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Updated: 03 जनवरी, 2017 06:05 PM
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भूटान की राजमाता दोरजी वांगचुक शनिवार को प्राचीन नालंदा विवि के खंडहर देखने नालंदा तो जरूर पहुंचीं, पर उनके लिए वहां नालंदा विश्विद्यालय के खंडहर के अलावा एक और भी आश्चर्य इंतजार कर रहा था. नालंदा से लौटकर महारानी ने बताया कि उनका नाती ट्रूएक वांगचुक जब एक साल का था तब से ही प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के नाम का उच्चारण करता था. पहले तो हम सभी को कुछ समझ में नहीं आया. जब कुछ और बड़ा हुआ तो उसने बताया कि पिछले जन्म में उसने यहां पढ़ाई की है, सचमुच काफी आश्चर्यजनक अनुभव था.

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3 साल के ट्रूएक वांगचुक पूर्व जन्म की बातें बताते हैं

ट्रूएक वांगचुक क्या पूर्व जन्म की बातों के लेकर अबतक जो कहानियां हमारे सामने आती रही हैं, ये भी उसी क्रम में एक नयी कहानी है. वैसे विज्ञान ने भी अब इस तरह की बातों को मान्यता देना शुरू कर दिया है.

बकौल नालंदा पुलिस अधीक्षक- पूर्व जन्म की बातों को लेकर विज्ञान की धारणा चाहे जो भी हो लेकिन तीन साल के एक बच्चे ने नालंदा विश्वविद्यालय से पूर्व जन्म से संबंधित यादों को लेकर जिस तरह से जानकारी दी वह आश्चर्यजनक है. वह इतना सहज जानकारी दे रहा था कि मानो पूर्व में भी यहां आ चुका हो.

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 राज परिवार का ये बालक 1 साल की उम्र से नालंदा के बारे में बता रहा है

नालंदा खंडहर में जब राज माता परिवार के साथ पहुंची तो वहां उनके नाती जिग्मी जिटेन ओंगचुक ने कुछ अलग ही गतिविधि शुरू कर दी. वह खंडहर में मौजूद विभिन्न अवशेषों और संरचनाओं के बारे में बताने लगा. यहां तक कि उसने यह भी बताया कि पिछले जन्म में वह किस कमरे में पढ़ाई करता था. पहले तो उसने काफी भाग-दौड़कर कमरे का खंडहर खोजा. उसके बारे में जानकारी दी कि वह यहीं पढ़ता था. उसने सोने वाला कमरा भी दिखाया.

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राज माता और उनके साथ आए लोगों को स्तूप सहित कई ऐसी संरचनाएं देखने को मिलीं जिसके बारे में वह भूटान में बताया करता था. वहां वह एक रास्ते और ऊंची जगह के बारे में बताता था. यहां आकर भी उसने खोज लिया. महारानी ने बताया कि भूटान में वह जो भी बताता था उसकी सारी बातें यहां सच निकल रही हैं. उन्होंने बताया कि वह भूटान में यहां आने के लिए जिद भी करता था. लगता है भगवान बुद्ध की कृपा से पुनर्जन्म राज घराने में हुआ है. आठवीं शताब्दी के बारे में सारी बात बताता है. मात्र तीन वर्ष के होने के बाद भी विश्वविद्यालय के सभी जगहों और कार्यकलापों के बारे में बच्चे द्वारा दी गयी जानकारी से सभी दंग रह गये.

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 बच्चे ने नालंदा विश्वविद्यालय जाकर अपना कक्ष बी दिखाया

क्यों विश्वविख्यात था नालंदा विश्वविद्यालय

•    प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान 5वीं सदी(413 ईस्वीं) में हुई थी. लेकिन, 1193 में आक्रमण के बाद इसे नेस्तनाबूत कर दिया गया था.

•    अगर प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय नष्ट नहीं किया जाता तो यह विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों इटली की बोलोना (1088), काहिरा की अल अज़हर (972) और ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड (1167) से भी कुछ सदियों पुरानी होती.

•    इस विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय गुप्त शासक कुमार गुप्त प्रथम 450-470 को प्राप्त है.

•    इस विश्वविद्यालय को कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों का पूरा सहयोग मिला. गुप्तवंश के पतन के बाद भी आने वाले सभी शासक वंशों ने इसकी समृद्धि में अपना योगदान जारी रखा. इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला.

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 5वीं सदी में हुई थी स्थापना

•    उस दौरान नालंदा को स्थानीय शासकों और भारत की दूसरी रियासतों के साथ ही कई विदेशी शासकों से भी अनुदान मिलता था. यह विश्व का प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालय था. उस समय इसमें विद्यार्थियों की संख्या करीब 10,000 और अध्यापकों की संख्या 1500 थी. यहां भारत से ही नहीं कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे.

•    नालंदा के प्रसिद्ध आचार्यों में शीलभद्र, धर्मपाल, चंद्रपाल, गुणमति और स्थिरमति प्रमुख थे.

•    सातवीं सदी में ह्वेनसांग के समय इस विश्व विद्यालय के प्रमुख शीलभद्र थे. प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आर्य भट भी इस विश्वविद्यालय के प्रमुख रहे थे.

•    बौद्ध धर्म, व्याकरण, दर्शन, शल्य विद्या, ज्योतिष, योग शास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र भी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत थे.

•    नालंदा विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य- ऐसी पीढियों का निर्माण करना था, जो न केवल बौद्धिक बल्कि आध्यात्मिक हों.

•    तिब्बती परंपरा के अनुसार, विश्वविद्यालय में चार दृष्टिकोण निहित संग्रहों को आयोजित किया गया, जिसे नालंदा में पढ़ाया जाता था. जिसमें शामिल हैं: सर्वास्तिवदा  सौत्रांतिका , सर्वास्तिवदा वैभिका , महायान के प्रवर्तक नागार्जुन, वसुबन्धु, असंग तथा धर्मकीर्ति की रचनाओं का विस्तृत रूप से अध्ययन.

•    नालंदा विश्वविद्यालय के अधिकतर छात्र तिब्बतीय बौद्ध संस्कृतियों वज्रयान और महायान से संबद्ध थे. इनमें शिक्षकों की संख्या भी अधिक थी. बौद्ध सूक्ष्मवाद के प्राथमिक सिद्धांतकारों और भारतीय दार्शनिक तर्कशास्त्र के बौद्ध संस्थापकों में से एक महान विद्वान धर्मकीर्ति जैसे आचार्य यहां विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया करते थे.

•    बौद्ध संन्यासियों ने पहले वहां एक अध्ययन केंद्र स्थापित किया.

•    विश्वविद्यालय की प्रशासनिक प्रणाली, एक तरह से लोकतांत्रिक थी.

•    नालंदा के स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार करते थे.

•    नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय ‘धर्म गूंज’, जिसका अर्थ है ‘सत्य का पर्वत’, संभवतः दुनिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय था. यह दुनिया भर में भारतीय ज्ञान का अब तक का सबसे प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध केन्द्र था. ऐसा कहा जाता है कि पुस्तकालय में हजारों की संख्या में पुस्तकें और संस्मरण उपलब्ध थे. इस विशालकाय पुस्तकालय के आकार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें लगी आग को बुझाने में छह महीने से अधिक का समय लग गया. इसे इस्लामिक आक्रमणकारियों ने आग के हवाले कर दिया था. नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में तीन मुख्य भवन थे, जिसमें नौ मंजिलें थी. तीन पुस्तकालय भवनों के नाम थे रत्नरंजक’, ‘रत्नोदधि’, और ‘रत्नसागर’.

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 विश्नविद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या करीब 10,000 और अध्यापकों की संख्या 1500 थी

•    नालंदा विश्वविद्यालय की कई विध्वंस हो चुकी प्राचीन सरचनाएं अब भी मौजूद हैं. यहां खुदाई के दौरान मिले अवशेष 150,000 वर्ग फुट मीटर के एक क्षेत्र में विस्तृत रूप से मिले है. ऐसा माना जाता है कि अभी भी नालंदा विश्वविद्यालय का 90 फीसदी क्षेत्र ऐसा है, जिसकी खुदाई नहीं हुई है.नालंदा विश्वविद्यालय फिर से शुरू किया गया

बिहार सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन महत्व को देखते हुए इसकी पुनर्स्थापना के लिए 2007 में एक्ट बनाया. बाद में केंद्र सरकार से नालंदा विश्वविद्याल को लेकर कानून बनाने का अनुरोध किया गया. 2010 में केंद्रीय कानून बन जाने के बाद राज्य सरकार का कानून खत्म हो गया और यह केंद्र सरकार के अधीन हो गया.

दस साल पहले पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने नालंदा विवि के पुनर्निमाण के बारे में सोचा था.

•    एक सितंबर 2014 को प्राचीन और आधुनिक भारत के इतिहास के बीच ज्ञान की कड़ी जुडी. लगभग 833 साल बाद नालंदा विश्वविद्यालय (एनयू) के पुनर्जन्म से यह संभव हो सका है.

•    दिसंबार 11, 2016 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिख कर कहा है कि केंद्र सरकार नालंदा विश्वविद्यालय के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ न करे. इसका असर विश्वविद्यालय के संचालन और कार्यकलाप पर पड़ सकता है. विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए केंद्र गंभीरता से ही कोई निर्णय ले.

•    नवंबर 20, 2016 : नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर पद को लेकर अमर्त्य सेन की चिट्ठी के बाद विवाद गहरा गया है. उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय की गर्वनिंग बोर्ड को चिट्ठी लिखकर कहा है कि सरकार नहीं चाहती कि मैं इस पद पर आगे भी बना रहूं, इसलिए मैं यहां नहीं रुक सकता.

•    अगस्त 27, 2016 : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अगस्त में नालंदा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए.

लेखक

जगत सिंह जगत सिंह @jagat.singh.9210

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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