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Updated: 05 सितम्बर, 2016 09:19 PM
मीनाक्षी कंडवाल
मीनाक्षी कंडवाल
  @meenakshi.kandwal
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आज मन एक बार फिर महाराष्ट्र में है. और हो भी क्यों ना.  जैसे कश्मीर में कुछ दिन बिताकर आने वाले उसे धरती का स्वर्ग बताते हैं, ठीक वैसे ही अगर किसी ने महाराष्ट्र को दोहरा उत्सव मनाते हुए देखा है तो भला कैसे मन में वो यादें हरी ना हों. 

महाराष्ट्र की कोंकण रेंज जहां पठार और छोटे-छोटे मैदान भी सावन की हरियाली ओढ़े इतरा रहे होते हैं. मॉनसून की बारिशें पल में भिगोतीं हैं और फिर पल में सूरज की किरणों को दिन को सुनहरा बनाने का मौका भी दे देती हैं. ऐसे गीले-सूखे मॉनसून के उत्सव में आगमन होता है महाराष्ट्र के राजा गणपति बप्पा का.

दस दिन का उत्सव, जिसमें रंग, उमंग, उल्लास और कलाओं-परंपराओं का प्रदर्शन अपने चरम पर होता है. इस उत्सव को दस दिन जीने का मौका मिला जब मैंने पुणे सतारा, सांगली, कोल्हापुर, रत्नागिरी, शिरडी, नासिक, औरंगाबाद, अमरावती, जालना और नागपुर की यात्रा की.

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शहरों के नाम भी अब उसी क्रम में स्मरण हो आते हैं जिस क्रम में उन्हें कवर किया. हर जगह का अपना महत्व रहा लेकिन मैं सबसे ज्यादा भाव-विभोर हुई रत्नागिरी जाकर जहां गणेश-उत्सव का श्रीगणेश करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के घर जाने का सौभाग्य मिला. घर के आंगन में स्थापित लोकमान्य तिलक की विशाल प्रतिमा मानों हर आगंतुक को इतिहास में मौजूद उनकी विशाल शख्सियत और दूरदर्शिता का परिचय देती है.

तिलक ने गणेश उत्सव की नींव गिरगांव में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में रखी और महाराष्ट्र की अस्मिता, परंपरा, साहस और एकत्व में उसे पिरोया. गणेश-उत्सव को जन-जागरण ने जब विस्तार दिया तो इसे स्वाधीनता संग्राम के साथ एकरंग कर दिया गया. तिलक के घर पर आज भी पत्थर का टूटा-फर्श, आम रंग-रौगन और उनका बिस्तर उस दौर की याद दिलाता है.

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 गणपति बप्पा मोरया

अलग-अलग शहरों-गांवों से गुज़रते हुए गणपति उत्सव की छटा महाराष्ट्र के गौरवशाली इतिहास और रीति-रिवाजों के अलग-अलग रुपों की एक झांकी सी दिखाती थी. नाम गौरीपुत्र गणेश का लेकिन उनके दरबार यानी अलग-अलग पंडालों में छत्रपति शिवाजी महाराज के शौर्य का प्रदर्शन करते वीर-वीरांगनाओं से लेकर लोकनृत्यों-गीतों की झलक दिखाई देगी.

गजनृत्य, मल्लयुद्ध, भालायुद्ध, कोली-लावणी में पारंगत लोक-कलाकार आपका दिल जीत लेंगे. "मी-मराठी" कहते हुए जब महाराष्ट्र में लोग चहकते हैं तो वो अंहकार नहीं बल्कि मराठा गौरव की हुंकार होती है. हर गली-कूचे में आपको पंडाल सजे दिखेंगे. अलग-अलग संगठनों के बड़े पंडाल भी दिखेंगे जो किसी थीम पर आधारित होते हैं, और इसके साथ ही आप हैरान होंगे पंडालों और दानपात्रों में होने वाले धन-धान्य की बरसात से. पंडालों के इश्योरेंस से, गणपति की महिमा का गुणगान करती दंतकथाओं से. 

ऐसी ही एक घटना पुणे के दगड़ूशेठ मंदिर से जुड़ी है. ऐसा मंदिर जहां भगवान अपने नही बल्कि भक्त यानी दगड़ूशेठ हलवाई के नाम से जाने जाते हैं. लोग कहते हैं कि जर्मन बेकरी में जब ब्लास्ट हुआ उस दौरान इस मंदिर को दहलाने के लिए आंतकवादी आया था लेकिन उस वक्त वहां मौजूद फूलवाले ने उसे लावारिस बैग रखने से मना कर दिया जिसके बाद वो वहां से चला गया. भक्त मानते हैं कि उस फूलवाले को ये बुद्धि, रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश ने ही दी थी. 

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ऐसे किस्से आपको कोस-कोस पर हर मंदिर और गणपति से जुड़े मिलेंगे। गणेश का साम्राज्य महाराष्ट्र में यूं रचा-बसा है कि आपको गणेश विठ्ठल और बालाजी के रुप में भी पूजे जाते दिखेंगे. बड़े-बड़े पोस्टर पटे गली-मोहल्ले, सड़के, हाइवे आपको एहसास दिलाते रहेंगे कि महाराष्ट्र के उत्सव का हिस्सा है. बाज़ारों में तरह-तरह के पकवानों की महक, साज-सज्जा और हर्षो-उल्लास एक नई ऊर्जा से भर देता है. 

हमारा देश त्योहारों का देश है. अलग-अलग मौसम, समय और स्थान इन्हें और सुंदर-दर्शनीय बना देते हैं. इसलिए देश के किसी भी हिस्से में आप रहते हों और ज़रा भी शौक़ हो भारत की भारतीयता देखने का तो इन त्योंहारों के साक्षी ज़रुर बनें. और यकीन जानिए गणपति उत्सव के दौरान जीवन में एक बार महाराष्ट्र अवश्य जाना चाहिए. साल के ये दस दिन आपको भक्ति,आस्था,परंपरा,संस्कृति और जीवतंता का नया एहसास देकर जाएंगे. 

मैं दिल्ली में हूं...लेकिन यादों को संजोए फिर एक बार 'वो' दस दिन जी रही हूं. 

लेखक

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