का जीएसटी इतना कॉम्प्लेक्स है कि पांच अलग-अलग टैक्स रेट दिए गए हैं. ऐसे में एक देश एक टैक्स कहां है?

6. लोकल चीजों में भी लगाया जा रहा जीएसटी...

आईचौक के एक रीडर ओमी राव ने ये बिल हमसे शेयर किया था. उनका कन्फ्यूजन ये था कि 500 रुपए से कम के लोकल जूतों पर तो जीएसटी लागू नहीं हो रहा फिर आखिर उनके बिल में जीएसटी क्यों लगाया गया? पहली बात तो ये बिल सही है. ये जो भी समस्या है पहले कन्फ्यूस्ड रेट की वजह से है. पहले ये कहा जा रहा था कि 500 रुपए से कम के जूतों में जीएसटी लगाया ही नहीं जाएगा, लोकल मार्केट में जीएसटी नहीं लगेगा या फिर जैसे 500 रुपए से कम के कपड़ों में नहीं लगा है जीएसटी (लोकल मार्केट) वैसे यहां भी नहीं देना होगा, लेकिन एक बात आपको बता दूं कि अगर कोई ऐसी शॉप है जो कम्प्यूटराइज्ड बिल दे रही है, उस दुकान में एसी है तो वो दुकानदार और उस दुकान में रखा हुआ सामान जीएसटी के अंतरगत आएगा.

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7. लोकेशन के हिसाब से बदलाव....

कुछ प्रोडक्ट्स की कीमत अलग-अलग लोकेशन के हिसाब से बदलती जा रही हैं. जैसे महाराष्ट्र में एक गाड़ी की कीमत और बेंगलुरु में उसकी कीमत में 30 हजार रुपए तक का अंतर है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अभी तक पूरी तरह से जीएसटी को अपनाया नहीं गया है. इसे भले ही लागू किए हुए कई दिन बीत चुके हैं, लेकिन फिर भी डीलर्स को और दुकानदारों को इसे सही तरीके से अपनाने में दिक्कत हो रही है.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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