पहले खुद का करना पड़ता है पिंड दान फिर बनते हैं नागा साधु, जानें अन्य रोचक तथ्य
किसी भी नागा साधु को लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है. अन्तिम प्रक्रिया महाकुम्भ के दौरान होती है जिसमें उसका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि शामिल होता है.
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भस्म से सुशोभित नग्न शरीर, गले और बाजुओं पर रुद्राक्ष, लाल आँखें, बिखरी जटाएं, हाथ में चिलम, भगवान शिव की आराधना और ॐ नमः शिवाय का जाप. ये सभी बिंदु ऐसे है जिसकी कल्पना एक आम आदमी को आश्चर्य में डाल सकती हैं. कई सारे मठों, मंदिरों, गिरजों, गुरुद्वारों से घिरे भारत में ऐसी बहुत सारी चीज़ें मौजूद हैं जिनको देखकर कोई भी व्यक्ति दांतों तले अंगुली दबाने के लिए विवश हो जायगा. जी हाँ इस लेख के जरिये आज हम बात करेंगे नागा साधुओं और उनसे जुड़े कुछ आश्चर्यजनक तथ्यों पर. इस लेख के जरिये आपको ये समझने में आसानी होगी कि आखिर कौन होते हैं नागा साधु ? कैसे बनता है एक व्यक्ति नागा साधु? क्या व्यक्ति यूं ही नागा साधु बन जाता है या फिर उसे इसके लिए देना होता है उसे कठिन इम्तेहान?
पहले खुद का करना पड़ता है पिंड दान फिर बनते हैं नागा साधु
कौन होते हैं नागा साधु
नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने के अलावा युद्ध कला में माहिर होते हैं. सभी नागा साधु विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं जिनकी परम्परा आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी.
क्या होती है नागा साधुओं की जीवन शैली
नागा साधु समाज की मुख्य धारा से दूर आश्रमों या फिर एकांत में वास करना पसंद करते हैं. इनका जीवन बड़े अनुशासन में बीतता है अतः ये भी आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं.
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हमेशा नग्न रहने की प्रतीज्ञा
आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा हिन्दू हितों की रक्षा के लिए निर्मित इस टुकड़ी के विषय में मान्यता है कि भले ही ही दुनिया अपना रूप बदलती रहे लेकिन शिव और अग्नि के ये भक्त इसी स्वरूप में रहेंगे।
नागा साधुओं के गुस्से से सम्बंधित तथ्य
नागा साधु अपने क्रोध के लिए जाने जाते हैं. इनके गुस्से के बारे में प्रचलित मान्यता ही भीड़ को इनसे दूर रखती है. वास्तविकता पर नज़र डालें तो मिलता है कि शायद ही कभी किसी व्यक्ति को नागा साधु द्वारा नुकसान पहुंचाया गया हो. लेकिन हां, यदि आप इन्हें बिना कारण उकसाए या परेशान करें तो इनका क्रोध विकराल रूप धर लेता है.
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एक फौजी की ही तरह होती है इनकी ट्रेनिंग
नागा साधुओं के बारे में मान्यता है कि ये तीन प्रकार के ऐसे योग करते हैं जो एक साधारण आदमी के बस की बात नहीं है. योग के ये अलग - अलग स्वरुप जहाँ एक तरफ इन्हें ठण्ड से बचाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ इन्हें शारीरिक रूप से मज़बूत भी बनाते हैं. इसके अलावा विचार और खानपान की दृष्टि से भी ये अपने पर संयम रखते हैं. ज्ञात हो कि नागा साधु एक सैन्य पंथ है जो एक सैन्य रेजीमेंट की तरह बंटे हैं. नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन तथा लम्बी है.
पहले खुद का करना पड़ता है पिंड दान फिर बनते हैं नागा साधु
नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग छह साल लगते हैं. इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर यूँ ही रहते हैं. बताया जाता है कि कोई भी अखाड़ा अच्छी तरह जाँच-पड़ताल कर योग्य व्यक्ति को ही अपने अखाड़े में प्रवेश देकर नागा साधु बनने की दीक्षा देता है.
पहले खुद का करना पड़ता है पिंड दान फिर बनते हैं नागा साधु
करना होता है खुद का पिंडदान
किसी भी नागा साधु को लम्बे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है. अन्तिम प्रक्रिया महाकुम्भ के दौरान होती है जिसमें उसका स्वयं का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि शामिल होता है.
नागाओं के श्रृंगार के साजो सामान
नागा साधुओं ने हमेशा ही अपने श्रृंगार और स्टाइल के चलते लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है. गौरतलब है कि भस्म, त्रिशूल, तलवार, शंख और चिलम से वे अपने सैन्य दर्जे और सौंदर्य को दर्शाते हैं.
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कुम्भ के दौरान अपने जलवे से करते हैं लोगों को मोहित
जी हां बिल्कुल सही सुना आपने. प्रायः ये देखा गया है कि नागा साधु कुम्भ के दौरान अपने जलवे से लोगों को मोहित कर आश्चर्य में डाल देते हैं. नागा साधुओं को लेकर कुंभ मेले में बड़ी जिज्ञासा और कौतुहल रहता है, खासकर विदेशी पर्यटकों में. कोई कपड़ा ना पहनने के कारण इन्होंने हमेशा ही विदेशियों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है. दिगंबर नाम से लोकप्रिय नागा साधु आकाश को ही अपना वस्त्र मानते हैं. कपड़ों के नाम पर पूरे शरीर पर धूनी की राख लपेटे ये साधु कुम्भ मेले में सिर्फ शाही स्नान के समय ही खुलकर श्रद्धालुओं के सामने आते है.
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